देशकाल, परिवेश जो भी हो. सभ्यता के प्रारंभ से ही मनुष्य प्रकृति की तरफ आसक्त था. वह जानता था कि प्रकृति सबसे महत्वपूर्ण है अत: प्रकृति को ही पूजता था. उसी के संरक्षण के लिए उसने अपनी आस्था से जुड़े त्यौहार और रिवाज बनाये जिससे कि लोग उनका पालन श्रृद्धा के साथ कर सकें. यही कारण है कि आज भी…

तब डबल बेड पर चार और लोगों के साथ सिकुड़े – सिकुड़े लेट कर सोने में जो सुकून आता था, आज किंग साइज़ के पलंग पर फ़ैल कर सोने में भी नहीं आता. वह सुकून आपसी विश्वास का था. इस विश्वास का कि आजू बाजू जो लोग हैं वे अपने हैं, साथ हैं और हमेशा साथ और यदि हम साथ साथ हैं…

  हम गुजरे तो खुली गली, तँग औ तारीक़ में बदल गयी इस कदर बदलीं राहें कि, मंजिल ही बदल गई . शाम को करने लगे जब, रोशन सुबहों का हिसाब. जोड़ तोड़ कर पता लगा कि असल बही ही बदल गई. झक दीवारों पर बनाए, स्याही से जो चील -बिलाव देखा पलट जो इक नजर वो इमारत ही बदल…

इस आदम कद दुनिया में, लोगों का सैलाब है पर इंसान कहाँ हैं? रातों के अंधेरे मिटाने को, बल्ब तो तुमने जला दिए पर रोशनी कहाँ है? तपते रेगिस्तानों में भी बना दी झीलें तुमने पर आंखों का पानी कहाँ है? सजाने को देह ऊपरी, हीरे जवाहरात बहुत हैं पर चमकता ईमान कहाँ है? इस कंक्रीट के जंगल में मकान…

वह होने को तो एक ड्यूप्लेक्स घर था तीन कमरों वाला पर उसे दो घरों के तौर पर किराये पर दिया गया था। लन्दन के इस तरह के देसी बहुल इलाकों में मकान मालिकों ने इसी तरह कर रखा है। 30-35 साल से यहाँ रह रहे हैं, कमा – बचा कर खूब सारे घर खरीद लिए और फिर उनके 2…

कभी उस दुखी दिखती, बिसूरती औरत के कलेजे में  झाँक कर देखना जिसे तुमने कह दिया कि सुखी तो है फिर भी रोती है क्या कमी है जो आँचल खारे पानी से भिगोती है. कभी ज़रा प्यार से देखना उसका कंधा दबा कर शायद फिर सच्चे लगें तुम्हें उसके वो आँसू जिन्हें तुमने खारिज कर दिया मगरमच्छी बता कर. ज़रा उसके…

आज भी जब हो जाते हैं मन के विचार गड्डमड्ड डिगने लगता है आत्मविश्वास डगमगाने लगता है स्वाभिमान नहीं सूझती कोई राह उफनने लगता है गुबार छूटने लगती है हर आस तो दिल मचल कर कहता है तुम कहाँ हो ? यहाँ क्यों नहीं हो? फिर एक किरण आती है नजर भंवर में जैसे मिल जाती है डगर भेद सन्नाटा…

अंधेरों के दरवाजों में ताले नहीं होते. उनकी चाबियाँ भी नहीं होतीं. इसलिए उन्हें लॉक नहीं किया जा सकता. बस भेड़ा जा सकता है जो मिलते ही ज़रा सी नकारात्मकता की ठेल, खुल जाते हैं और फ़ैल जाता है सारा अँधेरा आपके मन मस्तिष्क पर. उसमें खो जाता है आपका अस्तित्व और गुम हो जाते हैं आप. नहीं दिखाई पड़ते किसी…

विज्ञान कभी भी अपने दिमाग के दरवाजे बंद नहीं करता। बेशक वह दिल की न सुनता हो परंतु किसी भी अप्रत्याशित, असंभव या बेबकूफाना लगने वाली बात पर भी उसकी संभावनाओं की खिड़की बन्द नहीं होती। यही कारण है कि आज हम बिजली का बल्ब, हवाई जहाज या टेलीफोन जैसी सुविधाओं का सहजता से उपयोग करते हैं जिनकी इनके अविष्कार…

  भाषा – सिर्फ शब्दों और लिपि का ताना बाना नहीं होती. भाषा सम्पूर्ण संस्कृति होती है और अपने पूरे वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है. खासकर यदि वह भाषा किसी पाठ्यक्रम में इस्तेमाल की जाए वह भी छोटे बच्चों के तो उसपर थोड़ा विचार अवश्य किया जाना चाहिए. क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा और किताबों का उद्देश्य नौकरी दिलाना या साहित्य पढ़ाना…