एक दिन उसने कहा कि नहीं लिखी जाती अब कविता लिखी जाये भी तो कैसे कविता कोई लिखने की चीज़ नहींवो तो उपजती है खुद ही फिर बेशक उगे कुकुरमुत्तों सी,या फिर आर्किड की तरहहर हाल में मालकिन है वो अपनी ही मर्जी की।कहाँ वश चलता है किसी का, जो रोक ले उसे उपजने से। हाँ कुछ भूमि बनाकर उसे बोया जरूर जा सकता है। बढाया भी जा सकता…
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भाव अर्पित,राग अर्पित शब्दों का मिजाज अर्पित छंद, मुक्त, सब गान अर्पित और तुझे क्या मैं अर्पण करूं। नाम अर्पित, मान अर्पित रिश्तों का अधिकार अर्पित रुचियाँ, खेल तमाम अर्पित और तुझे क्या मैं अर्पण करूँ शाम अर्पित,रात अर्पित तारों की बारात अर्पित आधे अधूरे ख्वाब अर्पित और तुझे क्या मैं अर्पण करूँ। रूह अर्पित, जान अर्पित जिस्म में चलती सांस अर्पित कर दिए सारे अरमान अर्पित अब और…
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रिश्ते मिलते हों बेशक स्वत: ही पर रिश्ते बनते नहीं बनाने पड़ते हैं। करने पड़ते हैं खड़े मान और भरोसे का ईंट, गारा लगा कर निकाल कर स्वार्थ की कील और पोत कर प्रेम के रंग रिश्ते कोई सेब नहीं होते जो टपक पड़ते हैं अचानक और कोई न्यूटन बना देता है उससे कोई भौतिकी का नियम। या ग्रहण कर लेते हैं मनु श्रद्धा और हो…