आज मुस्कुराता सा एक टुकडा बादल का
मेरे कमरे की खिड़की से झांक रहा था
कर रहा हो वो इसरार कुछ जैसे
जाने उसके मन में क्या मचल रहा था
देखता हो ज्यूँ चंचलता से कोई
मुझे अपनी उंगली वो थमा रहा था
कह रहा हो जैसे आ ले उडूं तुझे मैं
बस पाँव निकाल देहरी से बाहर जरा सा.
मैं खड़ी असमंजस में सोच रही थी
क्या करूँ यकीन इस शैतान का ?
ले बूँद खुद में फिर छोड़ देता धरा पर
है मतवाला करूँ क्या विश्वास इसका
जो निकल चौखट से पाँव रखूं इस बाबले पे
और फिसल जा पडूँ किसी खाई में पता क्या
ना रे ना जा छलिया है तू ,जा परे हो जा तू जा ..
किनारे रख चुकी हूँ मैं “पर”अब नहीं उड़ने की भी चाह
फिर ना जाने क्या सोच कर मैंने थमा दी बांह अपनी
कि ले अब ले चल तू गगन का छोर है जहाँ
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
Kya kahun?Mugdh kar diya aapki is ateev sundar rachanane!
वाह्…………बेहद सुन्दर भाव भरे हैं………………।बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
जाने उसके मन में क्या मचल रहा था
देखता हो ज्यूँ चंचलता से कोई
मुझे अपनी उंगली वो थमा रहा था
कह रहा हो जैसे आ ले उडूं तुझे मैं
प्रतीक और भाव शानदार ………
बेहद सुंदर अभिव्यकिती शिखा जी
barsaat ka mausam hain, saara aasmaan ghatao se bhara hain, mera dil bhi bilkul aap hi ki tarah badal par kadam rakh nabh ki sair karna chahta hain apne khwabo ke desh jaana chaahta hain. dil ko chulene waali rachna.
सुन्दर अभिव्यक्ति, बादल के सविनय निवेदन का( धरा के कल्याण के लिए ) थोड़े ना नुकुर के बाद , सफल होना, मुझे छायावाद की विदुषी कवियत्री की याद दिला गया. ( ना मैंने कुछ भी अतिरंजित नहीं लिखा) ,
बेहद खूबसूरत ….बहुत बहुत अच्छी कविता.. 🙂
prakriti se jud kar rachane ki sarthak koshish..man bahut khoobsoorat tareeke se roopayit hua hai. badhai, is rachana ke liye.
आ ले उडूं तुझे मैं
बस पाँव निकाल देहरी से बाहर जरा सा.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई।
बादल का इसरार भी बहुत खूबसूरत है और तुम्हारी
कल्पना भी….
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
और गाँव को सुन्दर लगा ही होगा :):)
बहुत प्यारी और सुन्दर अभिव्यक्ति….
कि ले अब ले चल तू गगन का छोर है जहाँ
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
अब अंजाम की क्या चिंता जब इसरार इतना ख़ूबसूरत हो और सफ़र मनभावन……सपनो का गाँव भी सपने जैसा ही सुन्दर होगा.
उड़ते बदालों के फाये सी ही निश्छल…प्यारी अभिव्यक्ति
बेहतरीन रचना, बहुत खूब!
Hi..
Badal ke jo sang chale tum..
Lekar tum hathon main haath..
Taare saare jale to honge..
Dekh suhana tera sath..
Badal tumko sang liye jab..
Pahuncha honga apne gaon..
Logon ne samjha ye hoga..
Chand hai utra unke gaon..
Sapnon ke us shahar main bhi..
Tumko humne vyakul dekh..
Badal ke jo sang gaye tum..
Langh ke har lakshman rekha..
Kavita bhavnatmak rup se sundar..
Deepak..
बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
beautifully expressed feelings
great, liked it
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
सुन्दर पंक्तियां.
bahut hi sundar aur manmohak rachna. badhayi. Namrita
बहुत शान दार कविता जी धन्यवाद
आह!! क्या कोमल उड़ान है भावनाओं की…
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
बहुत सुन्दर!!
कभी कभी शैतान (अरे …बादल ) का यकीन कर लेना और अपनी अंगुली उसे थमा उसके संग बह चलना …
क्या खूबसूरत कल्पना है …हम भी उड़ चले आपके साथ …
कभी कभी दिमाग की बजाय दिल की बात सुन लेना भी अच्छा होता है …
सावन की रिमझिम सी बहुत प्यारी सी कविता …तस्वीर भी बहुत खूबसूरत है …!
जा रे कारे बदरा बलम के द्वार,
वो है ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार,
वहीं जा के रो,
जा रे कारे बदरा…
इनकी पलक से पलक मोरी उलझी,
निपट अनाड़ी के लट मेरी उलझी,
लट उलझा के रे मैं तो गई हार,
वो है ऐसे बुद्धू न समझे रे प्यार…
जय हिंद…
जीने के लिए विश्वास बहुत जरुरी है.. दिमाग ना भी करे पर मन अक्सर चोट खाने के बाद भी कर बैठता है.. आखिर मन है है ना..
baadal ke sang sapno ki udaan……ek tukdaa baadal ka mujhe bhi dena
बादल सदियों से सपनों के वाहक रहे हैं, आपके भाव भी सब जगह बरसाये ये बादल।
मैं खड़ी असमंजस में सोच रही थी
क्या करूँ यकीन इस शैतान का ?
ले बूँद खुद में फिर छोड़ देता धरा पर
है मतवाला करूँ क्या विश्वास इसका
bahut sundar kalpna bhi hai aur ytharth bhi .
शिखाजी!! लगता है कि लन्दन में मानसून आ गया…रचना में नीर भरी बदली की उन्मुक्त उड़ान है| कविता में रूपक और बिम्ब अभिव्यक्ति को एक विशिष्टता प्रदान कर रहे हैं और बादल का खिड़की पर आ जाने का भाव अनूठा है|
बहुत सुन्दर उम्दा रचना…!!
pankh hote to ud aati re….. gege..par aap to ud gayeen di ..aap ko to ye gana gane ki zaroorat hi nahi …
ek doha
achhi sangat baith kar , sangi badle roop
jaise mil kar aam se meethi ho gayi dhoop..
-nida fazli
aakhi rbadla ne aap ko bhi udne par mazboor kar diya na..:)
बहुत खूब ! जब बादल इसरार करे तो उड़ जाना ही बेहतर है… सुन्दर रचना है.
बादल की मनुहार पर
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
सुंदर !!! सब तर्क आखिर हार ही जाते हैं मन की उड़ान के सम्मुख !
बेहतरीन अभिव्यक्ति……
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
वाह …वाह……क्या बात है …….!!
कुछ महकी महकी ……कुछ बहकी बहकी हैं हवाएं …..
कोई बावरा कोई छलिया मुझे छेड़- छेड़ जाये …….
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
बादलों की छाँव में … सपनों के गाँव में ….
सपनों की दुनिया में ले जाती है आपकी पोस्ट …. लाजवाब …
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
बेहतरीन ख्वाब की रचना
बादलों पर सवार होना और सपनों के गाँव की यात्रा क्या कहने
उड़ने की चाहत तो हमेशा रहती है बस उड़ाने वाला बादल चाहिंए.
..मन प्रसन्न कर देने वाली अभिव्यक्ति.
मंगलवार 27 जुलाई को आपकी रचना … चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ …. आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
पता नहीं मुझसे ऐसी गलती कैसे हो गयी……… कैसे मैं लेट हो गया ….मुझे भी नहीं पता…. इट्स अ रिअली अ ब्लंडर मिस्टेक…. आइन्दा नहीं होगी…….. कविता बहुत अच्छी लगी….
bhaw bibhor kardiya kar diya kabita ne
bahut acchha laga
dhanyabad
कोमल और उदात्त भावों की सरस अभिव्यक्ति ।
बादलों के साथ हम भी उड़ लिए.सुन्दर और कलात्मक.
किनारे रख चुकी हूँ मैं "पर"अब नहीं उड़ने की भी चाह
फिर ना जाने क्या सोच कर मैंने थमा दी बांह अपनी
प्राणी प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है।
उससे जुदा होना बहुत ही कठिन है।
आभार
जाने क्या सोच कर मैंने थमा दी बांह अपनी
कि ले अब ले चल तू गगन का छोर है जहाँ
समर्पण की शिखा पर बैठी हुई यह लौ !!
बहुत सुन्दर !
बधाई हो शिखा , आप पार हो गई।
बेहतरीन अभिव्यक्ति….बधाई.
बादलों के साथ ये भावनात्मक अठखेलियाँ निश्चित ही बहुत मन भावन है…..कविता में कल्पनाशीलता को बड़ी खूबसूरती से पेश किया है…!
सुन्दर भाव …
अच्छी कविता…..
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
खूबसूरत कल्पना ….
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
वाह.. क्या बात है.. सावन का यूं स्वागत..शानदार
बादल पर मत कर भरोसा… बादल तो आवारा है!
उड्ता फिरता है मारा मारा…ये तो खुद बेघर बंजारा है!
…..लेकिन ये बादल तो भरोसे का निकला…सपनों के गांव की सैर कराई… भई वाह!…सुंदर कविता!
Sundar Rachna….
सुन्दर प्रस्तुति।
कविता के भाव अति सुंदर हैं .आपने बड़ी ख़ूबसूरती से अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोया है बधाई
शिखा जी, बहुत खूबसूरत कविता रची है आपने। और हाँ, चित्र भी गजब का लगाया है। देखकर अच्छा लगा।
…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
कविता में क्ल्पना के साथ समर्पण है। आजकल की कविता में कहां इस तरह की बातें रह गई हैं।
"मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव"
मुझे भी अपने साथ ले चलो इस खुबसूरत सफ़र में
जाने उसके मन में क्या मचल रहा था
देखता हो ज्यूँ चंचलता से कोई
मुझे अपनी उंगली वो थमा रहा था
कह रहा हो जैसे आ ले उडूं तुझे मैं
प्यारी अभिव्यक्ति बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर जी
bahut achcha likhtin hain aap.
मूँद ली मैने ये पलकें फिर धर दिए घटा पे पाँव
और ले चला वो बादल मुझे मेरे सपनों के गाँव
बहुत सुन्दर कविता है बधाई
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आपकी शुभकामनाएं मेरे लिए अमूल्य निधि है!….धन्यवाद!
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What i do not understood is in fact how you are not actually much more well-preferred than you may be right now. You’re very intelligent. You already know therefore significantly in relation to this matter, produced me in my opinion imagine it from a lot of varied angles. Its like men and women are not fascinated unless it is one thing to do with Woman gaga! Your own stuffs nice. Always deal with it up!
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