देवनागरी लिपि है मेरी,
संस्कृत के गर्भ से आई हूँ.
प्राकृत, अपभ्रंश हो कर मैं,
देववाणी कहलाई हूँ.
शब्दों का सागर है मुझमें,
झरने का सा प्रभाव है.
है माधुर्य गीतों सा भी,
अखंडता का भी रुआब है.
ऋषियों ने अपनाया मुझको,
शास्त्रों ने मुझे संवारा है.
कविता ने फिर सराहा मुझको,
गीतों ने पनपाया है.
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो,
मुझसे भारत की पहचान।
भारत माँ के माथे की बिंदी,
है हिन्दी मेरा नाम.
संस्कृत के गर्भ से आई हूँ.
प्राकृत, अपभ्रंश हो कर मैं,
देववाणी कहलाई हूँ.
शब्दों का सागर है मुझमें,
झरने का सा प्रभाव है.
है माधुर्य गीतों सा भी,
अखंडता का भी रुआब है.
ऋषियों ने अपनाया मुझको,
शास्त्रों ने मुझे संवारा है.
कविता ने फिर सराहा मुझको,
गीतों ने पनपाया है.
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो,
मुझसे भारत की पहचान।
भारत माँ के माथे की बिंदी,
है हिन्दी मेरा नाम.
बहुत सुन्र्दर कविता है शिखा जी।
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो
मुझसे भारत की पहचान
भारत माँ के माथे की बिंदी
है हिंदी मेरा नाम
बिल्कुल सही है।
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो
मुझसे भारत की पहचान
भारत माँ के माथे की बिंदी
है हिंदी मेरा नाम
haan ! main bharat ka gaurav hoon………. main hindi hoon………..
bahut hi saarthak kavita……..
बहुत सुंदर शिखा जी…कमाल की रचना है…
सुन्दर रचना के माध्यम से हिंदी का परिचय कराना …एक सुखद अनुभूति हुई
बधाई
हिन्दी की सुंदर परिभाषाएँ काव्य रूप में वर्णित..
अत्यन्त सुंदर गीत…बधाई
हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तान हमारा …….. हिंदी पर लाजवाब रचना ……..
ऋषियों ने अपनाया मुझको
शास्त्रों ने मुझे संवारा है
कविता ने फिर सराहा मुझको
गीतों ने पनपाया है.
शिखा जी मात्र- भाषा का सम्मान बढाती एक सशक्त रचना है आपकी ……बधाई ….!!
ब्लॉग पर जर्रा नवाजी का शुक्रिया …..आप तो स्वयं प्रतिभा संपन्न हैं ….रुसी में तो बहुत अच्छी कवितायें लिखी जा रही है उन्हें हम तक पहुचाइए …. आपकी तो रुसी भाषा पर भी पकड़ अच्छी है ( जैसा की आपने अपनी प्रोफाइल में लिखा है ) तो आप रुसी में भी अनुदित कर सकती हैं ….!!
वाह,,, बहुत सुंदर
शिखा जी,
हिंदी के लिए
आपने एक अनूठी रचना का सर्जन करके
हिंदी-प्रेमियों का दिल जीत लिया!
इस रचना की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है!
आपके हिंदी(देवनागरी)-प्रेम को देखते हुए
आपके ब्लॉग का
रोमन लिपि में लिखा हुआ शीर्षक
बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है!
शुक्रिया रवि जी आपका कहना बिलकुल सच है मेरा ध्यान इस और आकर्षित करने के लिए बहुत आभारी हूँ.
हरकीरत जी आपका सुझाव बहुत ही उम्दा है मैं जरुर कोशिश करुँगी और जल्दी
ही आपको रुसी साहित्य हिंदी मैं मिलेगा.तहे दिल से शुक्रिया आपका
हिंदी पर लिखी गई आपकी यह कविता भारत में रहने वाले उन अंग्रेजीदां लोगों के लिए सबक होगी … जो हिंदी को गरीबों की भाषा मानने लगे हैं और हर अवसर पर अंग्रेजी को ही प्रधानता देते हैं ।
हरकिरत जी का सुझाव अच्छा है, कृपया कुछ नई रुसी कविताओं का अनुवाद प्रस्तुत कर अनुगृहीत करें ।
शिखा जी!
आपने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया,
उसे अपनाया भी – आज यह देखकर सुखद अनुभूति हुई! शुभकामनाएँ!
वाह बहुत खूबसूरती से आपने देवनागरी की महिमा की है !! अति सुन्दर!!
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो
मुझसे भारत की पहचान
जी हाँ ऐसी है हमारी हिन्दी
मातृभाषा प्रेम स्पष्ट दृष्टिगोचर है.
शिखा जी
बहुत सुंदर रचना
bahut acchi kavita.. isi naam se maine bhi hindi diwas par ek kavita likhi thi..
हूँ गौरव आर्यों का मैं तो
मुझसे भारत की पहचान
भारत माँ के माथे की बिंदी
है हिंदी मेरा नाम
राष्ट्र और राष्ट्र भाषा को कृतज्ञता ज्ञापन का आपका अंदाज अनुकरणीय हैं…बहुत सुन्दर कविता…..
आ. शिखा जी नमस्कार कमाल है आपका ब्लॉग तो इतना सुंदर और आर्कषक है कि नजर को हटाना पड़ रहा है।हालांकि किसी रचना को पढ़ा नहीं बस देखा भर ही हूं पर आपका प्रेम और हिन्दी को लेकर लगाव से तो मन भर गया।मैं अपने ब्लॉग में आपकी कुछ रचनाओं को पोस्ट करूंगा। आपसे ौर आपके बारे में जानना रास आएगा क्योंति आप तो हिन्दी के मशाल को विदेशों में लहरा रही हैं , जिस पर हम लोगों को गर्व है। सादर नमस्कार सहित
अनामी शरण बबल / 0986856850109015053886
asb.deo@gmail.com
asbmassindia.blogspot.com
Hello! I could have sworn I’ve been to this blog before but after browsing through some of the post I realized it’s new to me. Anyways, I’m definitely happy I found it and I’ll be book-marking and checking back frequently!
आपकी लिखी रचना “सांध्य दैनिक मुखरित मौन में” आज गुरुवार 22 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है…. “सांध्य दैनिक मुखरित मौन में” पर आप भी आइएगा….धन्यवाद!
बहुत शुक्रिया
बहुत ही सुन्दर
वाह!!!