गद्य

     “भारत के घरों में बाथरूम की बनावट में सुधार की सबसे अहम जरुरत है. जिसे देखो वह वहीँ गिरता है. जब भी सुनने को मिले कि फलाना गिर गया, हड्डी टूट गई या फलानी फिसल गई, कुल्हा टूट गया. यह पूछने की जरुरत ही नहीं पड़ती कि कहाँ?  कैसे?. वजह एक ही होती है – बाथरूम गीला था …..”…

 कैसा होगा वह समय, जब यह तय हुआ होगा कि औरतें घर के काम करेंगी और आदमी बाहर जा कर जीविका कमाएंगे। कैसा होगा वह पुरुष जिसने पहली बार किसी स्त्री से कहा होगा  कि तुम घर में रहो, यह काम करो, मैं बाहर जाता हूँ. कैसा लगा होगा उस स्त्री को यह सुनकर। क्या उसने विरोध किया होगा ? या यह…

व्हाट द फ … ये इंटरनेट है या ब्लडी बैलगाड़ी। 5 मिनट में एक पेज अपलोड होता है.  मॉम मैंने आपको कल नया हेयर कलर मगाने को बोला था अभी तक नहीं आया.ओह शिट। इस डॉक्टर के यहाँ इतनी वेटिंग में कौन बैठेगा।यह बहुत बड़ा है, हाथ थक गए लिखते हुए.अब इतना लंबा कौन पढ़ने बैठे।इतने साल.? सारी जिंदगी पढ़ते…

हमारे देश में ९० % लोग अपनी आजीविका से संतुष्ट नहीं हैं, उनकी क्षमता और कौशल कुछ और होते हैं, वह कोशिश व काम किसी और के लिए करते हैं और बन कुछ और ही जाते हैं. नतीजा यह होता है कि वे अपने काम से झुंझलाए रहते हैं और इस मजबूरी में अपनाये अपने आजीविका के साधन के लिए किसी न किसी…

हमारे देश में सैक्स और संस्कृति दो शब्द ऐसे हैं जिन पर जब चाहे हंगामा करा लो. एक जुबान से निकला नहीं कि हंगामा और दूसरा न निकले तो हंगामा। हमें बच्चों के सामने सैक्स से सम्बंधित माँ बहन की गाली देने से परहेज नहीं है, खजुराहो, कोणार्क की मूर्ति कला देखने- दिखाने से परहेज नहीं है परन्तु बच्चों को उनके…

मेरे ऑफिस की खिड़की से दीखता है, बड़े पेड़ का एक छोटा सा टुकड़ा। जो छुपा लेता है उसके पीछे की सभी अदर्शनीय चीजों को. उन सभी दृश्यों को जिन्हें किसी भी नजरिये से खूबसूरत नहीं कहा जा सकता। फिर भी उन शाखाओं के पीछे से मैं  झाँकने की कोशिश  करती रहती हूँ. उन हरी हरी पत्तियों के पीछे भूरी -भूरी  …

अपने बाकी साथियों से कुछ अलग थी वो. हालाँकि काम वही करती थी. गाने भी वही गाती थी, चलती भी वैसे ही थी और नाचती भी वैसे ही थी. परन्तु न बोली में अभद्रता थी, न ही स्वभाव में लालच और न ही ज़रा सा भी गुस्सा या किसी तरह की हीन भावना  उसके स्वभाव में एक सौम्यता थी, वाणी में विनम्रता और उसका…

सृष्टि की शुरुआत से ही दो तरह के मनुष्यों का उदय हुआ , एक नर और एक नारी। जो शारीरिक रूप से एक दूसरे से भिन्न थे. अत: उन्हें मानसिक और भावात्मक रूप से भी एक दूसरे से भिन्न मान लिया गया. जॉन ग्रे ने तो अपनी प्रसिद्द पुस्तक में यहाँ तक कह डाला कि स्त्री और पुरुष अलग अलग गृह के निवासी…

बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा। न जाने क्यों नहीं लिखा। यूँ व्यस्तताएं काफी हैं पर इन व्यस्तताओं का तो बहाना है. आज से पहले भी थीं और शायद हमेशा रहेंगी ही. कुछ लोग टिक कर बैठ ही नहीं सकते। चक्कर होता है पैरों में. चक्कर घिन्नी से डोलते ही रहते हैं. न मन को चैन, न दिमाग को, न ही पैरों को.…

जब से इस दुनिया की आधी आबादी ने अपने अस्तित्व की लड़ाई आरम्भ की तब से अब तक यह लड़ाई न जाने किन किन मोड़ों से गुजरी। कभी चाहरदिवारी से निकल कर बाहर की दुनिया में कदम रखने के लिए लड़ी गई, कभी शिक्षा का अधिकार मांगती, कभी अपने फैसले खुद करने के लिए लड़ती तो कभी कार्य क्षेत्र में समान अधिकारों की मांग…