गुजर गया 2012 और कुछ ऐसा गुजरा कि आखिरी दिनों में मन भारी भारी छोड़ गया। यूँ जीवन चलता रहा , दुनिया चलती रही , खाना पीना, घूमना सब कुछ ही चलता रहा परन्तु फिर भी मन था कि किसी काम में लग नहीं रहा था . ऐसे में जब कुछ नहीं सूझता तो मैं पुस्तकालय चली जाया करती हूँ और वहां से…
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ये मेरा दुर्भाग्य ही है कि अधिकांशत: भारत से बाहर रहने के कारण,आधुनिक हिंदी साहित्य को पढने का मौका मुझे बहुत कम मिला.बारहवीं में हिंदी साहित्य विषय के अंतर्गत जितना पढ़ सके वह एक विषय तक ही सीमित रह जाया करता था.उस अवस्था में मुझे प्रेमचंद और अज्ञेय की कहानियाँ सर्वाधिक पसंद थीं परन्तु और भी बहुत नाम सुनने में आते रहते थे या पत्र…
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अभी कुछ दिन पहले दिव्या माथुर जी ((वातायन की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष यू के हिंदी समिति) ) ने अपनी नवीनतम प्रकाशित कहानी संग्रह “2050 और अन्य कहानियां” मुझे सप्रेम भेंट की .यहाँ हिंदी की अच्छी पुस्तकें बहुत भाग्य से पढने को मिलती हैं अत: हमने उसे झटपट पढ़ डाला.बाकी कहानियां तो साधारण प्रवासी समस्याओं और परिवेश पर ही थीं परन्तु आखिर की दो कहानियों ” 2050…