पहले जब वो होती थी एक खुमारी सी छा जाती थी पुतलियाँ आँखों की स्वत ही चमक सी जाती थीं आरक्त हो जाते थे कपोल और सिहर सी जाती थी साँसें गुलाब ,बेला चमेली यूँ ही उग आते थे चारों तरफ. पर अब वह होती है तो कुछ भी नहीं होता ना राग बजते हैं ना फूल खिलते हैं ना हवा…







