कल देखा था मैंने उसे वहीँ उस कोने में बैठा था चुपचाप मुस्काया मुझे देख सोचा होगा उसने कुछ तो करुँगी बहलाऊँगी ,मनाऊंगी फिर उठा लुंगी अहिस्ता से हमेशा ही होता है ऐसे. वो जब तब रूठ कर बैठ जाता है थोडा ठुनकता है, यहाँ वहां दुबकता है फिर मान जाता है. पर इस बार जैसे कुछ अलग है नहीं है हिम्मत मनाने की …
लोकार्पण सुश्री संगीता बहादुर ( डारेक्टर नेहरु सेंटर) १४ मार्च बुधवार की शाम को लन्दन स्थित नेहरु सेंटर में पुस्तक ” स्मृतियों में रूस ” का विमोचन हुआ .समारोह में सम्मानित अतिथि सुश्री संगीता बहादुर ने सर्प्रथम सभी का स्वागत करते हुए लेखिका को बधाई देते हुए अपनी बात शुरू की. श्री कैलाश बुधवार (पूर्व बी बी सी प्रमुख )ने पुस्तक…
लन्दन के एक मंदिर में त्यौहारों पर लगती लम्बी भीड़ त्यौहार पर मंदिर में लगती लम्बी भीड़, रंग बिरंगे कपड़े, बाजारों में, स्कूल के कार्यक्रमों में बजते हिंदी फ़िल्मी गीत,बसों पर लगे हिंदी फिल्म और सीरियलों के पोस्टर.और कोने कोने से आती देसी मसालों की सुगंध .क्या लगता है आपको किसी भारतीय शहर की बात हो रही है.है ना? जी नहीं यहाँ भारत के किसी शहर की नहीं…
नवभारत में प्रकाशित क्या पुरुष प्रधान समाज में, पुरुषों के साथ काम करने के लिए,उनसे मित्रवत सम्बन्ध बनाने के लिए स्त्री का पुरुष बन जाना आवश्यक है ?.आखिर क्यों यदि एक स्त्री स्त्रियोचित व्यवहार करे तो उसे कमजोर, ढोंगी या नाटकीय करार दे दिया जाता है और यही पुरुषों की तरह व्यवहार करे तो बोल्ड, बिंदास और आधुनिक या फिर चरित्र हीन .यूँ मैं कोई नारी वादी…







