बंद खिड़की के शीशों से 
झांकती एक पेड़ की शाखाएं 
लदी – फदी हरे पत्तों से 
हर हवा के झोंके के साथ 
फैला देतीं हैं अपनी बाहें 
चाहती है खोल दूं मैं खिड़की
आ जाएँ वो भीतर 
लुभाती तो मुझे भी है 
वो सर्द सी ताज़ी हवा 
वो घनेरी छाँव 
पर मैं नहीं खोलती खिड़की 
नहीं आने देती उसे अन्दर
शायद घर में पड़े 
पुराने पर्दों के उड़ जाने का 
डर लगता है मुझे .