यकीन मानिये मैं जब भी यश चोपड़ा की कोई फिल्म देखती थी उसके मनोरम दृश्यों को देख यही ख्याल आता था “अरे क्या है ऐसा स्विट्ज़रलैंड में जो हमारे यहाँ नहीं मिलता इन्हें ..क्या भारत में बर्फ नहीं पड़ती? या यहाँ हसीं वादियाँ और पहाड़ नहीं हैं ?गायों और झरनों की कोई कमी है क्या भारत में? और वो बैल की घंटी ?…..जितनी चाहो मिल जाये फिर क्यों ये दौड़े छूटे बस पहुँच जाते हैं वहीँ ?
अब ये तो समझ में तभी आया जब हमने कार्यक्रम बना ही डाला स्विट्ज़रलैंड घूमने का, कि आखिर देखें तो ऐसा क्या है वहां कि जनता बावली हुई जाती है. पर यकीन मानिये स्विस धरती पर कदम रखते ही सब समझ आने लगा हमें. सबसे पहले बात करुँगी वहाँ के लोगों की.इतने संतुष्ट और मददगार लोग मैने नहीं देखे कहीं. एक मोहतरमा ने हमारे लिए, अपनी मंगाई टैक्सी तक छोड़ दी,कि आप लोग मेहमान है आप ले लीजिये मैं दूसरी मँगा लूंगी. यूरोप में ऐसी दरियादिली ..? जी मन बाग़ बाग़ हो गया .
फिर पहुंचे हम इंटरलेकन के अपने होटल में.हालाँकि होटल हमने नेट से ही बुक कराया था और बहुत डर रहे थे कि फ़्रांस की तरह यहाँ भी चित्र कुछ और असलियत कुछ और ना निकले.पर सुखद अहसास हुआ.चित्र से भी ज्यादा सुन्दर था होटल, कोजी सा पेड़ों से ढका और सामने बहता छोटा सा झरना टाइप कनाल.
अब हमारे तो हर घर के आगे ऐसे नाले होते हैं. पर उसमें भरी होती है कीचड़ और पोलीथिन के थैले. अब उन्हें निकालने लगेंगे तो हड़ताल कौन करेगा? भारत बंद कौन करेगा?
खैर गज़ब की खुमारी थी वातावरण में. हम नहा धो कर निकले घूमने.फिर पता चला जो मुख्य अन्तर था भारत और स्विट्ज़रलैंड में.वो थी वहां की आरामदायक सुविधाएँ. बेशक आप कहीं से भी आये हों,भाषा आती हो या नहीं, परन्तु आपको कहीं भी जाने में,घूमने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आ सकती.इतने तरीके से सब कुछ बनाया गया है कि,बस आप ट्रैवल पास लीजिये १ दिन का या १ हफ्ते का,वो भी आप नेट से ले सकते हैं.फिर जहाँ मर्जी जिस मर्जी साधन से जाइये.बस से लेकर शिप तक सब कवर है उसमें.इतने व्यवस्थित यातायात के साधन आपको दुनिया में और कहीं नहीं मिलेंगे।अपने समय से १ सेकेंड की भी देरी से नहीं चलती ट्रेन और बस वहां की.
अब आप भारत के पर्यटन स्थल लीजिये। बेचारे टूरिस्ट के टिकेट खरीदने में पसीने छूट जाएँ और बची खुची जान ट्रेन या बस का इंतज़ार करने में.ना उसके आने का समय निश्चित है ना जाने का। तो अगर आपने अपनी यात्रा प्लान की हुई है तो हो गया बंटाधार.
खैर वहां से हम बैठे जौन्ग्फ्रौ की छोटी ट्रेन में. बर्फीले पहाड़ों के बीच से गुजर कर ये ट्रेन यूरोप के सबसे ऊँचे पॉइंट तक जाती है जहाँ बर्फ का धुंआ इस कदर होता है कि नंगी आँखों से आपको आपके सामने वाला भी दिखाई ना दे.पर एक बात बड़े आश्चर्य की थी कि इतनी बर्फ के बाद भी सर्दी का अहसास नहीं हो रहा था.शायद बर्फ पिघलती ही नहीं इसलिए(आइस नहीं बनती) बस रुई की तरह बिछी रहती है ..
और वहीँ है हमारे बॉलीवुड की शान बघारता बालीवुड इंडियन रेस्टोरेंट। जिसके पैसे तो बॉलीवुड जैसे हैं परन्तु खाना गोलीवुड जैसा। समझ गए ना आप:).परन्तु वहां की खूबसूरती के आगे खाने की किसको पड़ी है ?
वैसे पूरी यात्रा के बीच में जो छोटे छोटे गाँव पड़ते हैं उनकी छटा भी निराली है। और वहां की चॉकलेट की दुकाने,आह …देखने में ऐसी कि मुँह में डालने में कलेजा पिघले
वैसे खाने का असली मजा तो हमें माउंट टिटलिस से उतर कर आया।टिटलिस में बर्फ के गलेशियर की गुफा में कलाकृति देख और वहां अपने सारे बॉलीवुड के सितारों के पोस्टर्स के दर्शन करके जब हम नीचे उतरे तो दिखा एक बड़ा- पाव और मसाले वाली चाय का ठेला। कसम बड़े पावों की इतने स्वादिस्ट बड़ा पाव मैने महाराष्ट्र में भी नहीं खाए। और उस पर मसाला चाय ..जौन्ग्फ्रौ के बॉलीवुड में दिए सारे पैसे वहां वसूल हो गए.
यूँ तो तो स्विट्ज़रलैंड में बहुत से शहर हैं जिनेवा,बर्न,बासेल पर हमें सबसे मनोहारी लगा ल्यूज़र्न।अब क्यों लगा खूबसूरत, ये मत पूछियेगा क्योंकि वो मैं शब्दों में बता ही नहीं पाऊँगी .
हालाँकि कहने को ऐसा कुछ भी नहीं है स्विस शहरों में कि उनकी व्याख्या की जाये. पर कुछ तो है, इतना खूबसूरत कि फिजाओं में जैसे फूल खिल जाएँ, हर हवा झोंके के साथ जैसे महक दिल -दिमाग में छा जाये, इतना स्वच्छ और इतनी पवित्र सी प्रकृति कि हाथ लगाते डर लगे कि मैली ना हो जाये.
मतलब ये कि अपनी एक हफ्ते की छुट्टियाँ ख़तम होते होते हमें समझ में आ गया कि यहाँ के लोग क्यों इतने शांत और संतुष्ट रहते हैं। यहाँ की हवाओं में ही कोई खूबसूरत जादू है। जो आपके दिल दिमाग को एक सुकून सा पहुंचता है। कि सुबह ७ बजे से रात १२ बजे तक पहाड़ों में घूम कर भी हमें तनिक भी थकान का अहसास
तक नहीं होता था.बल्कि हर समय एक खूबसूरत सा अहसास होता रहता था.
तक नहीं होता था.बल्कि हर समय एक खूबसूरत सा अहसास होता रहता था.
अब हमारी समझ में आ गया था कि भारत के इतने मनोरम स्थानों को छोड़कर हमारे फिल्मकार वहां क्यों जाते हैं। क्योंकि अपने ही देश में काम करने में जितनी परेशानियों का सामना उन्हें करना पड़ता है,स्विस धरती पर बहुत ही आसानी से और ज्यादा लगन से वो अपने काम को अंजाम दे पाते हैं. और बरबस ही ये गीत गुनगुना उठते हैं – ” ये कहाँ आ गए हम ……
.
बहुत सुन्दर तस्वीरें हैं जी, धन्यवाद
यहां भी सबकुछ है प्राकृतिक देखा जाये तो, लेकिन साथ है सुविधाओं की कमी और असंवेदनशील और कठोर दिल के स्वार्थी लोग।
शायद इसलिये फिल्मकार वहां ज्यादा जाते हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
लीजिए भई… घर बैठे स्विट्ज़रलैंड घूम लिया…
बहुत बढ़िया चित्र…एक से बढ़ कर एक दृश्य…
और संस्मरण तो बहुत ही बढ़िया…बस भारत की कमियां कहीं कहीं मन को कचोटती हैं…पर सच को भी स्वीकार करना ही चाहिए….
सुन्दर यात्रा वृतांत , स्वित्ज़रलैंड की वादियों की तरह., हम तो घूम आये आपके मनोहारी वर्णन के साथ. सच में हमारे देश में अभी तक ऐसी नागरिक जागरूकता नहीं आई है की हम सार्वजनिक स्थानों के रखरखाव पर सरकार को ना कोसते हुए अपनी जिम्मेदारियों को भी समझे. बॉलीवुड रेस्त्रा देखकर थोडा अभिमान तो मान में जागा. वैसे गोलिवूड ?? ऊँची दुकान फीकी पकवान ??. बड़ा पाव तो भैया अपने मुंबई में मुझे जम्बो किंग का ही सबसे अच्छा लगे. अब ये स्विस बड़ा पाव के बारे तो आप ही बता सकती हो., वैसे अपनी ये पोस्ट स्विस tourism को जरुर भेज दीजियेगा ,
वाह !! सच में बहुत सुन्दर है… पता नही कब नसीब का द्वार स्विस के लिए खुलेगा…
वैसे यहाँ हनीमून पर जाने वालों के बारे सुना था, हमने भी सोचा था कि हम भी इसी बहाने जायेंगे.… लेकिन जिसको साथ ले जाने वाले थे, उसको बहुत जल्दी पड़ी थी स्विट्ज़रलैंड जाने की.… बिना बताये शादी कर ली उसने, स्विट्ज़रलैंड में शोध कर रहे एक खूंसट आदमी से… (खैर अब उनकी जोड़ी सलामत रहे!! :))
मुझसे पहले वही पहुँच गयी स्विट्ज़रलैंड… फिर मन में आया कि छोड़ो अब क्या करना वहाँ जा के…
लेकिन आज आपने पुरानी प्लानिंग फिर से याद दिला दी… पकड़ूंगा किसी को, जल्दी ही… 🙂 🙂
बहुत अच्छा लगा… तस्वीरें देखकर
आपकी शब्द-रचना को साथ लिए
हम भी घूम लिए स्विज़र्लैंड…..
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आभार .
Is 'Yaatra Vrataant' se aisa lagaa ki hum bhi Switzerland ghoom liye.
Ye pictures man ko lubhaane vaali hain. Kulmilakar aap ka prayaas saarthak raha.
ummeed hai jo bhi padhegaa, Gyaan badhne ke saath uska manoranzan bhi hogaa.
वाह डिओसा,
स्विट्ज़रलैंड तो आपने शब्दों मैं ही घुमा दिया, बाकी रह गया दृश्यावलोकन उसका काम खुबसूरत सी फोटोस ने पूरा कर दिया, थेंक यू फॉर थिस वंडरफुल विसिट
ख़ूबसूरत तस्वीरों से सजी सुन्दर सी पोस्ट…बहुत ही बारीकी से अवलोकन कर पहुंचा दी हैं, हम तक सारी बातें…पोस्ट पढ़ते पढ़ते तो हम भी जैसे वहीँ पहुँच गए.
प्राकृतिक सुन्दरता की कमी तो हमारे भारत में भी नहीं…पर इतनी अच्छी व्यवस्था नहीं कि इतनी आसानी से पूरा हो जाए भ्रमण.
@ मनीष ! अरे ये तस्वीरें दिखाओ और बोलो होनीमून पर यहीं जायेंगे …देखना कोई भी तैयार हो जायेगी हा हा हा ..
वाह !!..अपने तो पूरा भ्रमण करा दिया स्विट्ज़रलैंड का …….बहुत बढ़िया लगा ये संस्मरण .
haseen waadiyon की sair hamne भी कर lee सुन्दर यात्रा वृतांत,aabhaar aapka.
samay हो तो ise zaroor padhen
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
waaaaao अंतिम चित्र तो विस्मयकारी है
बहुत सुंदर लगा आप का लेख, चित्र भी एक से बढ कर एक, हम भी गये थे कुछ साल पहले, लेकिन हमे उतना सुंदर नही लगा जितना फ़िल्मो मे दिखाया गया है, इस से हजार गुणा सुंदर तो बवेरिया है, हमारी यात्रा के क्लुछ चित्र आप स्विट्ज़रलैंडदेख सकते है
ओर यहां भी है कुछ चित्र 2 स्विट्ज़रलैंड जरुर बताईये केसे लगे, हम ने वहां पर एक मकान एक सप्ताह के लिये ले लिया था, जो होटल से थोडा महंगा पडा लेकिन खाना वगेरा अपना ही बना लेते थे, क्योकि हम शाका हारी है इस लिये 🙂
aapke saujanya se mujhe v switzerland ghumne ka mauka mil gaya… bilkul sajeev chitran…
बहुत मज़ेदार…वादियां, सफर, मसाला चाय, बड़ा पाव, बॉलीवुड का खाना…और बीच-बीच में व्यंग्य की छौंक…लुत्फ और गंभीरता…एक साथ…। अच्छे यात्रा वृत्तांत के लिए बधाई।
बहुत मज़ेदार…वादियां, सफर, मसाला चाय, बड़ा पाव, बॉलीवुड का खाना…और बीच-बीच में व्यंग्य की छौंक…लुत्फ और गंभीरता…एक साथ…। अच्छे यात्रा वृत्तांत के लिए बधाई।
अच्छा लगा..दूर से ही सही आपके साथ भ्रमण कर लिया…
Is parilok ki sair karne ke liye badhai.
सच में आपके यात्रा वृतांत को पढ़कर तो अब अमेरिका की जगह पहले स्वित्ज़रलैंड जाने को मन करने लगा है , आपके इस यात्रा वृतांत को पढ़कर अपने हाल ही के यात्रा वृतांत की याद आ गयी लेकिन उसमें और आपके यात्रा वृतांत में ज़मीन-आसमान का अंतर है , कह सकते हैं दोनों एक दुसरे के bilkul opposite हैं ,अब वो अंतर क्यों है ये जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें ,
जब अपनी जनता की ही ऐसी मानसिकता है तो नेताओं को क्या कहा जाए
सब पता चल जाएगा
सच में आपके यात्रा वृतांत को पढ़कर तो अब अमेरिका की जगह पहले स्वित्ज़रलैंड जाने को मन करने लगा है , आपके इस यात्रा वृतांत को पढ़कर अपने हाल ही के यात्रा वृतांत की याद आ गयी लेकिन उसमें और आपके यात्रा वृतांत में ज़मीन-आसमान का अंतर है , कह सकते हैं दोनों एक दुसरे के opposite हैं ,अब वो अंतर क्यों है ये जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें ,
जब अपनी जनता की ही ऐसी मानसिकता है तो नेताओं को क्या कहा जाए
सब पता चल जाएगा
shikha ji,
swiss yaatra to hum kar liye, paise bhi na lage aur nazara bhi chitra sa mann mein utar gaya. par 3d dekhne se mann nahin bharta, wo khushnuma ehsaas to wahin ja kar hoga. isliye ab jo bahar jaane ka kahin soche to sabse pahle yahin jaayenge. aapke chitron ko dekhkar mere mann ne kaha mujse…ye swiss aa gaye hum, aapko padhte padhte…dhanyawaad vistrit jaankari aur ghumaane keliye.
Hi..
Aapke sundar yatra vratant ne ek hasrat aur aah dono sang jagayi hain.. Hasrat kabhi us manoram desh main pahunch wo chhta, abo hawa aur vyawastha mahsus kar pane ki aur aah apni kismat par..shayad ye hamare bhagya main nahi.. Hamen to yun hi kabhi movies ya spandan main hi wahan ke suhane chitr dekh khush hona bada hai..
Sundarta ki halanki Bharat main bhi koi kami nahi, par haan..vyawastha beshak videshon ki behtar hai.. Vaise aapki jaankari ke liye bata dun.. Videshi paryatkon aur NRI logon ke liye Bhartiya Rail main bhi aisi sweedha uplabdh hai..jisme aap aadha din, 1 din aur jyada dinon ke rail pass le sakte hain..
Bharat ki vyavastha ka ye aalam hai ki..bas to bas hawai yatra ka bhi koi pakka nahi hai ki kitna vilamb karegi..
Par kuchh bhi ho..
Vishwa ke deshon ki apeksha humara desh aaj bhi khubsurat hai aur kal bhi rahega..
'MERA BHARAT MAHAN..'
Switzerland ke sumadhur yatra vrutant se meri kavita jaag uthi hai..aur main kahunga..
Apne sang ghumaya tumne..
Sabko desh videsh..
Abki sang hain tere ghume..
Ek manoram desh..
Vatavaran jahan ka sundar..
Log lage humko darvesh..
Prakriti ki har chhata nirali..
Harti man ke saare klesh..
Nice..
Deepak..
मनोरम स्थान के बारे मे मनोरम प्रस्तुति भी। शुक्रिया। हम तो मुंगेरी लाल की तरह सपने देखने लग गये थे। देखते हैं सपने सच कब होते हैं।
स्वित्ज़रलैंड वाकई बेहद खूबसूरत है शिखा जी !
यूरोप यात्रा में मैं चार देशों में गया था , स्वित्ज़रलैंड उन सबमें अलग रहा , सफाई स्वछता , वातावरण और वहां के लोग , बार बार जाने का दिल करता है !
हाय! स्विट्ज़रलैंड के बारे में जान कर और पढ़ कर बहुत अच्छा लगा…. पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं…. मुझे अपनी गर्ल फ्रेंड्स की गिनती नहीं याद है…. कितनों के साथ वादे किये की शादी के बाद स्विट्ज़रलैंड जायेंगे… हे हे हे हे ……… इस पोस्ट में बहुत ख़ूबसूरत नज़ारे पेश किये हैं आपने…. स्विट्ज़रलैंड की फ़ोटोज़ में सबसे ख़ास बात यह है की …. फ़ोटोज़ में स्विट्ज़रलैंड से भी ख़ूबसूरत एक लड़की है…. दरअसल ख़ूबसूरत इंसान हमेशा अच्छे ही होते हैं…. इसलिए वो अच्छा लिख लेते हैं… आप तो संस्मरण स्पेशलिस्ट बन जाइए अब…. द फर्स्ट एंड फोर्मोस्ट थिंग इस यू…. विद ऐन ऐलिगैंस ऑफ़ फ्लेयर फॉर स्क्रिब्ब्लिंग थिंग्स इन इट्स ओन वे…. यो….यो….
http://www.lekhnee.blogspot.com
"चांदनी" में स्विट्ज़रलैंड के कई खूबसूरत दृश्य फिल्माए the यश चोप्दाजी ने …और भी होंगी फिल्मे मगर ये याद है …
यूरोपवासियों की शिष्टता के बारे में जानकार achha लगा …परेशानी यही तो है की हम दूसरी सभ्यताओं के गुण नहीं , अवगुण ज्यादा अपनाते हैं …
सुन्दर मनमोहक तस्वीरें …
शिखा जी मुझे लगता है कि हम उन लोगों के नाम ले कर या उनकी सभ्यता को कोसते हैं और जो बुरे काम हमारे यहाँ होते हैं उन्हें इन देशों की देन कह कर उनके माथे मढ देते हैं मगर वास्त्विकता वहाँ जा कर ही पता चलती है।मुझे तो लगता है कि हम से अधिक संवेदनशील और अच्छे लोग हैं वहां। बहुत सुन्दर लगा विवरण और तस्वीरें। धन्यवाद और शुभकामनायें
यश चोपरा मेरे सबसे पसंदीदा फिल्ममेकर हैं..उनकी फिल्मों में जब देखता हूँ स्विट्ज़रलैंड के दृश्य तो मुझे भी स्विट्ज़रलैंड घूमने का बहुत मन करता है 🙂 और आज तो आपके पोस्ट से तो वहां जाने का और दिल करने लगा….देखिये कब स्विट्ज़रलैंड जाने/घूमने लायक बन पाता हूँ 🙂
Nice click….Interesting.
sundar lekhika, jeevant aur manoram tasveeren aur padhne layak sansmaran……….achchha laga!!…:)
बहुत ही सुन्दर तस्वीरें और संस्मरण्……………………फ़र्क तो हर जगह मिलेगा ही क्युँकि हर देश का अपना कल्चर होता है ——–अब जो भारत मे है वो वहाँ नही है और जो वहाँ है वो यहाँ नही है…………सबसे अच्छी बात ये है कि कहीं भी जायें तो मन तृप्त हो जाये और जाना साकार हो जाये।
sach main bada hi aanand aaya switzerland ki yatra karke.
मै जर्मनी तीन महीने के लिए गई थी…तभी स्विट्जर्लैंड और पैरिस जाना हुआ था!… वाकई इस जगह की अपनी अलग पहचान है!… यहां की सफाई तो ध्यान खिंचती ही है…हमारी शक्ल सूरत और पहनावे से यहां के लोग जान जाते है कि हम भारतीय है, तब वे इतना अपनत्व और आदर जताते है कि हम बाग बाग हो उठ्ते है!… उन लोगों का खास अंदाज में हमें 'नमस्ते' कहना…दिल की खुशी को चार गुना कर देता है! …फिल्म वालों को अगर ये प्रदेश ललचाता है तो आश्चर्य कि कोई बात नहीं है!
…शिखाजी फोटोग्राफ्स बहुत ही सुंदर है!…आप का लेख भी बहुत पसंद आया…धन्यवाद!
" एक हफ्ते की छुट्टियाँ ख़तम होते होते हमें समझ में आ गया कि यहाँ के लोग क्यों इतने शांत और संतुष्ट रहते हैं ..यहाँ की हवाओं में ही कोई खूबसूरत जादू है जो आपके दिल दिमाग को एक सुकून सा पहुंचता है|" इन पंक्तियों ने स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरत वादियों की काल्पनिक सैर करा दी| स्विस नेचर ब्यूटी में गहरा आकर्षण है जो सबको अपनी और खींचता है| जितना आपने लिखा उससे लगा कि वाकई स्विट्ज़रलैंड अद्भुत है तभी तो हर दूसरा फिल्मकार वहाँ जा कर अपनी फिल्म शूट करता है| रही बात अपने देश से तुलना की तो यह हमेशा होती रहेगी | हम हम हैं और कभी नहीं बदल सकते| इसके बावजूद कि हजार दिक्कतें हैं, तमाम तकलीफें हैं, विदेशी सैलानी भारत आना चाहते हैं और जब लौटते हैं तो यहाँ की गलियों को भूल नहीं पाते| इसका एक कारण मुझे समझ में आता है कि विदेशियों के आगे तो हम बिछ जाते हैं और अपना दिल खोल कर रख देते हैं| इसका कारण क्या है नहीं मालूम मगर सच है कि विदेश में हम जाएं तो वहाँ के लोग भले हमें याद ना रखें मगर कोई मेम या कोई साहब जंच जाए तो उसकी फोटो पूरी उम्र एल्बम में सजा कर रखते हैं| दरअसल औसत भारतीय दिल से सोचते हैं और यही उनकी पहचान है|
" एक हफ्ते की छुट्टियाँ ख़तम होते होते हमें समझ में आ गया कि यहाँ के लोग क्यों इतने शांत और संतुष्ट रहते हैं ..यहाँ की हवाओं में ही कोई खूबसूरत जादू है जो आपके दिल दिमाग को एक सुकून सा पहुंचता है|" इन पंक्तियों ने स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरत वादियों की काल्पनिक सैर करा दी| स्विस नेचर ब्यूटी में गहरा आकर्षण है जो सबको अपनी और खींचता है| जितना आपने लिखा उससे लगा कि वाकई स्विट्ज़रलैंड अद्भुत है तभी तो हर दूसरा फिल्मकार वहाँ जा कर अपनी फिल्म शूट करता है| रही बात अपने देश से तुलना की तो यह हमेशा होती रहेगी | हम हम हैं और कभी नहीं बदल सकते| इसके बावजूद कि हजार दिक्कतें हैं, तमाम तकलीफें हैं, विदेशी सैलानी भारत आना चाहते हैं और जब लौटते हैं तो यहाँ की गलियों को भूल नहीं पाते| इसका एक कारण मुझे समझ में आता है कि विदेशियों के आगे तो हम बिछ जाते हैं और अपना दिल खोल कर रख देते हैं| इसका कारण क्या है नहीं मालूम मगर सच है कि विदेश में हम जाएं तो वहाँ के लोग भले हमें याद ना रखें मगर कोई मेम या कोई साहब जंच जाए तो उसकी फोटो पूरी उम्र एल्बम में सजा कर रखते हैं| दरअसल औसत भारतीय दिल से सोचते हैं और यही उनकी पहचान है|
अरे यह पोस्ट मेरी नजर से कैसे चूक गई थी.
खैर वापस आ गया हूं
खास लेखिका को खास अन्दाज में लिखता देखकर अच्छा लगा.
चित्र तो वाकई मजेदार और शानदार है.
दो बच्चों की तस्वीर भी बड़ी प्यारी है.
बहुत ही सुन्दर यात्रा वृत्तान्त. पता नहीं हम कब सुधरेंगे.
सुन्दर तस्वीरें, और सजीव चित्रण, बस और क्या चाहिए पाठक को? दोनों ही चीज़ें यहां मौजूद हैं. जो आनण्द आपको टिटलिस के बड़ा पाव में आया, वही आनन्द हमें आपकी पोस्ट पढ के मिला. शानदार.
स्विस सौंदर्य को आपने जीवंत कर दिया…अच्छा लगा यात्रा वृतांत.
स्विट्ज़रलेंड तो वैसे भी आशिकों की सरजमीन मानी जाती है … न प्यार करने वाले भी सुना है वहाँ प्यार करने लगते हैं … आपने दिलकश फोटोस के साथ पूरा मैप खैंच दिया है … अब देखने में आसानी होगी जब कभी भी जाएँगे ….
बहुत खुबसूरत विवरण , लगा जैसे मैंने भी साथ घूम लिया .
स्विस सरकार आपको ब्रांड ambassdor बना देगी
I think it is unfair to compare our hill stations with Switzerland . God has been very kind to us while bestowing boon of beauty on us ,but see the difference in size and the kind of dirty and mischievous neighbourhood we have got .
I thank you for beautiful pictures !
Yes munish ji truly said …God has blessed us with incomparable beauty .its our problem that we cant maintain it
U see even if i get a paid-vacation to Switzerland ;i'd be still visiting Harshil ( before Gangotri)or Keylong (Himachal)instead . U seem to have visited Simla,Mussorie stuff only . I appreciate your proficiecny in Russian more than ur travelogue writing 🙂
U know how crazy swiss are for a trek in Ladakh ?
Munish ji !
Its wonderful to know that you love your country so much and appreciate it .so do I …मेरा बचपन पिथोरागढ़ ,रानीखेत जैसी जगहों पर बीता है और केदारनाथ ,गंगोत्री से लेकर केरल तक पूरा भारत मैने ३ बार देखा है ..
of course not only Swiss but all the western tourists are crazy for india .the question is what kind of facilities we provide them .मेरे ख्याल से अगर किसी को घूमने का शौक है तो वह हर उस जगह को सराहता है जो उसे पसंद आती है ,हमें खुले दिल से अपनी कमजोरियों को स्वीकारना चाहिए और दूसरों की अच्छाइयों को अपनाना चाहिए बिना ये देखे कि वो किस देश की हैं .
anyway I am sorry that you did not like my travelogue writing ..but how do you know my proficiency in Russian?
मैंने ये कभी नहीं दावा किया कि मैं एक यात्रा वृतांत लेखिका हूँ ..बस कुछ अनुभव हैं जिन्हें अपने इस ब्लॉग पर मैं बाँटती हूँ.
Thanks again for your time .
घर बैठे सारा संसार देखो
ल्यो जी हम भी आपके साथ-साथ मुफ़त में घुम आए स्विट्जरलैंड्।
यात्रा का उम्दा चित्रण किया है आपने
शुभकामनाएं
Remember a Russian T.V. footage on Devraha Baba? Thats how im aware of your wonderful linguistic skills , but i request u to provide full interpretation of the same . The video is there on Maykhaana.blogspot.com! The partial interpretation u provided is amazing and it arouses more curiosity ! I definitely loved this post 🙂
रोचक व ज्ञानप्रद यात्रा वृत्तान्त ।
कुल मिलाकर मजेदार पोस्ट रही। स्वीटजरलैंड का स्वीट वर्णन। पहले भारत भ्रमण करेंगे और फिर ईश्वर ने चाहा तो इस मुल्क की भी सैर कर लेंगे।
आनन्द आ गया इस तरह घूमने का भी. बहुत सुन्दर तस्वीरें और विवरण देखकर लग रहा है कि जल्दी जाना पड़ेगा. 🙂
दफ्तर की व्यस्ततायें कुछ अनियमितता का कारण बन रही हैं नेट पर.
बहुत सुंदर यात्रा व्रतांत हैं।
पूरे स्विटेजर्लंड की सैर आपने करवा दी…!!
अच्छा लगा आपकी आखो से स्विट्ज़रलैंड को देखना… मेरा एक दोस्त वही नेस्ले मे काम करता है.. उसके मुह से काफ़ी कुछ सुना है वहा के बारे मे… नेस्ले वगैरा कम्पनीज़ की चाकलेट की फ़ैक्ट्रीज है वहा पर.. तो ओरिजिनल चाकलेट तो वही होगी ही.. बढिया पोस्ट..
bahut din baad vaapas aayi hoon, tumhari switzerland ki yatra to hamari bhi yatra ban gayi na vishva bhraman ham bhi kar rahe jo yahan ghoom rahe hain ve yahan ka darshan karva rahe hain aur tum hamen vahan ke. tulna to ho hi nahin sakati hai kyonki ham bas vahi apanate hain jo hamen suvidhajanak lagen kisi ki achchhaiyon par najar nahin daal pate hain.
bahut din baad vaapas aayi hoon, tumhari switzerland ki yatra to hamari bhi yatra ban gayi na vishva bhraman ham bhi kar rahe jo yahan ghoom rahe hain ve yahan ka darshan karva rahe hain aur tum hamen vahan ke. tulna to ho hi nahin sakati hai kyonki ham bas vahi apanate hain jo hamen suvidhajanak lagen kisi ki achchhaiyon par najar nahin daal pate hain.
Even I used to wonder what is so special there, but it is..we also took the vada pao at he same restaurant…
Whenevr I am abroad, I always wish why cant we have the same in Indai, we are not lacking in everything except will and integrity.
This post reminded me of my stay in switzerland.
शिखा जी एक सुन्दर यात्रा वृत्तांत पढने को और प्यारे प्यारे चित्र देखने को मिले.
– विजय
behtarin travelogue shikha ji
Shikaa jee,
spandan ke maadhyam se sahi,
ahsaas-e- khoobsurti
switzerland ki
aapne dilaa di…………..
wonderfull discription.-regards.
http://www.kavyagagan.blogspot.com
बहुत सुंदर तरीके से व्रतांत सुनाया
Most what i read online is trash and copy paste but i think you offer something different. Keep it like this.
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