तेरी मेरी जिन्दगी
उस रसीली जलेबी की तरह है
जिसे देख ललचाता है हर कोई
कि काश ये मेरे पास होती
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.
*************************
कभी कोई लिखने बैठे
कहानी तेरी मेरी
तो वो दुनिया की
सबसे छोटी कहानी होगी
जिसमें सिर्फ एक ही शब्द होगा
“परफेक्ट “.
****************************** *****
तेरे लिए मैं
तेरी उस पसंदीदा टाई की तरह हूँ
जिसे तू हर ख़ास मौके पर
गले से लगा लेता है
पर मेरे लिए तू
मेरे सीने से लगी वो चेन है
जिसे मैं कभी खुद से अलग नहीं करती.
****************************** **
मैं एक रिमोट कंट्रोल हूँ तेरे लिए
जिससे तू जब तब
अपने मूड के हिसाब से
चैनल बदल लेता है
पर मेरे लिए तो तू
१९८० का वह दूरदर्शन है
जिसपर हमेशा कृषि दर्शन ही आता है.
तेरी मेरी जिन्दगी
उस रसीली जलेबी की तरह है
जिसे देख ललचाता है हर कोई
कि काश ये मेरे पास होती
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.superb
पढ़ा तो आपको कई बार है ….आज तो रश्मी दी के शब्द उधार लेती हूँ ..superb !
bahut badiya ,
kyun durdarshan pe "ham-log" bhi to aata tha…:) yaani tum log:P
chalo ham bhi chhote se shabd se hi kaam chala lete hain:)
SUPERB!!!!
bahut gahari soch , isa bechari jalebi ke dard ko kisi ne na samajha hoga aur na hi ukera hoga. tumhari kalam ne usake dard ko bayan kar diya.
isake liye bahut bahut badhai.
कमाल कर दिया शिखा जी आज तो……………कहां से शब्द ढूँढ कर लाऊं तारीफ़ के लिये……………मानवीय रिश्ते का बेहद सटीक चित्रण है।
मेरे लिए नए प्रतीक हैं 🙂
क्या आखिरी वाली क्षणिका किसी को उलाहना दे रही हैं????
बहुत खूब। सब कुछ बदला मगर दूरदर्शन वहीं है सुन्दर बिम्ब।
कोई कभी लिखने बीते तेरी मेरी कहानी ——एक ही शब्द होगा परफेक्ट "बहुत खूब लिखा है |बधाई
आशा
खूबसूरत कविता… कृषिदर्शन शब्द में व्यंग्य और विम्ब दोनों ही है…. साथ ही देश का बदलता फोकस और बदलती मानसिकता है जिसमे कृषि दर्शन एक निरीह अनावश्यक मनोरंजन विहीन है.. देश के किसानों की तरह… और कवियत्री की शहरी मानसिकता का द्योतक भी है.. वरना इस कार्यक्रम को सौ सौ किसान भाइयों को एक साथ एक टी वी पर देखते हुए देखा है…..
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.
परफैक्ट….
shikha ji
kya likhun—-
sabse pahle to mukh se yahi nikla ===wah
bahut khobsurti se aapki lekhni chalti hai har vidha par .
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.
kamaal hai—–
bahut bahut badhai
poonam
चारों में अलग भाव लगा । तीसरी सबसे ज्यादा पसंद आई । चौथी में शिकायत क्यों ?
ज़वाब दूसरी में है –कभी कोई परफेक्ट नहीं होता ।
कई दृश्यों का नजारा एक साथ.
शायद सभी को दूसरों कि ज़िंदगी खुद की जिंदगी से अलग और रसीली ही लगती है। जिसका आप ने जलेबी के माध्यम से बहुत खूब वर्णन किया है बहुत अच्छे …शुभकामनायें…. कृपया मुझ से भी संपर्क बनाये रखिए आभार
वाह शिखा दी, आज तो एकदम अलग अंदाज़ में आप हैं…बर्मिंगम के टूर का असर दीखता है 🙂
मैं एक रिमोट कंट्रोल हूँ तेरे लिए
जिससे तू जब तब
अपने मूड के हिसाब से
चैनल बदल लेता है
पर मेरे लिए तो तू
१९८० का वह दूरदर्शन है
जिसपर हमेशा कृषि दर्शन ही आता है. " — हा हा 🙂 बहुत अच्छा है…
aapne kuch alag sa likha,bahut aam cheezon ko le kar…..bahut khoob:)
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.
ज़िंदगी जलेबी की तरह ..रस है तो तपन भी … सुन्दर बिम्ब ..
टाई और चेन वाह क्या बात है … और कृषिदर्शन का अनूठा बिम्ब … बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ …
तेरे लिए मैं
तेरी उस पसंदीदा टाई की तरह हूँ
जिसे तू हर ख़ास मौके पर
गले से लगा लेता है
पर मेरे लिए तू
मेरे सीने से लगी वो चैन है
जिसे मैं कभी खुद से अलग नहीं करती….
बहुत खूब ! सभी क्षणिकायें लाज़वाब और दिल को छू जाती हैं.
पहली तीन क्षणिकाएं अच्छी लगीं। पर चौथी में बात कुछ स्पष्ट नहीं हुई।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 – 06 – 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ …शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच– 52 ..चर्चा मंच
ADBHUT…….MANVIYA SAMBANDHO KO REKHANKIT KARTI BEHAD ACCHI RACHNA!
@@पर मेरे लिए तू
मेरे सीने से लगी वो चैन है
जिसे मैं कभी खुद से अलग नहीं करती.
बहुत सुंदर,आभार.
मैं एक रिमोट कंट्रोल हूँ तेरे लिए
जिससे तू जब तब
अपने मूड के हिसाब से
चैनल बदल लेता है
पर मेरे लिए तो तू
१९८० का वह दूरदर्शन है
जिसपर हमेशा कृषि दर्शन ही आता है.
bahut khoob
तीखा लेखन है आज का ..बिलकुल सटीक …जैसे ..बिलकुल निशाने पर …!!
बहुत बढ़िया ..
waah shikha ji ..bahut khoob
पहले एक बड़ी सी मुस्कराहट स्वीकार करे …क्या ग्लोबल टाइप पंक्तिया लिखी है चाशनी लपेट लपेट कर मारा है …देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर ..वैसे मूड बहुत खतरनाक लग रहा है
ऊह्ह हो ..दीदी कोई अलग ही मूड है..??
लास्ट में तो एक दम जोरदार है….:))
Bahuthee sundar!
यह कृषि दर्शन अच्छा लगा …इस पर पूरा एक लेख लिखा जा सकता है ! 🙂
शुभकामनायें आपको !
मैं एक रिमोट कंट्रोल हूँ तेरे लिए
जिससे तू जब तब
अपने मूड के हिसाब से
चैनल बदल लेता है
पर मेरे लिए तो तू
१९८० का वह दूरदर्शन है
जिसपर हमेशा कृषि दर्शन ही आता है.
आम शब्द पर गहरी बात …. बहुत बढ़िया
शिखा जी!
ये रंग तो ऐसा है कि जिसमें मैं और वो का भेद भी नहीं रहता.. इन रिश्तों पर इतनी मधुर कविताओं का बस आनन्द लिया जा सकता है..कहना मेरे लिये मुम्किन नहीं!!
अद्भुत प्रतीकों का प्रयोग!
बिल्कुल नया।
शिखा…………………..काश आपके टी.वी .पर हमेशा दूरदर्शन का कृषि दर्शन बना रहे……..इस रंग बदलती दुनिया में ये भी एक उपलब्धि ही है…बहुत बढ़िया लिखा है ,आपने.
अनूठे उपमानों के साथ अनुपम क्षणिकायें रची हैं आपने शिखा जी ! बहुत ही सुन्दर ! बधाई स्वीकार करें !
गागर में सागर की तरह कम शब्दों मेंबहुत कुछ कह दिया आपने।
———
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?
Vaah bahut badhiya-krishi darshan jee
1980 का कृषि दर्शन ….
मजाक में कही गयी कितनी गंभीर बात है ..
उस घी की तपन को कोई नहीं देखता जिसमे तप कर वह निकली है …
ऊपर की चमक दमक में उसके पीछे के संघर्ष पर नजर कम ही पड़ती है …
सभी एक से बढ़कर एक ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
रिश्तों पर एक आनंददायी और सटीक रचना । पहली चार पंक्तियां तो कमाल हैं ।
शिखा जी!
आप तो कविता भी बहुत अच्छी लिखतीं हैं!
आपकी रचना में रिश्तों की वक्रता और जलेबी मिठास का आभास हो रहा है!
तेरी मेरी जिन्दगी
उस रसीली जलेबी की तरह है
जिसे देख ललचाता है हर कोई
कि काश ये मेरे पास होती
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.
bahut sunder khanikaayen hain..
nice
तेरी मेरी जिन्दगी
उस रसीली जलेबी की तरह है
जिसे देख ललचाता है हर कोई
कि काश ये मेरे पास होती
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.
bahut sunder khanikaayen hain..
nice
दूसरी और तीसरी क्षणिकाएं बेहतरीन हैं।
पहली और चौथी में भी भाव पक्ष की प्रधानता जादू का असर करती है।
सभी शीर्षक देना और भी अच्छा हो सकता है।
पर कृषि दर्शन ही खाद्य निर्भरता का आलाप है।
वाह वाह! जलेबी से कृषि दर्शन तक का सफ़र बेहतरीन है।
मजा आ गया।
आभार
शिखा जी, आनन्द आ गया। कृषि दर्शन भी रोज ही देखते थे, यही मजबूरी थी। हा हा हाह हा।
wah sikhaji jalebi se krashi darsan tak .kya baat hai aapki lekhni ke liye to mere paas shabd hi nahi hain.
****तेरे लिए मैं तेरी उस पसंदीदा टाई की तरह हूँ जिसे तू हर ख़ास मौके पर गले से लगा लेता हैपर मेरे लिए तू मेरे सीने से लगी वो चैन है जिसे मैं कभी खुद से अलग नहीं.kar paaati.bahut hi badiyaa.badhaai aapko.
बहुत ही संवेदनशील और गहराई लिए कविता।
बात एक दम यही सही है।
मैं भी सोंचने पर विवश हो गया ।
१९८० का वह दूरदर्शन है जिसपर हमेशा कृषि दर्शन ही आता है.
एक कड़वा सच।
आभार।
बहुत बहुत बेहतरीन प्रस्तुति ….
वाह … जलेबी … टाई चैन और फिर १९८० का दूरदर्शन … क्षणिकाओं को भी कहाँ कहाँ से गुज़ारना पड़ता है … पर हर जगह अपना निशाँ छोड़ जाती हैं … गज़ब की है सब ,…
वैसे जलेबी मुझे बहुत पसन्द है पर किसी एक बन्द पर टिप्पणी कर पाना नामुमकिन…सभी बन्द बहुत बढ़िया…बधाई शिखा जी!
तेरी मेरी जिन्दगी
उस रसीली जलेबी की तरह है
जिसे देख ललचाता है हर कोई
कि काश ये मेरे पास होती….. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ …
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
आप भी आइये
आभार
नाज़
This comment has been removed by the author.
काठमांडू के होटल में मेरे कमरे से दूर दूर तक पहाड़िया दिख रही है ऐसे ही जैसे दूरदर्शन का कृषि दर्शन . नितांत ही नए बिम्ब , हर क्षणिका खूबसूरत .
पर मेरे लिए तो तू
१९८० का वह दूरदर्शन है
जिसपर हमेशा कृषि दर्शन ही आता है.
hahahaahahahahaaha
na ji na,
khalis kirshi darshna nhi, budhwar ko "charitrhar aata tha" aur sunday ko picture, par un dino ye dono program aksar light ke bhaint hi chadh jaya karte the!
तेरे लिए मैं
तेरी उस पसंदीदा टाई की तरह हूँ
जिसे तू हर ख़ास मौके पर
गले से लगा लेता है
पर मेरे लिए तू
मेरे सीने से लगी वो चैन है
जिसे मैं कभी खुद से अलग नहीं करती.
Shikha ji kafi dinon bad aa paya hun…aapke lekhan ka shuru se hi murid raha hun…aaj ki saf goi bhi bahut achhi lagi.
परफेक्ट सिम्बियासिस
तेरे लिए मैं
तेरी उस पसंदीदा टाई की तरह हूँ
जिसे तू हर ख़ास मौके पर
गले से लगा लेता है
पर मेरे लिए तू
मेरे सीने से लगी वो चैन है
जिसे मैं कभी खुद से अलग नहीं करती.
मन को गहरे तक छू गई एक-एक पंक्ति…
एक-एक शब्द….
समझने का प्रयास कर रही हूँ और सोच रही हूँ की क्या वो सब समझ पा रही हूँ जो कुछ शब्दों के पीछे छुपा कर कहा जा रहा है |
Perfect
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है
very nice….
तेरी खुशियों की ख़ातिर ही, तेरी आँखों में चुभता हूं,
तुझे खुशियों में झूठे ख़्वाबों की, ग़ुम सह नहीं सकता..
एक सुन्दर रचना…….
अच्छी लगी….
sunder bimbo ka prayog kshanikaao ko prabhavshali bana raha hai.
कशक रिश्तों की भी क्या खुशनसीब होती है,
बात दिल की मगर दिल के करीब होती है .
दिल की आवाज की सुन्दर प्रस्तुति ,बधाई
कभी कोई लिखने बैठे
कहानी तेरी मेरी
तो वो दुनिया की
सबसे छोटी कहानी होगी
जिसमें सिर्फ एक ही शब्द होगा
"परफेक्ट ".
-ओए होए….क्या बात है..वाह!!!
आपकी रचना बहुत ही गहरी सन्देश देती हुए सी लग रही है
बेहतरीन प्रस्तुति की प्रशंसा के लिए मेरे पास कोई अल्फाज नहीं है।कभी-कभी मेरे पोस्ट पर आकर मेरा हौंसलाअफजाई कर दिया कीजिए। धन्यवाद।
बिम्बों और प्रतीकों का सफल प्रयोग किया है आपने। कविता अच्छी लगी। आभार।
परफैक्ट.
दुबारा पढने आया हूँ…
जलेबी को भी पापुलर बना दिया 🙂
टाई और चेन में कीमती भी चेन ही होती है 🙂
इस कृषि दर्शन ने खूब हंसाया …हम में से पता नहीं कितने कृषि दर्शन हैं मगर खुद को चित्रहार समझते हैं ! :-))
वाह शिखा दी
बहुत खूब ! सभी क्षणिकायें लाज़वाब और दिल को छू जाती हैं.
शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने …प्रशंसनीय रचना।
करीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
क्या बात है, बहुत बढिया।
तेरी मेरी जिन्दगी
उस रसीली जलेबी की तरह है
जिसे देख ललचाता है हर कोई
कि काश ये मेरे पास होती
bachhan sahab ne sahi kaha tha…maza nahi paa jane me jo hai paane ke armaano me….
kisi bhi wasti ya insaan ki value tab tak hi hoti hai jab tak wo hame mil nahi jaata…
मैं एक रिमोट कंट्रोल हूँ तेरे लिए
जिससे तू जब तब
अपने मूड के हिसाब से
चैनल बदल लेता है
पर मेरे लिए तो तू
१९८० का वह दूरदर्शन है
जिसपर हमेशा कृषि दर्शन ही आता है.
बढियाँ है 🙂
आपसी प्रेम सम्बन्ध की दुरूहता और निकटता को बड़ी सहजता और खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने……
चारों काव्यांश अलग-अलग अनोखे ढंग से स्वतः अभिव्यक्त हो रहे हैं…
बहुत सुन्दर……….अद्भुत
बढिया, नसीब अपना अपना!
अति सुन्दर रचना शिखा जी |
मेरे ब्लॉग में आपका सादर आमंत्रण है |
http://pradip13m.blogspot.com/
आये और अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें |
धन्यवाद् |
शिखाजी आपकी कवितायेँ बड़े ही सरल शब्दों में दिल के अहसासों को बयाँ कर देती है…आपकी शैली मुझे बहुत पसंद है…शानदार अभिवयक्ति…
तेरी मेरी जिन्दगी
उस रसीली जलेबी की तरह है
जिसे देख ललचाता है हर कोई
कि काश ये मेरे पास होती
नहीं देख पाता वो उसके
गोल गोल चक्करों को
उस घी की तपन को
जिसमें तप कर वो निकली है.
बेहतरीन…लाजवाब
no words for this….sach bole to cant i write in hindi…..superb..fabulous..perfect
किधर से शुरू करून, किधर से ख़तम करून |
जिन्दगी का फ़साना, कैसे तेरी नज़र करून |
है ख्याल जिन्दगी का, कैसे मुनव्वर करून |
मगरिब के जानिब खड़ा, कैसे तसव्वुर करून |
mai ak remot control hun tere liye
good adjective n rachna.
jivan to circular motion ki tarah hi hai ,linear motion bhi antim bindu pe circular ho jata hai……..es jivan chakro ke ghan chakro me kha peri ho !
वाह शिखा घर घर की कहानी याद आ गई ?
घर घर की कहानी याद आ गई?
I got good info from your blog
Enjoyed every bit of your article post.Really looking forward to read more. Awesome.