काली अँधेरी रात से हो सकता है डर लगता हो तुमको मैं तो अब भी स्याह रात में तेरी याद का दिया जलाती हूँ। ये दिन तो गुजर जाता है दुनिया के रस्मो रिवाजों में रात के आगोश में अब भी, मैं गीत तेरे गुनगुनाती हूँ। दिन के शोर शराबे में सुन नहीं सकता आहें मेरी इसलिए रात के संन्नाटे…
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तुम पर मैं क्या लिखूं माँ,तेरी तुलना के लिएहर शब्द अधूरा लगता हैतेरी ममता के आगेआसमां भी छोटा लगता हैतुम पर मैं क्या लिखूं माँ. याद है तुम्हें?मेरी हर जिद्द कोबस आख़िरी कहपापा से मनवा लेती थी तुम.मेरी हर नासमझी कोबच्ची है कहटाल दिया करती थीं तुम.तुम्हारा वह कठिन श्रम तब मुझे समझ आता था कहाँ तुम पर मैं क्या…