Yearly Archives: 2010

यकीन मानिये मैं जब भी यश चोपड़ा  की कोई फिल्म देखती थी उसके मनोरम दृश्यों को देख यही ख्याल आता था “अरे क्या है ऐसा स्विट्ज़रलैंड में जो हमारे यहाँ नहीं मिलता इन्हें ..क्या भारत में बर्फ नहीं पड़ती? या यहाँ हसीं वादियाँ और पहाड़ नहीं हैं ?गायों और झरनों की कोई कमी है क्या भारत में? और वो बैल की घंटी…

रक्तिम लाली आज सूर्य की  यूं तन मेरा आरक्त किये है. तिमिर निशा का होले होले  मन से ज्यूँ निकास लिए है. उजास सुबह का फैला ऐसा  जैसे उमंग कोई जीवन की  आज समर्पित मेरे मन ने सारे निरर्थक भाव किये हैं लो फैला दी मैने बाहें  इन्द्रधनुष अब होगा इनमे  बस उजली ही किरणों का  अब आलिंगन होगा इनमें …

बचपन में हम बहनें बहुत लड़ा करती थीं ..सभी भाई बहन का ये जन्म सिद्ध अधिकार है ..और लड़ते हुए गुस्से में एक दूसरे  को ना जाने क्या क्या कह दिया करते थे .तब मम्मी बहुत डाँटती थीं , कि शुभ शुभ बोला करो, ना जाने कौन से वक़्त माँ सरस्वती ज़ुबान पर बैठ जाये , और तीन  बार कुछ…

हम  जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में “व्रत” का बहुत महत्त्व  है हमें अपने बुजुर्गों को बहुत से उपवास करते देखा है,कुछ लोग भगवान को खुश करने के लिए उपवास रखते हैं ,कुछ लोग भोजन नियंत्रित (डाईट)करने के लिए उपवास करते हैं और कुछ लोग विरोध प्रदर्शित करने के लिए भी उपवास करते हैं . और हमेशा यही ख़याल आया…

मैं बचपन से ही कुछ सनकी टाइप हूँ. मुझे हर बात के पीछे लॉजिक ढूँढने   का कीड़ा है ..ये होता है तो क्यों होता है .?.हम ऐसा करते हैं तो क्यों करते हैं ? खासकर हमारे धार्मिक उत्सव और कर्मकांडों के पीछे क्या वजह है ?..इस बारे में जानने को मैं हमेशा उत्सुक रहा करती हूँ . बचपन में…

बात उन दिनों की है जब हम अमेरिका में रहते थे. एक दिन हमें हमारे बच्चों के स्कूल से एक इनविटेशन कार्ड मिला | उसकी क्लास के एक बच्चे का बर्थडे था. बच्चे छोटे थे, ये पहला मौका था जब किसी गैर भारतीय की किसी पार्टी में उन्हें बुलाया गया था तो हम एक अच्छा सा गिफ्ट लेकर ( पढने लिखने…

बैठ कुनकुनी धूप में  निहार गुलाब की पंखुड़ी  बुनती हूँ धागे ख्वाब के  अरमानो की  सलाई पर. एक फंदा चाँद की चांदनी  दूजा बूँद बरसात की  कुछ पलटे फंदे तरूणाई के कुछ अगले बुने जज़्बात के. सलाई दर सलाई बढ चली  कल्पना की ऊंगलियाँ थाम के.    बुन गया सपनो का एक झबला  रंग थे जिसमें आसमान से.  जिस दिन कल्पना से…

शहर की भीडभाड ,रोज़ के नियमित काम ,हजारों पचड़े ,शोरगुल.. अजीब सी कोफ़्त होने लगती है कभी  कभी उस पर कुछ काम अनचाहे और  आ जाएँ करने को तो बस जिन्दगी ही बेकार ..ऐसे में सुकून के कुछ पल जैसे जीवन अमृत का काम करते हैं ओर उन्हीं को खोजने के लिए इस बार हमने  मन बनाया यहीं पास के…

मैं एक कविता बस छोटी सी  हर दिल की तह में रहती हूँ.   भावो से खिल जाऊं  मैं  शब्दों से निखर जाऊं मैं   मन  के अंतस  से जो उपजे मोती  सी यूँ रच उठती हूँ. मैं एक कविता बस छोटी सी  हर दिल की तह में रहती हूँ.   हर दर्द की एक दवा सी मैं  हर गम में एक दुआ सी…

ove is life अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न तो सुनिए. by qualification एक journalist हूँ हमने शुरू कर दी स्वतंत्र पत्रकारिता..तो अब कुछ फुर्सत की घड़ियों…