सबसे पहले तो हिंदी साहित्य के सभी गुणीजनों और ब्लॉगजगत के सभी साहित्यकारों से हाथ जोड़ कर और कान पकड़ कर माफी .कृपया इस पोस्ट को निर्मल हास्य के रूप में लें . हमारे हिंदी साहित्य में बहुत ही खूबसूरत और सार्थक विधाएं हैं और इनमें बहुत से रचनाकारों ने अपनी सिद्धता भी दर्ज की है .परन्तु मेरे खुराफ़ाती या…

इसके बाद …हम अपने पाठ्यक्रम के चौथे वर्ष में आ पहुंचे थे …..और मॉस्को अपनी ही मातृभूमि जैसा लगने लगा था .वहां के मौसम , व्यवस्था ,सामाजिक परिवेश सबको घोट कर पी गए थे .अब हमारे बाकी के मित्र छुट्टियों में दौड़े छूटे भारत नहीं भागा करते थे , वहीं अपनी छुट्टियाँ बिताया करते थे या मोस्को का प्रसिद्द व्…

अब तक के २ साल आपने यहाँ पढ़े. तीसरे साल में पहुँचते पहुँचते मेरे लेख अमरउजाला, आज, और दैनिक जागरण जैसे समाचार पत्रों में छपने लगे थे जिन्हें मैं डाक से भारत भेजा करती थी ,यूँ तो स्कूल के दिनों से ही मेरी अधकचरी कवितायेँ स्थानीय पत्रिकाओं में जगह पा जाती थीं पर स्थापित पत्रों में फोटो और परिचय के साथ…