आलेख

मेरे ऑफिस की खिड़की से दीखता है, बड़े पेड़ का एक छोटा सा टुकड़ा। जो छुपा लेता है उसके पीछे की सभी अदर्शनीय चीजों को. उन सभी दृश्यों को जिन्हें किसी भी नजरिये से खूबसूरत नहीं कहा जा सकता। फिर भी उन शाखाओं के पीछे से मैं  झाँकने की कोशिश  करती रहती हूँ. उन हरी हरी पत्तियों के पीछे भूरी -भूरी  …

अपने बाकी साथियों से कुछ अलग थी वो. हालाँकि काम वही करती थी. गाने भी वही गाती थी, चलती भी वैसे ही थी और नाचती भी वैसे ही थी. परन्तु न बोली में अभद्रता थी, न ही स्वभाव में लालच और न ही ज़रा सा भी गुस्सा या किसी तरह की हीन भावना  उसके स्वभाव में एक सौम्यता थी, वाणी में विनम्रता और उसका…

सृष्टि की शुरुआत से ही दो तरह के मनुष्यों का उदय हुआ , एक नर और एक नारी। जो शारीरिक रूप से एक दूसरे से भिन्न थे. अत: उन्हें मानसिक और भावात्मक रूप से भी एक दूसरे से भिन्न मान लिया गया. जॉन ग्रे ने तो अपनी प्रसिद्द पुस्तक में यहाँ तक कह डाला कि स्त्री और पुरुष अलग अलग गृह के निवासी…

बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा। न जाने क्यों नहीं लिखा। यूँ व्यस्तताएं काफी हैं पर इन व्यस्तताओं का तो बहाना है. आज से पहले भी थीं और शायद हमेशा रहेंगी ही. कुछ लोग टिक कर बैठ ही नहीं सकते। चक्कर होता है पैरों में. चक्कर घिन्नी से डोलते ही रहते हैं. न मन को चैन, न दिमाग को, न ही पैरों को.…

जब से इस दुनिया की आधी आबादी ने अपने अस्तित्व की लड़ाई आरम्भ की तब से अब तक यह लड़ाई न जाने किन किन मोड़ों से गुजरी। कभी चाहरदिवारी से निकल कर बाहर की दुनिया में कदम रखने के लिए लड़ी गई, कभी शिक्षा का अधिकार मांगती, कभी अपने फैसले खुद करने के लिए लड़ती तो कभी कार्य क्षेत्र में समान अधिकारों की मांग…

जब से सोचने समझने लायक हुई, न जाने कितने सपने खुली आँखों से देखे. कभी कोई कहता कोरे सपने देखने वाला कहीं नहीं पहुंचता तो कभी कोई कहता कोई बात नहीं देखो देखो सपने देखने के कोई दाम पैसे थोड़े न लगते हैं.पर उनमें ही कुछ बेहद पोजिटिव और मित्र किस्म के लोग भी होते जो कहते कि अरे सपने…

हमारी भारतीय संस्कृति में “दान” हमेशा छुपा कर करने में विश्वास किया जाता रहा है.कहा भी गया है कि दान ऐसे करो कि दायें हाथ से करो तो बाएं हाथ को भी खबर न हो. ऐसे में अगर यह दान “शुक्राणु दान ” हो तो फिलहाल हमारे समाज में इसे छुपाना लगभग अनिवार्य ही हो जाता है.हालांकि हाल में ही…

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. और आपस में मिलजुल कर उत्सव मनाना उसकी जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है। जब से मानवीय सभ्यता ने जन्म लिया उसने मौसम और आसपास के परिवेश के अनुसार अलग अलग उत्सवों की नींव डाली, और उन्हें आनंददायी बनाने के लिए तथा एक दूसरे से जोड़ने के लिए अनेकों रीति रिवाज़ों को बनाया। परिणामस्वरूप स्थान व स्थानीय सुविधाओं को देखते हुए आपस में मिलजुल कर…

यूँ सामान्यत: लोग जीने के लिए खाते हैं परन्तु हम भारतीय शायद खाने के लिए ही जीते हैं. सच पूछिए तो अपने खान पान के लिए जितना आकर्षण और संकीर्णता मैंने हम भारतीयों में देखी है शायद दुनिया में किसी और देश, समुदाय में नहीं होती।  एक भारतीय, भारत से बाहर जहाँ भी जाता है, खान पान उसकी पहली प्राथमिकता भी होती है और मुख्य…

भाषा – मेरे लिए एक माध्यम है अभिव्यक्ति का. अपनी बात सही भाव में अधिक से अधिक दूसरे  तक पहुंचाने का. अत: मैं यह मानती हूँ कि जितनी भी भाषाओं का ज्ञान हो वह गर्व की बात है परन्तु तब तक, जब तक किसी भाषा को हीन बना कर वह गर्व न किया जाये।  यूँ जरुरत के वक़्त भाषा को किसी…