यह साल खास था. कुछ अलग. अलग नहीं, बहुत अलग. इतना अलग कि मैं मुड़ मुड़ कर देखती रही, पूछती रही – “ ए जिन्दगी ! तुम मेरी ही हो न? किसी और से बदल तो न गईं? तुम ऐसी तो न थीं.

न जाने कितना कुछ अप्रत्याशित घटा. कितने ही पल ऐसे आये जिन्हें दुनिया ख़ुशी कहती है. मैं उन्हें हैरान सी समेटती रही. क़ायनात अपना हाथ बढ़ा कर कहती रही – आ मेरी ऊंगली थाम ! मैं उसके सहारे सहारे चलती तो रही पर कहीं अन्दर डर बसा रहा. रह रह कर उचक जाती. थम जाती कि कहीं इसमें भी इसकी कोई चाल तो नहीं. ऊंगली थाम कर कहीं किसी खाई में धकेल देगी. आखिर इसका पिछला रिकॉर्ड अच्छा न था. ऐसे ही न जाने कितनी बार गुलाब में लपेट कर कांटे पकड़ाए थे इसने.

बेचैनियों ने भी बाएं से दायें करवट ली. उनकी स्थिति बदली तो उनका अंदाज भी बदला. परन्तु अब इन बैचेनियों को सुलाना मुझे आ गया है. ज़रा ऊंघते देख थपकी देकर सुला देती हूँ. इस साल ने मुझे और बहुत सी बातों के अलावा यह भी सिखाया है कि बेचैनियों को सिर पर नहीं चढ़ाना वर्ना वो इतना उत्पात मचाती हैं कि जीना दूभर कर देती हैं.

अब यह इसकी चाल हो या बदलाव हो. प्यार हो या प्रायश्चित हो. जो भी हो. यह इस साल का एहसान रहेगा मुझपर. ढलते सूरज की रौशनी को उजाला समझ अपनाना सिखाया इसने. आधा जीवन इस साल पूरा हुआ और जीवन को पूरा जीना सिखाया इसने. इस एक साल की बदोलत आगे की जिन्दगी का आलिंगन शायद आसान होगा साल 2023 तेरा शुक्रिया !