रुकते थमते से ये कदम अनकही कहानी कहते हैं यूँ ही मन में जो उमड़ रहीं ख्यालों की रवानी कहते हैं रुकते थमते….. सीने में थी जो चाह दबी होटों पे थी जो प्यास छुपी स्नेह तरसती पलकों की दिलकश कहानी कहते हैं रुकते थमते…. धड़कन स्वतः जो तेज हुई अधखिले लव जो मुस्काये माथे पर इठलाती लट की नटखट…
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देवनागरी लिपि है मेरी, संस्कृत के गर्भ से आई हूँ. प्राकृत, अपभ्रंश हो कर मैं, देववाणी कहलाई हूँ. शब्दों का सागर है मुझमें, झरने का सा प्रभाव है. है माधुर्य गीतों सा भी, अखंडता का भी रुआब है. ऋषियों ने अपनाया मुझको, शास्त्रों ने मुझे संवारा है. कविता ने फिर सराहा मुझको, गीतों ने पनपाया है. हूँ गौरव आर्यों का…
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अपनी अभिलाषाओं का तिनका तिनका जोड़मैने एक टोकरा बनाया था,बरसों भरती रही थी उसेअपने श्रम के फूलों से,इस उम्मीद पर किजब भर जायेगा टोकरा तो,पूरी हुई आकाँक्षाओं को चुन केभर लुंगी अपना मन।तभी कुछ हुई कुलबुलाहट मन मेंधड़कन यूँ बोलती सी लगीदेखा है नजरें उठा कर कभी?उस नन्ही सी जान को बसहै एक रोटी की अभिलाषा उस नव बाला को बसहै रेशमी आँचल…