सूनसान सी पगडण्डी पर जो हौले हौले चलता है. शायद मेरा वजूद है. जो करता है हठ, चलने की पैंया पैंया बिना थामे उंगली किसी की. डर है मुझे फिर ना गिर जाये कहीं ठोकर खाकर. नामुराद जिद्दी कहीं का. …
पिछले कुछ दिनों बहुत भागा दौड़ी में बीते .२४ जून से २६ जून तक बर्मिघम के एस्टन यूनिवर्सिटी में कुछ स्थानीय संस्थाओं और भारतीय उच्चायोग के सहयोग से तीन दिवसीय “यू के विराट क्षेत्रीय हिंदी सम्मलेन २०११” था .और हमारे लिए आयोजकों से फरमान आ गया था कि आपको भी चलना है और वहाँ अपना पेपर पढना भी है. अब क्या बोलना…
हवा हुए वे दिन जब बच्चे की तंदरुस्ती से घर की सम्पन्नता को परखा जाता था. माताएं अपने बच्चे की बलाएँ ले ले नहीं थकती थीं कि मेरा बच्चा खाते पीते घर का लगता है. एक वक़्त एक रोटी कम खाई तो चिंता में घुल घुल कर बडबडाया करती थीं ..हाय मेरे लाल ने आज कुछ नहीं खाया शायद तबियत ठीक नहीं है. नानी दादी से जब भी बच्चा…






