सुना है 21 दिसंबर को प्रलय आने वाली है ..पर क्या प्रलय आने में कुछ बाकी बचा है ?.भौतिकता इस कदर हावी है की मानवता गर्त में चली गई है, बची ही कहाँ है इंसानों की दुनिया जो ख़तम हो जाएगी।मन बहुत खराब है .. यूँ राहों पर कुलांचे भरती पल में दिखती पल में छुपती मृगनयनी वो दुग्ध.धवल सी चंचल चपल वो युव…
अपनी स्कॉटलैंड यात्रा के दौरान एडिनबरा के एक महल को दिखाते हुए वहां की एक गाइड ने हमें बताया कि उस समय मल विसर्जन की वहां क्या व्यवस्था थी। महल में रहने वाले राजसी लोगों के पलंग के नीचे एक बड़ा सा कटोरा रखा होता था। जिसमें वह नित मल त्याग करते थे और फिर उसे सेवक ले जाकर झरोखों / खिडकियों से नीचे…
सुबह उठ कर खिड़की के परदे हटाये तो आसमान धुंधला सा लगा। सोचा आँखें ठीक से खुली नहीं हैं अँधेरा अभी छटा नहीं है इसलिए ठीक से दिखाई नहीं दे रहा। यहाँ कोई इतनी सुबह परदे नहीं हटाता पारदर्शी शीशों की खिड़कियाँ जो हैं। बाहर अँधेरा और घर के अन्दर उजाला हो तो सामने वाले को आपके घर के अन्दर का हाल साफ़ नजर आता…
बंद खिड़की के शीशों से झांकती एक पेड़ की शाखाएं लदी – फदी हरे पत्तों से हर हवा के झोंके के साथ फैला देतीं हैं अपनी बाहें चाहती है खोल दूं मैं खिड़की आ जाएँ वो भीतर लुभाती तो मुझे भी है वो सर्द सी ताज़ी हवा वो घनेरी छाँव पर मैं नहीं खोलती खिड़की नहीं आने देती उसे अन्दर शायद…
कभी कभी कुछ भाव ऐसे होते हैं कि वे मन में उथल पुथल तो मचाते हैं पर उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए हमें सही शैली नहीं मिल पाती। समझ में नहीं आता की उन्हें कैसे लिखा जाये कि वह उनके सटीक रूप में अभिव्यक्त हों पायें। ऐसा ही कुछ पिछले कई दिनों से मेरे मन चल रहा था। अचानक कैलाश गौतम जी की…
देश में आजकल माहौल बेहद राजनीतिक हो चला है. समाचार देख, सुनकर दिमाग का दही हो जाता है.ऐसे में इसे ज़रा हल्का करने के लिए कुछ बातें मन की हो जाएँ. हैं एक रचना लिखने के लिए पहले सौ रचनाएँ पढनी पड़ती हैं।परन्तु कभी कभी कोई एक रचना ही पढ़कर ऐसे भाव विकसित होते हैं मन में, कि रचना में ढलने को…
हालाँकि प्रीव्यू देखकर लग रहा था की फिल्म ऐसी नहीं होगी जिसके लिए जेब हल्की की जाये। परन्तु यश चोपड़ा नाम ऐसा था कि, उनके द्वारा निर्देशित अंतिम फिल्म देखना अनिवार्य सा था। आखिरकार एक रविवार यश चोपड़ा को श्रद्धांजलि देने के तौर पर हमने “जब तक है जान” के नाम कर दिया। और जैसा कि अंदाजा लगाया था कि शाहरुख़ का क्रेज…
आँखों में ये खारा पानी कहाँ से आता है किस कैमिकल लोचे से यह होता है,सबसे पहले किसकी आँख में यह लोचा हुआ और क्यों ? और कब इसे एक इमोशन से जोड़ दिया गया,और कब एक स्त्रियोचित गुण बना दिया गया,यह सब हमें नहीं मालूम। हाँ इतना जरूर मालूम है कि, काफी समय से इस पर महिलाओं की मोनोपोली रही है। मर्दों के लिए यह…
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता . बहुत छोटी थी मैं जब यह ग़ज़ल सुनी थी और शायद पहली यही ग़ज़ल ऐसी थी जो पसंद भी आई और समझ में भी आई। एक एक शेर इतनी गहराई से दिल में उतरता जाता कि आज भी कोई मुझे मेरी पसंदीदा गजलों के बारे में…
बोर हो गए लिखते पढ़ते आओ कर लें अब कुछ बातें कुछ देश की, कुछ विदेश की हलकी फुलकी सी मुलाकातें। जो आ जाये पसंद आपको तो बजा देना कुछ ताली पसंद न आये तो भी भैया न देना कृपया तुम गाली। एक इशारा भर ही होगा बस टिप्पणी बक्से में काफी जिससे अगली बार न करें हम ऐसी कोई गुस्ताखी। तो…