गद्य

हम  जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में “व्रत” का बहुत महत्त्व  है हमें अपने बुजुर्गों को बहुत से उपवास करते देखा है,कुछ लोग भगवान को खुश करने के लिए उपवास रखते हैं ,कुछ लोग भोजन नियंत्रित (डाईट)करने के लिए उपवास करते हैं और कुछ लोग विरोध प्रदर्शित करने के लिए भी उपवास करते हैं . और हमेशा यही ख़याल आया…

मैं बचपन से ही कुछ सनकी टाइप हूँ. मुझे हर बात के पीछे लॉजिक ढूँढने   का कीड़ा है ..ये होता है तो क्यों होता है .?.हम ऐसा करते हैं तो क्यों करते हैं ? खासकर हमारे धार्मिक उत्सव और कर्मकांडों के पीछे क्या वजह है ?..इस बारे में जानने को मैं हमेशा उत्सुक रहा करती हूँ . बचपन में…

शहर की भीडभाड ,रोज़ के नियमित काम ,हजारों पचड़े ,शोरगुल.. अजीब सी कोफ़्त होने लगती है कभी  कभी उस पर कुछ काम अनचाहे और  आ जाएँ करने को तो बस जिन्दगी ही बेकार ..ऐसे में सुकून के कुछ पल जैसे जीवन अमृत का काम करते हैं ओर उन्हीं को खोजने के लिए इस बार हमने  मन बनाया यहीं पास के…

ove is life अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न तो सुनिए. by qualification एक journalist हूँ हमने शुरू कर दी स्वतंत्र पत्रकारिता..तो अब कुछ फुर्सत की घड़ियों…

Voronezh Railway Station. वो  कौन थी?..जी ये मनोज कुमार की एक फिल्म का नाम ही नहीं बल्कि मेरे जीवन से भी जुडी एक घटना है.  बात उन दिनों की  है जब मैं  १२ वीं  के बाद उच्च शिक्षा के लिए रशिया रवाना हुई  थी | वहां मास्को में  बिताये कुछ दिन और वहां के किस्से तो आप ...अरे चाय दे दे मेरी माँ .……..में पढ़ ही चुके…

कल एक comedy tv शो के दौरान देखा एक ७-८ साल की बच्ची परफोर्म कर रही थी …” ओये बहाने बहाने से हाथ मत लगा.” .और बहुत ही घटिया और व्यस्क कहे जाने वाले चुटकुले बहुत ही प्रवीणता और मनोयोग  से सुना रही थी . वहां मौजूद लोग खूब तालियाँ बजा रहे थे उसकी अदाओं पर…आजकल ये नया फैशन चल पड़ा है हिंदी…

                                         A Puppy Face हम अक्सर माता – पिता को ये कहते सुनते हैं ..” हे भगवान ये बच्चे भी न इतने चालाक हैं पूछो मत.” वाकई कभी कभी लगता है कि इन बच्चों के पेट में दाढी  होती है .हम जितना इन्हें समझते हैं उससे कहीं ज्यादा ये हमें समझते हैं ..कब कौन से हथकंडे अपना कर किस तरह अपना काम…

यूँ तो भारत जाना हमेशा ही सुखद होता है ..परन्तु इस बार कुछ ज्यादा ही उत्सुकता थी ..काफी सारी योजनायें बना लीं थीं , बहुत सारे मनसूबे बाँध लिए थे….इस आभासी दुनिया के कुछ मित्रों से वास्तविक रूप में मिलने की  उम्मीद थी…..जी हाँ उम्मीद ही कह सकते हैं , क्योंकि भारत पहुँच कर कुछ अपाहिजों जैसी हालत हो जाती है हमारी…

मानवीय प्रकृति पर बहुत कुछ कहा और लिखा गया है, लोग बहुत कुछ कहना चाहते हैं…कहते भी हैं..परन्तु मुझे लगता है कि ,इस पर जितना भी लिखा या कहा जाये कभी पूरा नहीं हो सकता . तो चलिए थोडा कुछ मैं भी कह देती हूँ अपनी तरफ से. ये एक मानवीय प्रकृति है कि हमें जिस काम को करने के…

१८ वीं और १९ वीं सदी के बहुत से पश्चिमी विद्वानों ने ये भ्रम फ़ैलाने की कोशिश की है कि भारत में ३०० – ४०० ईसा पूर्व जिस ब्राह्मी लिपि का विकास हुआ उसकी जड़े भारत से बाहर की हैं ,और इससे पहले भारत किसी भी तरह की लिखित लिपि से अनजान था. इसी सम्बन्ध में डॉ. Orfreed and Muller…