रहे बैठे यूँ
चुप चुप
पलकों को
इस कदर भींचे
कि थोडा सा भी
गर खोला
ख्वाब गिरकर
खो न जाएँ .
थे कुछ
बचे -खुचे सपने
नफासत से
उठा के मैने
सहेज लिया था
इन पलकों में
चुप चुप
पलकों को
इस कदर भींचे
कि थोडा सा भी
गर खोला
ख्वाब गिरकर
खो न जाएँ .
थे कुछ
बचे -खुचे सपने
नफासत से
उठा के मैने
सहेज लिया था
इन पलकों में
जो खोला
एक दिन कि अब
निहार लूं मैं
जरा सा उनको
तो पाया मैंने ये कि
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
एक दिन कि अब
निहार लूं मैं
जरा सा उनको
तो पाया मैंने ये कि
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
wah wah wah!
sundar kavita, sapne bhi kabhi
hote hain apne
शिखा जी, आँखों में बसे सपनों को कभी सीलने मत दीजिए, ये ही तो हैं जो हमें हमसे मिलाते हैं और हमारा जहाँ आबाद करते हैं।
ये क्या हुआ ..
न पुरे हुये सपने …. न मिले अपने…..
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्त्ति
इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।
तो पाया मैंने ये कि
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
ओह ! बेहद दर्द भरा है ……………दिल मे कुछ चुभ सा गया।
सुन्दर रचना.
कितनी अच्छी कविता है..बहुत से सपने तो पहले ही टूट जाते हैं, बचे खुचे सपनों का शायद यही हाल होता है..
वैसे फोटू भी बड़ा जंच रहा है इस कविता के साथ 🙂
अंतर्मन को छूती कविता . सपने सजाने , सवारने और उन्हें जज्ब किये रहने के लिए हम पलकों को भींचे ही रहते है . मै क्या लिखू . सिले सपने , फिर भी अपने . बेहतरीन अभिव्यक्ति
बहुत गहन क्षणों की अभिव्यक्ति है. शुभकामनाएं.
रामराम.
शिखा जी, एक बहुत ख़ूबसूरत गाना है
ख़्वाब तो काँच से भी नाज़ुक हैं
टूटने से इन्हें बचाना है.
ऐसे में ख्वाबों की सीलन अच्छी बात नहीं. बहुत ही कोमल रचना है!!
शिखा जी,
इस कविता में बहुत करुणा और गम्भीरता है।
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
वाह
shikha jee jeevan mai bahut kuchh aisaa hotaa hai jise ham barsho sahejkar rakhte hai vo kabhee dhua bankar ud jataa hai kabhee dhool mai mil jaataa hai. yahe jindgee ko unpredictable banataa hai
शिखा जी ,
पिछ्ले कई दिनों से बस सोच ही रहा था कि टिप्पणी करूं ! अब आज मौका है सो दो टिप्पणी दे डाली हैं ! जो ठीक लगे उसे स्वीकारिये 🙂
(1) बडी भावपूर्ण कविता है ! बेहद फिलासोफिकल !
(2) शायद सपनों को खारेपन में भीगा देखकर किसी को दुख भी हो पर मुझे नही क्योंकि मैं जानता हूं कि यह बेहद नैसर्गिक है ! आखिर को धरती भी अपने सपनें यूंही छुपा कर रखती है और उसका अवसाद मुझसे कही ज्यादा गहरा ,ज्यादा विशाल है !
अली जी !
आपकी दोनों टिप्पणियाँ सर माथे पर 🙂 यहाँ पधारने का बहुत बहुत शुक्रिया.
aah…. mere jaise kayi dilon ki baat kah dee aapne…
इधर तो खारे पानी के सामने सपने ही विदा हो गये…
फिर भी मुझे कुछ नही हुआ 🙂 फिर से कोई सपना पाल लेंगे
शिखा ,
सच तो यह है कि सपने होने चाहियें ..सपने हों तो ज़िंदगी आगे बढती है …और सीले सीले सपने खुद में आर्दता को समेटे होते हैं …तो आँखों से चिपके रहते हैं 🙂 अब यह लॉजिक मेरा है ..हा हा
बहुत प्यारी कविता ..मेरे भी हैं सीले सीले सपने …
आपकी यह रचना कल के साप्ताहिक काव्य मंच …चर्चा मंच पर ली जा रही है ..
शुक्रिया
वाह क्या बात है………
हमने तो अब सपने देखने ही छोड़ दिए हैं… आँखों का पानी मर गया है…. तो कहाँ से सीलेंगें…. अब सपने तो दिमाग में रहते हैं…. दिल में नहीं… मुझे कविता बहुत अच्छी लगी… हमेशा की तरह सुंदर एंड मीनिंगफुल …. आपकी तरह…
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
shikha ji,
aapki kavita mein ek seekh bhi hai ki sapne dekho aur pura karo, sahejenge to rah jaayenge sada aise hin apurn aur milenge yun hin apne aansuon se seele hue…
shubhkaamnaayen.
रचना में निराशा में भी आशा भरी है!
भावपूर्ण है आपके स्वप्नों की कहानी।
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
बहुत सुन्दर .. भावपूर्ण
खारे पानी में डूबते-उतराते कितने ही सिले सपनो का सच उकेर दिया ,इन सुन्दर शब्दों में .
गहरे भाव लिए बढ़िया अभियक्ति
बचे -खुचे सपने
नफासत से
उठा के मैने
सहेज लिया था
इन पलकों में….
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से…
वाह…
शिखा जी, कमाल है…
आपके लेखन में एक जादू है…सच में.
जाने क्यों हकीकत से भागती ये आँखें ऐसे सपने पाल लेती हैं जिन्हें सहेजना मुश्किल होता है.. बहुत ही बढ़िया उपमाओं के साथ रची गई कविता..
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वाह ! शिखाजी ,
कविता के भाव बहुत गहरे है …..अपने सपनों की सीलन की जो कसक है बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती है ….आभार
सपने ,अपने लावण्यमयी सपने !
पलकों की कोर पर आ टिके सपने
आंसुओं से सराबोर ,सलोने सपने
लगने लगे हैं अब वे बेहद अपने
शिखा जी..एक बेहद ही संजीदा कविता… ख्वाबों के सीलने का कोई ग़म नहीं बस इतना ख़्याल रहना चाहिए कि सारे उनमें आग न लगने पाए वर्ना धुँआते रहेंगे..आज दुष्यंत कुमार को कोट करने का जी चाहता हैः
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
अच्छा है …. बहुत अच्छा है ……
तो पाया मैंने ये कि
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
-बहुत गहरे उतरी रचना.
सील गए थे सपने खारे पानी से ….
अलग अनूठा सा बिम्ब
सुन्दर कविता …
अब थोड़ी सी मसखरी भी –
ख्वाब बना कर ना सजाईये पलकों पर
बता देते हैं , नींदे ही चुरा ले जायेंगे …
मतलब …सपने हमारे ना सीलें …नींदें दूसरों की उड़ें …:):)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर कुसुमाग्रज से एक परिचय, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें
बेहद भावमयी रचना………..धन्यवाद
मैं हमेशा अवतार सिंह पाश को याद करता हूं।
उनकी एक कविता है सचमुच सबसे ज्यादा खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना.
आपकी लेखनी सभी विधाओं में बेहतर चलती है
कविता में तो और भी संवेदनशीलता के साथ
आपको बधाई
कुछ
बचे -खुचे सपने
नफासत से
उठा के मैने
सहेज लिया था
इन पलकों में
shandaar!! saheje hue sapne……jo dete hain khushi, 🙂
bas in sapno ko seelne mat den…..:)
कुछ
बचे -खुचे सपने
नफासत से
उठा के मैने
सहेज लिया था
इन पलकों में
shandaar!! saheje hue sapne……jo dete hain khushi, 🙂
bas in sapno ko seelne mat den…..:)
पानी पानी रे, खारे पानी रे,
नैनों में भर जा, नींदें खाली कर जा,
पानी पानी, इन पहाड़ों के ढलानों से उतर जा,
धुआं धुआं, कुछ वादियां भी आएंगी, गुजर जा ना,
इक गांव आएगा, मेरा घर आएगा,
जा मेरे घर जा, नींदे खाली कर जा,
पानी पानी रे, खारे पानी रे,
नैनों में भर जा, नींदें खाली कर जा…
जय हिंद…
khawaab kho jaye, to kuch bhi nahi bachta.
bahut acchi kavita hain.
जो खोला
एक दिन कि अब
निहार लूं मैं
जरा सा उनको
तो पाया मैंने ये कि
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
गजब की कविता है..बहुत अच्छी लगी…सपनों के सीले होने का दुख…कभी-कभी सीले सपनों-सी भीगी रात सपनों की लड़ियां दे जाती हैं
wonderful!!
बहुत खूब…शब्द और भाव..दोनों लाजवाब…
नीरज
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से।
खो जाते सपनों की दर्द भरी भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
थे कुछ
बचे -खुचे सपने
नफासत से
उठा के मैने
सहेज लिया था
इन पलकों में
bahut hi achha likha hai
बहुत ही बढ़िया रची गई कविता..
भावमयी रचना………..धन्यवाद
बहुत प्यारी कविता है. जी खुश हो गया इसे पढ़कर.
…कल्पना की अलौकिक उडान!….अति सुंदर रचना!…बधाई एवं धन्यवाद!
शिखा जी बहुत कमाल किया इस रचना मे। बधाई।
सीलन भरे सपने वैसे भी रुलाते हैं …. इसलिए जल्दी ही उन्हे हक़ीकत पर यटारने का प्रयत्न करना चाहिए ……. लाजवाब ….. कमाल की रचना है ….
इन सीले हुए सपनों को कल्पनाओं की तपिश में सुखा फिर से सजा लीजिए लेकिन इस बार दिल में सजैयेगा…वर्ना पलकों की नमी से फिर सील जायेंगे 🙂
बहुत सुंदर, छोटी और प्यारी रचना.
ओह !दर्द भरी, भावपूर्ण है आपके सपनों की कहानी।
सील गए थे सपने
आँखों के खारे पानी से
————————-
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्त्ति…भावपूर्ण
wah.behad sunder.
भावुक रचना… दोष खरे पानी का है सपनो का नहीं. सपने ही सफलता की दिशा में बढ़ने का पहला कदम होते हैं| जो सपने देखते हैं वे ही पूरा करने की तरफ उद्धत होते हैं|
शिखा ! भई लाजवाब कविता ! आसानी से किसी रचना के लिए मेरे मन से तारीफ के शब्द नहीं निकला करते.. पर यह तो बाज़ी ले गई !
"पलकों में ही सील जाते हैं सपने"..और फिर किसी काम के नहीं रहते…हमारे समय का सीलन-सड़ा यथार्थ प्रस्तुत किया है आपने ..वधाई
"इन स्फीलों में वो दरारें हैं
जिनमें बस कर नमी नहीं जाती"–दुष्यंत
yah kavita sahi mayane me kavita hai.
sirf sharir nahi isme kavita ki aatma bhi hai.
सिल गये थे सपने , आंख़ों के ख़ारे पानी से।
सुन्दर पंक्ति बहुत बहुत बधाई।
Your style is so unique compared to many other people. Thank you for publishing when you have the opportunity,Guess I will just make this bookmarked.2