ना जाने कितने मौसम से होकर
गुजरती है जिन्दगी
झडती है पतझड़ सी
भीगती है बारिश में
हो जाती है गीली
फिर कुछ किरणे चमकती हैं सूरज की
तो हम सुखा लेते हैं जिन्दगी अपनी
और वो हो जाती है फिर से चलने लायक
कभी सील भी जाती है
जब कम पड़ जाती है गर्माहट
फिर भी टांगे रहते हैं हम उसे
कड़ी धूप के इन्तजार में
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे .
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अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न. तो सुनिए. मैं एक जर्नलिस्ट हूँ मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टीवी जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.अब लन्दन में निवास है और लिखने का जुनून है.
wah! kya bat he/
shaandar kavita, jindgi aur dhoop
ka talel achha he
badhai
बहुत ही खुबसूरत..सुन्दर भाव..वो कहते हैं ना झक्कास…यूँ ही लिखते रहें….
Kahan se itne khoobsoorat khayalat aapko soojh jate hain??
wah!bahut achchhe dhang se paribhashit kiya hai aapne zindagi ka falsfa
ला-जवाब जबर्दस्त!!
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
सुंदर प्रस्तुति….
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
वाह , जिंदगी को धुप दिखाने के लिए लटकाने वाला बिम्ब एकदम मस्त लगा . और जिंदगी एक बार सीलन से उबरी तो तो टनाटन दौड़ती है . काश जिंदगी हमेशा ऐसे ही बनी रहे और कोई गम का पर्दा ना पड़े इस पर . सुन्दर अभिव्यक्ति ,
आपके इस काव्य में मासूमियत, जिज्ञासा और नए अनुसन्धान की उत्कंठा स्पष्टतः झलकती है, जो आपके जिज्ञासु, निर्मल और सच्चे उदगार की प्रतीक है। अलग अंदाज़ से काव्य को नयापन देने वाली इस रचना में कल्पना की उड़ान भर नहीं है बल्कि जीवन के पहलुओं एवं खासियत को तुलनात्मकता से देखने और दिखाने की जद्दोजहद भी है। गीलापन और पर्दा के प्रतीक से आप मन के अंदर की छटपटाहट को, बेचैनी को, व्यक्त करने की कोशिश की है।
सजा दिन भी, रौशन हुई रात भी,
भरे जाम, लहराई बरसात भी,
रहे साथ, कुछ ऐसे हालात भी
जो होना था जल्दी, हुआ देर से
🙂 🙂 मैंने तो एक बार अलगनी पर ख्वाब ही टांगे थे.. तुमने ज़िंदगी ही टांग दी…….
ज़िंदगी कि सीलन …फिर धूप से चमकती ..हर रंग भर दिए हैं ज़िंदगी के …बस पर्दा हटा कर खिलखिलाती धूप का आनंद लो …
बहुत अच्छी रचना …ज़िंदगी के सच्चे रूप को बताती हुई …
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 – 2010 मंगलवार को ली गयी है …
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ …शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे
—
वाह-वाह..!
बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी चित्रगीत प्रस्तुत किया है आपने!
शिखा जी,
आज अपनी बात आपकी कविता का वज़न में नहीं कह पा रहा था…इसलिए बशीर बद्र साहब का कलाम इरशाद कर रहा हूँ
धूप निकली है मुद्दतों के बाद
गीले जज़्बे सुखा रहे हैं हम.
बहुत ही शानदार कविता है आपकी…
4/10
good
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे ….
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति…बधाई..
अपनी मर्ज़ी से उतारे तुमने,
ख्वाब टांगे थे पलकों के लिए,
जिन्दगी धूप पी गयी सारी,
छाँव छलके तो अब कहाँ छलके.
इस परदे ने कितनो को वंचित किया है उन्मुक्त धूप खाने से।
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे ….
गहरी अभिव्यक्ति
tab jaker zindagi ko ek sahi arth mita hai ….. bahut badhiyaa
बहुत ही खुब सुरत रचना, जीवन को दरशाती हुयी, आप की कविता पढ कर बाहर देखता हुं तो पतझड् से झडे पत्ते आप की कविता को ओर भी सुंदर बना देते हे, आज कल हमारे यहां ठंडी शर्द हवाये चल् रही हे ओर पेडो से पीले पतो को गिरा कर अजीब सा शोर मचा देती हे रात को, धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
बहुत सुंदर….बहुत खूबसूरत कविता .
ये किस बत्तमीज ने पर्दा सरका दिया….मिले कभी तो बताऊंगा उसे ;)…
जोक्स अपार्ट, बहुत अच्छा लिखा है दी….
खास कर के अंतिम वाली पंक्ति बहुत ज्यादा अच्छी लगी मुझे
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे ….
बेहतरीन कविता..
तारीफ तो करनी पडेगी भई दम तो है कविता मेँ. हमारी तरफ से भी बधाई स्वीकारेँ.
बहुत ही भावपूर्ण रचना . बधाई
सच और सुंदर एहसास लिख डाले.
खूबसूरत अभिव्यक्ति.
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे .
-अहसासों की सुन्दर और कोमल बानगी..बधाई.
जिंदगी पर पड़ती धूप पर सरदा दिया है फिर किसी ने पर्दा …
सीलन , गर्माहट …
फिर से जिंदगी की नयी जंग …
फिर नयी उड़ान …
जिंदगी के धूप छाँव पर बहुत अच्छी कविता …
शानदार …!
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे
कश्मकश और जद्दोजहद की यह रचना .. शानदार
शिखा जी …ये परदे भी ऐसे ही रहेंगे और इनको सरकाने वाले भी… चलिए थोड़ा बाहर घूम कर आतें हैं … 🙂
बहुत खूबसूरत कविता …
सुन्दर अहसासो को खूबसूरती से पिरोया है……………।बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
awesome!
अहसास की कविता
धूप और छाँव का खेल तो जीवन में चलता ही रहता है …. आशा की किरण साथ होनी चाहिए ….बेहतरीन लिखा है …
इस गीलेपन को संभाल कर रखिए,….
अब तो अक्सर नज़र आ जाता है दिल आंखों में
मैं न कहता था कि पानी है दबाए रखिए
कौन जाने कि वो कब राह इधर भूल पड़े
अपनी उम्मीद की शम्ओं को जलाए रखिए
दिल को छु लेने वाली पंक्तियाँ है ..जैसे किसी ने चुपके से कुछ कह दिया हो ..बहुत खूब
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
.
आज निकली है छनी सी धूप
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा..
Beautiful creation !
Regards,
.
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ज़िंदगी पर पड़ने वाली धूप पर सरका दिया पर्दा! सारी उम्र जो बारिश, सीलन और नमी झेलती रही ज़िंदगी और उसे धूप से महरूम करना… शायद बहुत देर से दया आई उस आसमाँ वाले को (उसके घर देर है अंधेर नहीं) तभी उसने सोचा कि धूप में झुलाने से बचा ले! वाह रे ऊपर वाले, तू भी ना..!!
वाह कितना अनोखा है सब कुछ. सुंदर प्रस्तुति
nice
लेखन के लिये “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव जीते हैं, लेकिन इस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये मानव जीवन ही अभिशाप बन जाता है। अपना घर जेल से भी बुरी जगह बन जाता है। जिसके चलते अनेक लोग मजबूर होकर अपराधी भी बन जाते है। मैंने ऐसे लोगों को अपराधी बनते देखा है। मैंने अपराधी नहीं बनने का मार्ग चुना। मेरा निर्णय कितना सही या गलत था, ये तो पाठकों को तय करना है, लेकिन जो कुछ मैं पिछले तीन दशक से आज तक झेलता रहा हूँ, सह रहा हूँ और सहते रहने को विवश हूँ। उसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह आप अर्थात समाज को तय करना है!
मैं यह जरूर जनता हूँ कि जब तक मुझ जैसे परिस्थितियों में फंसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, समाज के हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यह भी एक बडा कारण है।
भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस प्रकार के षडयन्त्र का कभी भी शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल कुछ मिनट का समय हो तो कृपया मुझ "उम्र-कैदी" का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।
http://umraquaidi.blogspot.com/
उक्त ब्लॉग पर आपकी एक सार्थक व मार्गदर्शक टिप्पणी की उम्मीद के साथ-आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”
क्या वाकई आपने इतना अच्छा लिखा है या मैं समझ नहीं पा रहा हूँ.. लोग इतना झूठ क्यों बोलते है?
" कुश ! लोग झूठ क्यों बोलते हैं ….वह तो मुझे पता नहीं .हाँ पिछले दिनों किसी ने कहा कि मेरे स्वभाव की वजह से लोग तारीफ करते हैं ..तो यह वजह हो सकती है:).या शायद वो ऐसे लोग हैं जो तारीफें करना ही जानते हैं सिर्फ 🙂
पर हाँ आप बहुत अच्छी तरह समझते हैं इसका मुझे विश्वास है:).
आपका व्यस्त समय यहाँ आकर जाया हुआ .उसके लिए माफी चाहती हूँ .
बहुत बहुत शुक्रिया.
कुश जी ,
आपकी टिप्पणी पढ़ी …और ऐसा लगा कि ऊपर टिप्पणी देने वालों की आपने आलोचना की है ..
कविता या रचना की बात तो बाद में …आपने सबको कह दिया कि सब झूठ बोल रहे हैं ..
ऐसा मुझे नहीं लगता …क्यों कि कोई भी रचना ..कविता हो या लेख या कहानी ..पाठक पढ़ कर स्वयं की
सोच से जोड़ता है …या स्वयं से भी …और जब कुछ लिखा हुआ उसके साथ जुड़ता है तो उसे या उसके मन को शान्ति का अनुभव होता है या वो रचना उसे पसंद आती है ….कम से कम मैं तो अपनी बात स्पष्ट करना चाह रही हूँ …ज़िंदगी में न जाने कितने उतार चढ़ाव आते हैं कभी लगता है कि हम हर जगह हार ही रहे हैं ..और फिर अपने प्रयासों से उन संकटों से उबरते हैं …कुछ बेहतर लगता है तो फिर कोई नया संकट छाँव कर देता है …तो इसलिए मुझे यह रचना अपनी ज़िंदगी से जुडी हुई लगी और मुझे पसंद आई …मैंने झूठी प्रशंसा नहीं की … हो सकता है आपकी ज़िंदगी को सीलन और धूप की चमक न महसूस हुयी हो ..और इसी लिए आपको यह कविता कुछ खास न लगी हो …यह अपना अपना नजरिया है …पर यह कह देना कि लोंग झूठ बोल रहे हैं …यह मुझे कुछ अजीब सा लगा …आप अपनी बात कहिये ..आलोचना कीजिये पर बाकी पाठकों पर आपकी टिप्पणी…. मुझे तो आहत कर गयी …
खैर …आपको शुभकामनायें …
bhavnaon ka sundar samavesh hai kavita me badhai
मन की कशमकश और धूप पर्दे का बिम्ब। बहुत खूब। शुभकामनायें।
ma'am nice ur blog and ur writing
if u free so visit my blog http://www.onlylove-love.blogspot.com
बहुत अच्छी रचना….बहुत सुन्दर भावों से सजाया है आपने इसे !
बहुत सुंदर….बहुत खूबसूरत कविता .
bahot sunder rachna .
killer……!!!
bohot hi acchi lagi mujhe, crisp and bang on !
luv to read u
shikha ji
rachna mujhe bahut acchi lagi aur zindagi se ekdum judi hui lagi aur specially punch lines bahut jabardasht turning liye hue hai ..
maine ise kal bhi padha tha aaj phir padh raha hoon ..
poem ke jo shadows hai – garmahat etc wo bahut hi impressive hai ..
hats off for such lively poem..
haan , kuch ji ka comment kuch samjah nahi aaya .. phir bhi jo kuch sangeeta ji ne kaha hai , main usse 100% sahmat hoon..
kyonki main khud ek poet hoon… main ye kahunga ki kavita kabhi bhi jhoothi nahi hoti hai ..
badhayi aapko
धूप पर पर्दा, क्या गजब का एहसास है। बहुत बहुत बधाई।
…………….
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
उसे पता है कि धूप के साथ जीवन को थोड़ी सी सीलन और थोड़ी सी छाया की भी दरकार होगी तभी तो फिक्रमंद होकर पर्दे पर हाथ डाला है उसनें !
सुन्दर बिम्ब लेकर गढी हुई कविता पर जरा देर से हाजिरी दे पाया हूं ! पर टिपियाने का लोभ संवरण नहीं कर सका !
पतझड़
बारिश
सीलन
गर्माहट
कड़ी धूप
इन शब्द-संकेतों से मन के मौसम के अनेक इंगितार्थ उभर आए हैं…बधाई एक अच्छी रचना पर!
बाह्य धूप और परदे के अवरोध के समान्तर जीवन में सुखेच्छा और उसपर अवरोध के भाव को व्यक्त करती कविता ! बाकी किसी को कोई चीज क्यों अच्छी लग रही है , इस 'अच्छे ' पर क्या विवाद किया जाय , सबके व्यक्तिगत चयन और समझ की भूमिका है ! किसी को अगर कहना ही है तो यह कहे कि उसे वह अच्छी क्यों नहीं लगी , इसकी आजादी उसे होनी चाहिए | मैं अपनी कहूँ तो मैं छंदमुक्त कविता को गद्य से करीब रखकर देखता हूँ और फिर शास्त्रीय नियमों पर परखने का सवाल ही नहीं रह जाता ! इस कविता की प्रतीकात्मकता ठीक है , यह गद्य में भी हो सकती थी , इसलिए जब भाव का निर्वाह हो जा रहा हो तो अनुचित कुछ नहीं ! हाँ अगर शब्द , वाक्य आदि बेठीक हों तो प्रश्न होना चाहिए पर ऐसा तो यहाँ नहीं दिख रहा है ! बेहतर है कि असहमति को बताया जाय , यह तो एक हल्की बात हुई कि ' …….लोग झूंठ क्यों बोलते हैं !'
जाने क्या-क्या सहती है जिन्दगी…
''कभी पलकों पे आँसू हैं कभी लब पे शिकायत है.. मगर ऐ ज़िन्दगी फिर भी हमें तुमसे मोहब्बत है''
कौन है ये पर्दा सरकने वाला ……?
शिखा जी ये धुप यूँ ही खिली रहे ….!!
जिंदगी में पल पल बदलते मौसमों की छ्टा हमारी जीवनों में नए नए अर्थों आयामों और संभावनाओं का सतरंगी आकाश रचती है.
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
"कभी सील भी जाती है
जब कम पड़ जाती है गर्माहट
फिर भी टांगे रहते हैं हम उसे
कड़ी धूप के इन्तजार में"
आहा ! बहुत सुन्दर.
nice…nice ….very nice…
शिखा,
जीवन को मौसम से जोड़ कर जो संयोग बनाया है वो काबिले तारीफ है. बस ऐसे ही कवि की कल्पना कब किस चीज को किस रूप में देख ले और उसे बांध देता है सुन्दर शब्दों में. यही तो उसकी कल्पनाकी उड़ान है जो उसे कहाँ तक पहुंचा दे ये तो कोई नहीं जानता.
पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे
naheeeeeeeeeeeen aisa nahin ho sakta.
फिर कुछ किरणे चमकती हैं सूरज की
तो हम सुखा लेते हैं जिन्दगी अपनी
और वो हो जाती है फिर से चलने लायक
बहुत सुन्दर कविता है शिखा जी. कुछ इसी तरह तो जीते हैं सब…
वाह! शिखा जी,
ज़िन्दगी की धूप छावं को कविता के कैनवास पर बड़ी ही बखूबी से उकेरा है.
बधाई हो.
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अरे, गिरा दिया पर्दा तो क्या हो गया? धूप के लिए पर्दा हटाया भी तो जा सकता है। अत्यंत भावुक अभिव्यक्ति है। लिखना जारी रखिए धूप आपके ब्लॉग तक पहुंच जाएगा।
धूप के मोहक रंगों का अहसास हर कोई महसूस तो नहीं कर सकता. आपने किया है इसका अन्दाजा आपकी रचनाओं को पढ़ने के बाद हो ही जाता है।
आपने अच्छी कविता लिखी है। आपको बधाई.
Dhoop aur chhaon se sani kavita ko apne jivant roop me prastut kiya hai Manmohak si lagi.Man me uthe in khuburat bhaon ke liye main ap ko tahe dil se shukriya ada karta hun.Well done.
I do not have any word to express about the emotional exposition of your thought right now but will continue to introspect myself for making beautiful comment after going through your other post at a latter stage.After all.this has been beautifully expressed coupled with darker and brighter side of life. Thanks.
Dhoop aur chhaon se sani kavita ko apne jivant roop me prastut kiya hai Manmohak si lagi.Man me uthe in khuburat bhaon ke liye main ap ko tahe dil se shukriya ada karta hun.Well done.
आज निकली है छनी सी धूप पर फिर से किसी ने सरका दिया है पर्दा
मेरी जिन्दगी पर पड़ती हुई धूप पे.
बढिय़ा कविता है। सहेजने लायक।
I really appreciate your piece of work, Great post.
I am so grateful for your article post.Much thanks again. Will read on…
Its like you read my thoughts! You appear to know a lot about this, like you wrote the e-book in it or something. I feel that you could do with some percent to power the message home a little bit, but instead of that, that is fantastic blog. A great read. I will certainly be back.
Like!! Thank you for publishing this awesome article.
Likely I am likely to save your blog post. 🙂