Yearly Archives: 2011

इंटर नेट नहीं था तो उसका एक फायदा हुआ | दो  बहुत ही बेहतरीन पुस्तकें पढ़ने का मौका मिल गया. एक तो समीर लाल जी की ”  देख लूँ तो चलूँ ” आ गई भारत से कनाडा और फिर यॉर्क होती हुई. दूसरी संगीता जी की ” उजला आस्मां ” आखिर कार दो  महीने भारत में ही यहाँ वहां भटक कर…

कभी कभी तो लगता है कि हम लन्दन में नहीं भटिंडा में रहते हैं (भटिंडा वासी माफ करें ) वो क्या है कि हम घर बदल रहे हैं और हमारी इंटर नेट प्रोवाइडर कंपनी का कहना है कि उसे शिफ्ट  होने में १५ दिन लगेंगे .तो जी १८ मार्च तक हमारे पास नेट की सुविधा नहीं होगी.और हमारा काला बेरी…

अभी कुछ दिन पहले दिव्या माथुर जी ((वातायन की अध्यक्ष, उपाध्यक्ष यू के हिंदी समिति) ) ने अपनी नवीनतम प्रकाशित कहानी संग्रह “2050 और अन्य  कहानियां” मुझे सप्रेम भेंट की .यहाँ हिंदी की अच्छी पुस्तकें बहुत भाग्य से पढने को मिलती हैं अत: हमने उसे झटपट पढ़ डाला.बाकी कहानियां तो साधारण प्रवासी समस्याओं और परिवेश पर ही थीं परन्तु आखिर की दो कहानियों  ” 2050…

रोज जब ये आग का गोला  उस नीले परदे के पीछे जाता है  और उसके पीछे से शशि  सफ़ेद चादर लिए आता है  तब अँधेरे का फायदा उठा  उस चादर से थोड़े धागे खींच   अरमानो की सूई से  मैं कुछ सपने सी  लेती हूँ फिर तह करके रख देती हूँ  उन्हें अपनी पलकों के भीतर  कि सुबह जब सूर्य की गोद…

करी खा तो सकते हैं पर सूंघ नहीं सकते . ब्रिटेन में करी का काफी प्रचलन  है. जगह जगह पर भारतीय और बंगलादेशी टेक आउट कुकुरमुत्तों की तरह खुले हुए हैं और यहाँ के निवासियों में करी का काफी शौक देखा  जाता है …पर समस्या तब खड़ी होती है जब उन्हें करी खाने से तो कोई परहेज नहीं पर करी की…

  तू बता दे ए जिन्दगी  किस रूप में चाहूँ तुझे मैं? क्या उस ओस की तरह जो गिरती तो है रातों को फ़िर भी दमकती है. या उस दूब की तरह जिसपर गिर कर शबनम चमकती है. या फिर चाहूँ तुझे एक बूँद की मानिंद . निस्वार्थ सी जो घटा से अभी निकली है. मुझे  बता दे ए जिन्दगी किस रूप में चाहूँ तुझे मैं.…

  बसंत पंचमी ( भारतीय प्रेम दिवस ) बीत गया है ,पर बसंत चल रहा है और वेलेंटाइन डे आने वाला है ..यानी फूल खिले हैं गुलशन गुलशन ..अजी जनाब खिले ही नहीं है बल्कि दामों में भी आस्मां छू रहे हैं ,हर तरफ बस रंग है , महक है ,और प्यार ही प्यार बेशुमार . …वैसे मुझे तो आजतक…

सफ़ेद रंग का लम्बा वाला लिफाफा था और मोती से जड़े उसपर अक्षर. देखते ही समझ गई थी कि ख़त पापा ने लिखा है. पर क्या???? आमतौर पर पापा ख़त नहीं लिखा करते थे.बहने ही लिखा करतीं थीं और उनके लिफाफे गुलाबी,नीले ,पीले हुआ करते थे. कोई जरुरी बात ही रही होगी. झट से खोला था तो दो बड़े बड़े…

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा …..हर जगह आज यही पंक्तियाँ बजती सुनाई दे रही हैं. हर कोई देश भक्ति की भावना से लवरेज दिखाई पड़ता है, अंतर्जाल तिरंगों से भरा पडा है ,.राजपथ से ऐतिहासिक लाल किले तक आठ किलोमीटर लंबे मार्ग पर  गणतंत्र दिवस की परेड में सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों की टुकडि़यों ने बैंड की धुनों…

. आज इन पलकों में नमी जाने क्यों है  रवानगी भी इतनी थकी सी जाने क्यों है  जाने क्या लाया है समीर ये बहा के  सिकुड़ी सिकुड़ी सी ये हंसी जाने क्यों है. खोले बैठे हैं दरीचे  हम नज़रों के  आती है रोशनी भी  उन गवाक्षों से  दिख रहा है राह में आता हुआ उजाला  बहकी बहकी सी ये नजर जाने क्यों…