मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. और आपस में मिलजुल कर उत्सव मनाना उसकी जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है। जब से मानवीय सभ्यता ने जन्म लिया उसने मौसम और आसपास के परिवेश के अनुसार अलग अलग उत्सवों की नींव डाली, और उन्हें आनंददायी बनाने के लिए तथा एक दूसरे से जोड़ने के लिए अनेकों रीति रिवाज़ों को बनाया। परिणामस्वरूप स्थान व स्थानीय सुविधाओं को देखते हुए आपस में मिलजुल कर…
ये भगवान भी न इंसानो की ही तरह हबड़ दबड़ में रहता है आजकल। ठीक से सुनता समझता भी नहीं बात पहले… पूरी बात सुनिये यहाँ –…
कहते हैं, गरजने वाले बादल बरसते नहीं पर यहाँ तो गर्जन भी है और बौछार भी जैसे रो रहे हों बुक्का फाड़ कर. चीर कर आसमान का सीना धरती पर टपक पड़ने को तैयार. बताने को अपनी पीड़ा. कि भर गया है उनका घर उस गहरे काले धुएं से जो निकलता है धरती वालों की फैक्ट्रियों से. दम घुटता है…
यूँ सामान्यत: लोग जीने के लिए खाते हैं परन्तु हम भारतीय शायद खाने के लिए ही जीते हैं. सच पूछिए तो अपने खान पान के लिए जितना आकर्षण और संकीर्णता मैंने हम भारतीयों में देखी है शायद दुनिया में किसी और देश, समुदाय में नहीं होती। एक भारतीय, भारत से बाहर जहाँ भी जाता है, खान पान उसकी पहली प्राथमिकता भी होती है और मुख्य…
लंदन में इस साल अब जाकर मौसम कुछ ठंडा हुआ है. वरना साल के इस समय तक तो अच्छी- खासी ठण्ड होने लगती थी, परन्तु इस बार अभी तक हीटिंग ही ऑन नहीं हुई है. ग्लोबल वार्मिग का असर हर जगह पर है. वैसे भी यहाँ के मौसम का कोई भरोसा नहीं।शायद इसलिए और हम जैसे दो नावों में सवार प्राणी इस…
ऐसा भी होता है आजकल … चलिए सुन ही लीजिये.. 🙂 आवाज ….??, हमारी ही है. अब हमारे ब्लॉग पर अपनी आवाज देने का और कौन रिस्क लेगा 🙂 . दोस्तो!!! लन्दन का मौसम आजकल बहुत प्यारा है ऐसे में टूरिस्टों का बोलबाला है इसी दौरान हमारी एक मित्र भी भारत से पधारी उनके स्वागत में हमने की सारी तैयारी …
जबसे होश संभाला तब से ही लगता रहा कि मेरा जन्म का एक उद्देश्य घुमक्कड़ी भी है. साल में कम से कम १ महीना तो हमेशा ही घुमक्कड़ी के नाम हुआ करता था और उसमें सबसे ज्यादा सहायक हुआ करती थी भारतीय रेलवे. देखा जाए तो ३० दिन के टूर में १५ दिन तो ट्रेन के सफ़र में निकल ही…
मन उलझा ऊन के गोले सा कोई सिरा मिले तो सुलझाऊं.दे जो राहत रूह की ठंडक को, शब्दों का इक स्वेटर बुन जाऊं. बुनती हूँ चार सलाइयां जो फिर धागा उलझ जाता है सुलझाने में उस धागे को ख़याल का फंदा उतर जाता है. चढ़ाया फिर ख्याल सलाई पर कुछ ढीला ढाला फिर बुना उसे जब तक उसे ढाला रचना में तब तक मन…
भाषा – मेरे लिए एक माध्यम है अभिव्यक्ति का. अपनी बात सही भाव में अधिक से अधिक दूसरे तक पहुंचाने का. अत: मैं यह मानती हूँ कि जितनी भी भाषाओं का ज्ञान हो वह गर्व की बात है परन्तु तब तक, जब तक किसी भाषा को हीन बना कर वह गर्व न किया जाये। यूँ जरुरत के वक़्त भाषा को किसी…
रूस के गोर्की टाउन से कर इंग्लैण्ड के स्टार्ट फोर्ड अपोन अवोन तक और मास्को के पुश्किन हाउस से लेकर लन्दन के कीट्स हाउस तक। ज़ब जब किसी लेखक या शायर का घर , गाँव सुन्दरतम तरीके से संरक्षित देखा हर बार मन में एक हूक उठी कि काश ऐसा ही कुछ हमारे देश में भी होता। काश लुम्बनी को भी एक यादगार…