कविता

अपनी अभिलाषाओं का तिनका तिनका जोड़मैने एक टोकरा बनाया था,बरसों भरती रही थी उसेअपने श्रम के फूलों से,इस उम्मीद पर किजब भर जायेगा टोकरा तो,पूरी हुई आकाँक्षाओं को चुन केभर लुंगी अपना मन।तभी कुछ हुई  कुलबुलाहट मन मेंधड़कन यूँ बोलती सी लगीदेखा है नजरें उठा कर कभी?उस नन्ही सी जान को बसहै एक रोटी की अभिलाषा उस नव बाला को बसहै रेशमी आँचल…

दूर क्षितिज पे सूरज ज्यूँ ही डूबने लगा गहन निशब्द निशा के एहसासों ने उसके जीवन के प्रकाश को ढांप दिया हौले हौले अस्त होती किरणों की तरह उसके मन की रौशनी भी डूब रही थी इधर खाट पर माँ अधमरी पड़ी थी और छोटी बहन के फटे फ्रॉक पर जंगली चीलों की नज़र गड़ी थी। उसी क्षण उसके अन्दर…

हो वेदकलीन तू मनस्वी या राज्य स्वामिनी तू स्त्री रही सदा ही पूजनीय  तू बन करुणा त्याग की देवी  सीता भी तू, अहिल्ल्या भी तू रंभा भी तू, जगदंबा भी तू है अगर गार्गी, मैत्रैई तो, रानी झाँसी, संयोगिता  भी तू फिर क्यों तू आज़ भटक रही? पुरुष समकक्ष  होने को लड़ रही? खो कर अस्तित्व ही अपना अधिकार ये…

आत्मा से जहन तक का, रास्ता नसाज है या भावनाओं का ही कुछ, पड़ गया आकाल है दिल के सृजनात्मक भाग में आज़कल हड़ताल है। हाथ उठते हैं मगर शब्द रचते ही नहीं होंट फड़कते हैं मगर बोल फूटते ही नहीं पन्नों से अक्षर का रिश्ता लग रहा दुश्वार है दिल के सृजनात्मक भाग में चल रही हड़ताल है  चल रहीं…

एक दिन पड़ोस की नानी और अपनी मुन्नी में ठन गई। अपनी अपनी बात पर दोनों ही अड्ड गईं। नानी बोली क्या जमाना आ गया है…  घड़ी घड़ी डिस्को जाते हैं,  बेकार हाथ पैर हिलाते हैं ये नहीं मंदिर चले जाएँ, एक बार मथ्था ही टेक आयें॥ मुन्नी चिहुंकी तो आपके मंदिर वाले डिस्को नहीं जाते थे? ये बात और…

ताल तलैये सूख चले थे,  कली कली कुम्भ्लाई थी ।  धरती माँ के सीने में भी  एक दरार सी छाई थी।   बेबस किसान ताक़ रहा था,  चातक भांति निगाहों से,  घट का पट खोल जल बूँद  कब धरा पर आएगी….   कब गीली मिटटी की खुशबू  बिखरेगी शीत हवाओं में,  कब बरसेगा झूम के सावन  ऋतू प्रीत सुधा बरसायेगी।   तभी श्याम…

जानता है जल जायेगा  फिर भी  जाता है करीब शमा के वो  ये जूनून पतंगे का हमें,  इश्क करना सिखा गया।  बोस्कोदेगामा जब निकला कश्ती पर  खतरों से न वो अज्ञात था।  पर जूनून उसके भ्रमण का हमें  अपने भारत से मिला गया।  जो न होता जूनून शहीदों में  कैसे भला आजादी हम पाते  जो न होता जूनून भगीरथ को  कैसे…

कुछ कोमल से अहसास हैं  कुछ सोये हुए ज़ज्वात हैं  है नहीं ये ज्वाला कोई  सुलगी सुलगी सी आग है  कुछ और नहीं ये प्यार है।   धड़कन बन जो धड़क रही  ज्योति बन जो चमक रही  साँसों में बसी सुगंध सी  महकी महकी सी बयार है  कुछ और नहीं ये प्यार है।   हो कोई रागिनी छिडी जेसे  रिमझिम पड़ती बूंदे…

कंपकपाते पत्ते पर ठहरी एक बूँद ओ़स की बचाए हुए किसी तरह खुद को तेज़ हवा उड़ा न दे धूप कहीं सुखा न दे उतरी है आकाश से गिर न जाये धूल में पर आखिर मिलना पड़ता है उसे उसी मिट्टी में कंक्कड़ पत्थर के बीच ही और वो लुप्त हो जाती है उसी धूल मिटटी की धरा में प्राणी भी तो…

एक आंटी अंकल आये थे आज बड़ी सी चमचमाती कार में, वह बाते कर रहे थे दीदी से कुछ कागजों पर लिखा पढी भी की  सारा आश्रम देखा बाद में पूछा था उसने, तो दीदी ने बताया था, छोटू को लेने आये है छोटू को पूरा ग्लास दूध मिलेगा, बिना पानी मिला , मलाई वाला. और तीनों वक़्त का खाना भी,…