Yearly Archives: 2010

एक नौनिहाल माँ का एक खिड़की से झाँक रहा था साथ थाल में पड़ी थी रोटी  चाँद अस्मां का मांग रहा था माँ ले कर एक कौर रोटी का उसकी मिन्नत करती थी लाके देंगे पापा शाम को उससे वादा करती थी पास खड़ा एक मासूम सा बच्चा  उसको जाने कब से निहार रहा था. हैरान था उनकी बातों पर…

Voronezh Railway Station. वो  कौन थी?..जी ये मनोज कुमार की एक फिल्म का नाम ही नहीं बल्कि मेरे जीवन से भी जुडी एक घटना है.  बात उन दिनों की  है जब मैं  १२ वीं  के बाद उच्च शिक्षा के लिए रशिया रवाना हुई  थी | वहां मास्को में  बिताये कुछ दिन और वहां के किस्से तो आप ...अरे चाय दे दे मेरी माँ .……..में पढ़ ही चुके…

रिश्तों का बाजार गरम है  पर उनका अहसास नरम है हर रिश्ते का दाम  अलग है  हर तरह का माल  उपलब्ध है कभी हाईट तो कभी रूप कम है   जहाँ  पिता की  इनकम कम है  साथ फेरे, रस्में सब, आडम्बर हैं  अब तो नया लिव इन का फैशन  है हर रिश्ते पर स्वार्थ की  पैकिंग  हर रिश्ते पर एक्सचेंज ऑफर…

स्पंदन = मेरे मन में उठती भावनाओं की  तरंगे.जिन्हें साकार रूप दिया मेरे इस प्यारे ब्लॉग ने ..जी हाँ इस माह  मेरे स्पंदन का फर्स्ट बर्थडे है .वैसे तो इसकी नींव  २७ अप्रैल को रखी गई थी .परन्तु इसे सुचारू रूप से बढ़ाना मैने 18 मई से शुरू किया. और इसी दिन मेरी ब्लॉग की  रचना पर पहली  प्रतिक्रिया  आई…

आजकल भाव सब सूख से गए हैं आँखों से पानी भी गिरता नहीं परछाई भी जैसे जुदा जुदा सी है मन भी अब पाखी बन उड़ता नहीं पंख भी जैसे क़तर गए हैं. पर फिर भी ये दिल धडकता है ज्यादा इत्मीनान से. ख़ुशी भी झलकती है अपने पूरे गुमान से हाँ पर ख़्वाबों को मेरे ज़ंग लग गई है…

कल एक comedy tv शो के दौरान देखा एक ७-८ साल की बच्ची परफोर्म कर रही थी …” ओये बहाने बहाने से हाथ मत लगा.” .और बहुत ही घटिया और व्यस्क कहे जाने वाले चुटकुले बहुत ही प्रवीणता और मनोयोग  से सुना रही थी . वहां मौजूद लोग खूब तालियाँ बजा रहे थे उसकी अदाओं पर…आजकल ये नया फैशन चल पड़ा है हिंदी…

कोई मिस्टर जलजला एकाध दिन से स्वयम्भू चुनावाधिकारी बनकर.श्रेष्ठ महिला ब्लोगर के लिए, कुछ महिलाओं के नाम प्रस्तावित कर रहें हैं. (उनके द्वारा दिया गया शब्द, उच्चारित करना भी हमें स्वीकार्य नहीं है) पर ये मिस्टर जलजला एक बरसाती बुलबुला से ज्यादा कुछ नहीं हैं, पर हैं तो कोई छद्मनाम धारी ब्लोगर ही ,जिन्हें हम बताना चाहते हैं कि हम…

                                         A Puppy Face हम अक्सर माता – पिता को ये कहते सुनते हैं ..” हे भगवान ये बच्चे भी न इतने चालाक हैं पूछो मत.” वाकई कभी कभी लगता है कि इन बच्चों के पेट में दाढी  होती है .हम जितना इन्हें समझते हैं उससे कहीं ज्यादा ये हमें समझते हैं ..कब कौन से हथकंडे अपना कर किस तरह अपना काम…

यूँ तो भारत जाना हमेशा ही सुखद होता है ..परन्तु इस बार कुछ ज्यादा ही उत्सुकता थी ..काफी सारी योजनायें बना लीं थीं , बहुत सारे मनसूबे बाँध लिए थे….इस आभासी दुनिया के कुछ मित्रों से वास्तविक रूप में मिलने की  उम्मीद थी…..जी हाँ उम्मीद ही कह सकते हैं , क्योंकि भारत पहुँच कर कुछ अपाहिजों जैसी हालत हो जाती है हमारी…

. .यहाँ यूरोप में होलिडेज पर जाने का बहुत रिवाज़ है….जब देखो जिसे देखो होलिडेज पर निकल जाता है …काम का क्या है ? होता रहेगा…रोज़ ही होता है और जहाँ जरा ज्यादा काम का बोझ हुआ कह दिया ..कि हम तो होलिडेज पर जा रहे हैं आकर देखेंगे .यहाँ हर कोई तीन महीने में एक बार एक हफ्ते के…