रिश्ते मिलते हों बेशक
स्वत: ही
पर रिश्ते बनते नहीं
बनाने पड़ते हैं।
करने पड़ते हैं खड़े
मान और भरोसे का
ईंट, गारा लगा कर
निकाल कर स्वार्थ की कील
और पोत कर प्रेम के रंग
रिश्ते कोई सेब नहीं होते
जो टपक पड़ते हैं अचानक
और कोई न्यूटन बना देता है
उससे कोई भौतिकी का नियम।
या ग्रहण कर लेते हैं मनु श्रद्धा
और हो जाती है सृष्टि.
रिश्ते तो वह कृति है,
जिसे रचता है एक रचनाकार
श्रम से, स्नेह से, समर्पण से
रिश्ते तो वो तस्वीर है
जिसे बनाता है कलाकार स्वयं
अपनी समझ की कूची से
और फिर भरता है उसमें रंग
अपनी ही अनुभूति के
तब कहीं जाकर पनपता है कोई रिश्ता
हमारे ही अथक परिश्रम से
रिश्ते खुद नहीं आते जाते
रिश्तों के पाँव जो नहीं होते।
bahut sundar …
बहूत खूब…बधाई।
रिश्ते की अभियांत्रिकी हमेशा अबूझ पहेली रही है . आपने इसके तमाम अवयवों पर गहरी दृष्टि डाली है .
भई सब से पहले तो ५०० फ़ालोवर होने पर बधाइयाँ स्वीकार करें !
बाकी रिश्तों के बारे मे क्या कहें … जीतने सरल होते है उतने ही जटिल !
रिश्ते …… बन गए,टिक गए तो तुम बुद्धिमान
वरना बेवकूफी के किस्से सरेआम होते हैं …
रिश्तों की चमक
दिलों की खनक
इनके बिना मन
रोता फफक-फफक
रिश्ते बनते नहीं
बनाने पड़ते हैं । …. ख़ूबसूरत सच , जिसे जान हुए भी अवहेलना होती है सदा ।
अद्भुत सत्य …" रिश्ते तो वो तस्वीर हैं
जिसे बनाता है कलाकार स्वयं "…… बहुत सुन्दर महीन सा रेशा जो बाँधे रखता है रिश्तों को …
" रिश्ते ख़ुद नहीं आते-जाते
रिश्तों के पाँव जो नहीं होते ।"
आभार इस खूबसूरत रचना के लिए ।
और जितनी मेहनत से वो बनते हैं उतनी देर उन्हे टूटने में नही लगती , आवाज भी नही होती और रिश्ते टूटकर बिखर जाते हैं । क्या यथार्थ को शब्दो में उतारा है आपने शिखा
सुंदर कव्याभिव्यक्ति के लिए आभार
हाँ रिश्तों के पांव तो नहीं होते….
ये तो एक वृक्ष हैं न….जीवित हैं मगर चलित नहीं…
हाँ ये दम ज़रूर तोड़ देते हैं ज़रा से नेह के अभाव में..
बड़े दिनों बाद आपकी कविता पढ़ कर अच्छा लगा शिखा.
अनु
रिश्ते बिन स्वरूप के होते है, कैसे बढ़ते जाते है, कैसे बदलते जाते हैं, पता ही नहीं चलता है।
sachmuch rishton ke panv nahi hote
रिश्ते खुद नहीं आते जाते
रिश्तों के पाँव जो नहीं होते।
…बिल्कुल सच…हमारा व्यवहार ही उन्हें पाँव देते हैं…बहुत सुन्दर
सार्थक और उपयोगी प्रस्तुति!
रिश्ते खुद नहीं आते जाते
रिश्तों के पाँव जो नहीं होते।…..wah,bahot achchi baat.
ये तो रिश्तों का डिस्ट्रक्टिव टेस्ट हो गया। टुकड़े-टुकड़े पड़ताल हो गयी। वाह! 🙂
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रिश्ते भी nurture चाहते है,
जैसे कोई नया-नया लगाया पौधा चाहे…
जैसे नए-नए रोपे गए पौधे के लिए खाद,
उर्वर मिट्टी,हवा पानी उजास इत्यादि
आवश्यक है …वैसे ही एक रिश्ते के लिए भी।
और इस प्रोसेस में जो रिश्ते गलत होते
हैं वे खिर भी जाते हैं, बिना पनपे …
पर येस ! शिखा जी, रिश्ते जतन तो मांगे ही …:)
सुन्दर रूपकात्मक अभिव्यक्ति .रिश्तों को बनाए रखना निभाये रखना ,प्रेम होता एक बार है लेकिन उसे छीजने न देना ,बनाए रहना एक कला भी है प्रतिबद्धता भी आनुवंशिकी भी जीनीय भी .
बहुत सुंदर बिंबों से सुसज्जित रचना …रिश्तों को बनाये रखने का तरीका बताती हुई …
लेकिन कभी कभी ऐसा भी तो होता है …
रिश्ते कभी नहीं बनते एकतरफा
बैठे रहिए
मान और विश्वास का गारा लिए
और दूसरा आ कर
मिला दे अविश्वास की
ढेर सारी रेत
तो हो जाएगा
धराशाही वो रिश्ता
जिसे आप बनाना चाहते थे
एक बुलंद इमारत
एक कलाकार की तरह
अपनी अनुभूतियों के रंग से
जब आप भरते हैं रंग
और दूसरा फेर देता है उस पर
पानी भरी कूची
तो और भी
बदरंग हो जाती है
वह कृति
रिश्ते तो बनते हैं
आपस के सौहार्द्य से
प्रेम से , विश्वास से
समर्पण से ,
रिश्ते बनने और बनाने के लिए
एक दूसरे से तालमेल होना ज़रूरी है ।
हाँ, बिलकुल दी !! वही तो, जतन दोतरफ़ा ही चाहिए.
सच में रिश्तों को बनाना , और पोषित करना होता है
रिश्ता रिसता न रह जाये, यही कोशिश होनी चाहिये.
आज एक परिष्कृत …गम्भीर रचना पढ़ने को मिली आपकी। संगीता जी की रचनात्मक टिप्पणी ने सोने में सुहागे का काम कर दिया। वास्तव में रिश्तों को कल्टीवेट करना पड़ता है अन्यथा मुलाकात किस मुकाम तक पहुँचेगी कहा नहीं जा सकता। रचना की परिपक्वता के लिये बधाई स्वीकार करें।
रिश्ते तो वह कृति है,
जिसे रचता है एक रचनाकार
श्रम से, स्नेह से, समर्पण से
रिश्ते तो वो तस्वीर है
जिसे बनाता है कलाकार स्वयं
अपनी समझ की कूची से
और फिर भरता है उसमें रंग
अपनी ही अनुभूति के
तब कहीं जाकर पनपता है कोई रिश्ता
Bahut badhiya
itni gehri baat …:-)
रिश्ते बनाने पढते हैं मेहनत से … प्रेम से … अपने पण से …
सच है की अपने आप नहीं बनते गहरे रिश्ते …
लाजवाब रचना …
रिश्ते बनते है , बनाये रखने भी पड़ते हैं !
अबूझ पहेली है रिश्ते भी !
गुलज़ार की एक नज़्म याद आ गयी, यार जुलाहे…
http://www.youtube.com/watch?v=ACX7DJkNTb8
पर रिश्ते बनते नहीं
बनाने पड़ते हैं।
करने पड़ते हैं खड़े
मान और भरोसे का
ईंट, गारा लगा कर
क्या बात… बहुत खूब पड़ताल है ये तो रिश्तों की ये…
अच्छी लगी रिश्तों की जमा-पूंजी…
जय हिंद…
स्नेहिल रिश्ते वरदान हैं….
रिश्ते खुद नहीं आते ……सत्य कथन
पर रिश्तों की पहचान हम से बनती है और वो अपनेपन की छाया तले फलतेफुलते हैं 🙂
अपनी ही अनुभूति के
तब कहीं जाकर पनपता है कोई रिश्ता
हमारे ही अथक परिश्रम से
रिश्ते खुद नहीं आते जाते
रिश्तों के पाँव जो नहीं होते।
sahi hai bahan rishte hote hi aese hain
rachana
संगीता जी से सहमत-रिश्ते पारस्परिकता की सीमेंट से जु़ड़े रहते हैं.
रिश्ते बनते नहीं
बनाने पड़ते हैं।
सच है पर बड़ा मुश्किल है…
सही कहा आपने
एक रिश्ते ही तो हैं जिन्हें जब..जहाँ छोड़ो..वहीँ खड़े मिलते हैं….!
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
/
sundar
Very interesting topic, appreciate it for putting up.
Enjoyed every bit of your blog article.Really looking forward to read more. Really Great.