एक ज्योतिषी ने एक बार कहा था
उसे वह मिलेगा सब
जो भी वह चाहेगी दिल से
उसने मांगा
पिता की सेहत,
पति की तरक्की,
बेटे की नौकरी,
बेटी का ब्याह,
एक अदद छत.
अब उसी छत पर अकेली खड़ी
सोचती है वो
क्या मिला उसे ?
ये पंडित भी कितना झूठ बोलते हैं.
उसे वह मिलेगा सब
जो भी वह चाहेगी दिल से
उसने मांगा
पिता की सेहत,
पति की तरक्की,
बेटे की नौकरी,
बेटी का ब्याह,
एक अदद छत.
अब उसी छत पर अकेली खड़ी
सोचती है वो
क्या मिला उसे ?
ये पंडित भी कितना झूठ बोलते हैं.
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चाहते हैं हम कि बन जाएँ रिश्ते
जरा से प्रयास से
थोड़ी सी गर्मी से
और थोड़े से प्यार से
पर रिश्ते दही तो नहीं
जो जम जाए बस दूध में
ज़रा सा जामन मिलाने से .
आखिर क्यूँ कर कोई उन्हें कहे अपना
जो देते हैं यह बहाना अपनी दूरी का कि
तुम्हारे करीब लोगों का जमघट बहुत है
अपना तो वो हो जो मिले जमघट में भी
अपनों की तरह, पूरे अधिकार से
superb 🙂
Baap re kitni gehri panktiyaan ….hats off
क्या गजब-गजब की कवितायें लिखी हैं ! 🙂
Pehli rachna bahut pasand aayee…
तीनों के अलग राग हैं. एक रागमालिका. पहली कविता बहुत अच्छी लगी.
रिश्ते जो कभी नहीं छुटते और कभी टूट कर भी नहीं टूटते …एक अहसास के साथ
वाह … बहुत खूब … 🙂
ये पंडित भी कितना झूठ बोलते हैं
झूठ न बोले तो अमिताभ बच्चन जैसे सरीखे लोग को लूट कर 80 करोड़ की महबूबा कैसे रखे
शानदार रचना
rishton ki lahlhaati fasal maangi usne…
magar us fasal ko kaat le gaya koi aur….
ab to banjar zameen ke alaawa kuch na bacha
bahut sundar prastuti—–!
चाहते हैं हम कि बन जाएँ रिश्ते
जरा से प्रयास से
थोड़ी सी गर्मी से
और थोड़े से प्यार से
पर रिश्ते दही तो नहीं
जो जम जाए बस दूध में
ज़रा सा जामन मिलाने से .——–
सहजता से कही जीवन के संदर्भ में गहरी बात
बधाई
आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
http://jyoti-khare.blogspot.in
रिश्तों में जीवन का फलसफा ही कह डाला ….गहन हृदयस्पर्शी अभिव्यक्तियाँ …शिखा …!!
बहुत खूब…सामान्य से दीखते ये शब्द कितने गहरे उतर जातें हैं दिल में…बधाई, इन खूबसूरत पंक्तियों के लिए…|
प्रियंका
रिश्ते होते ही हैं ऐसे – वसूल लेते हैं सब और छोड़ जाते रिक्तता-बोध!
रिश्तो की पैमाईश में शब्दों की बुनावट दिल को छू गई. एकबात है रिश्तों के हर रंग रूप पर आप बहुत ही सटीक दृष्टि डालती हो .
रिश्तों की कोमल बुनियाद पर बड़े ही नाज़ुक सवाल उठाती हुई क्षणिकाएं.. सचमुच दिल पर असर करती है!!
आपकी यह रचना कल मंगलवार (21 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (21-05-2013) के मंगलवारीय चर्चा—(1251)— पत्ते, आँगन, तुलसी मा… में मयंक का कोना पर भी है!
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुभ प्रभात दीदी
आनन्द आया
सीखा मैंने
और जाना भी
रिश्तों की
विस्तृत परिभाषा
हँसाते भी हैं…
ये रिश्ते..
और जमकर रुला भी देते है
यही रिश्ते
सच को परिभाषित करती रचना
सादर
तीनों एहसास लाजवाब … कुछ हकीकत के करीब …
दूर तक सोच के साथ जाते हुए …
कई बात अंत में उसके साथ वो छत भी नहीं बचती है 🙁
अपने लिए कुछ न मांग कर दूसरों की खुशी से खुश हो जाने वाली नारी ही है जो अंत में यूं ही अकेली पड़ जाती है ….. सुंदर प्रस्तुति ….
रिश्तों पर और अपनों के अधिकार पर सुंदर क्षणिकाएं
जब माँगा सब दूसरों के लिए तो अपने लिए तन्हाई ही थी !
रिश्ते बनने पर अटकी हूँ , बन तो सकते हैं थोड़े से प्रेम थोड़ी से प्रयास से , मगर निभाने के लिए बड़ा जिगर चाहिए !!
और आखिरी पंक्तियों में तो बड़ी बात है ! जो भीड़ में होकर अपना हो , वही अपना है , अकेलेपन में सबको ही अपनों की जरुरत होती है !
दार्शनिक अंदाज़ बहुत लुभाया !
तीनो लाजवाब
भावपूर्ण रचनाएं बहुत अच्छी लगीं |
आशा
पंडित झूठ कब बोला ? सब कुछ मिला और फिर छूट जाने की बात तो शाश्वत सत्य है , इसा संसार में कब सरे रिश्ते और और सारी चीजें हमेशा साथ रहती हैं . अपना आत्मा और भी तो एक दिन ……………..
तीनों ही रचनाएं दार्शनिकता का भाव लिये हुये हैं लेकिन जीवन की सच्चाई से रूबरू हैं, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अपना तो वो हो जो मिले जमघट में भी..aisehee kisee apne kee talash jeewanbhar rahi….
आखिर क्यूँ कर कोई उन्हें कहे अपना
जो देते हैं यह बहाना अपनी दूरी का कि
तुम्हारे करीब लोगों का जमघट बहुत है
अपना तो वो हो जो मिले जमघट में भी
अपनों की तरह, पूरे अधिकार से
बहुत खूब !गर्म जोशी ही रिश्तों की जान है ,शान है और आन है .
आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग पार आना हुआ ..सभी रचनाएँ बेहतरीन ,,एक ताजगी लिए हुए ..एक खिली हुई नयी कलि की तरह सुवासित..बहुत पहले आपकी खूंटी पर टंगी कमीज ..रचना जैसी कुछ नया पण लगा ..सादर बधाई के साथ .
रिश्ते बड़े अजीब हैं कहीं बनाते नहीं बनते और कहीं यूं ही बन जाते हैं …पर रिश्ते निभाना बड़ा ही कठिन है। करीब के रिश्ते में दूरी नहीं होती ।
बहुत सुंदर क्षणिकाएँ ।
संबंधों का स्वरूप कहाँ पूरी तरह से प्रकट हुआ है, बहुत ही सुन्दर कविता।
गहन अर्थ और गहन भाव ..तीनो में ।
अंतर्मन को छूती हुई भी और कचोटती हुई भी ।
पहले का ज़वाब दूसरे में है। ज़ाहिर है , पंडित की क्या गलती।
जमघट में अपने तो कम ही होते हैं , यह समझना भी ज़रूरी है।
आज बहुत गहरी बातें कही हैं।
This comment has been removed by the author.
बहुत गहराई हे आपकी लेखनी में…..
http://ansh-mydiaries.blogspot.in/
Kuchh Panktiyan,Bahut Kuchh Samete Hain…Lajawab.
अब उसी छत पर अकेली खड़ी
सोचती है वो
क्या मिला उसे ?
ये पंडित भी कितना झूठ बोलते हैं.
UF! Kya baat kah dee aapne!
Aapke blog pe muddaton baad aayee hun…kya baat hai!
ek adad rishte ki khatir
kai dafe
thanv-kuthanv bani zindagi
bhigi alav bani zindagi
parvat se samundar tak
nadi ki bahav bani zindagi
kabhi dhoop – kabhi chhanv bani zindagi
nadee me bhanwar aur bhanwar me
fasee nav bani zindagi
fir bhi
ek adad rishte ki khatir
chale kitni sadhi daav zindagi
-pradeep
तीन पहलुओं मे अभिव्यक्ति और खूबसूरत एहसास !
नाजुक एहसास खूब अभिव्यक्त हुए हैं।
बहुत खूब
रिश्ते दही तो नहीं जो जैम जाएं "
बहुत बढ़िया तुलना की है आपने |
उम्दा रचनाएं |
आशा
ब्लॉग बुलेटिन की ५५० वीं बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन की 550 वीं पोस्ट = कमाल है न मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
बढ़िया….
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