डेढ़ महीने की  छुट्टियों के बाद भारत से लौटी हूँ. और अभी तक छुट्टियों का खुमार बाकी है.कुछ लिखने का मन है पर शब्द जैसे अब भी छुट्टी पर हैं,काम पर आने को तैयार नहीं. तो सोचा आप लोगों को तब तक इन छुट्टियों में हुई मुलाकातों का ब्यौरा ही दे दूं. भारत जाने से पहले भी कुछ जाने माने ब्लॉगरों से मुलाकात हुई थी.जिनमें से डॉ कविता वाचकनवी और दीपक मशाल से तो पहले भी मैं मिल चुकी थी .परन्तु कनाडा वाले एलियन यानि समीर लाल जी से मिलने का यह पहला मौका था. वह अपने बेटे के यहाँ, जो कि यॉर्क  में रहते हैं. आये थे अत: सुप्रसिद्ध उड़न तश्तरी के मालिक से मिलने की हमारी दिली इच्छा थी. उन्होंने भी हमें निराश नहीं किया और हमारे घर पधारे. ये और बात है कि उस दौरान हमें फ़ोन पर डराने की उन्होंने खासी कोशिश की  ( उनके अनुसार ) कभी ये कह कर कि दोपहर को आयेंगे, कभी शाम को, कभी १ बजे तो कभी यूँ ही सुबह फ़ोन करके कि डरो नहीं अभी नहीं आ रहे ११ बजे आयेंगे.पर हमने भी ब्लॉगिंग  में बाल सफ़ेद किये हैं. हम बिलकुल नहीं डरे .फिर उन्हें दीपक मशाल के साथ टैक्सी  से उतरते देखा …एंड गैस  व्हाट ? हम फिर भी नहीं डरे….अरे इसमें डरने जैसा था ही क्या??? ये एलियन तो अच्छा वाला एलियन था एकदम जादू टाइप, अपनी रचनाओं की तरह ही सहज और रोचक. यह मीटिंग शानदार रही और इस अन्तराष्ट्रीय ब्लॉगर मीट का ब्यौरा बेहद रोचक अंदाज में समीर लाल जी यहाँ दे ही चुके हैं. 



इसलिए मैं अब लन्दन से निकल कर चलती हूँ भारत को.जहाँ उम्मीद से परे इस बार मौसम बेहद खुशगवार था. मानसून की ठंडी बयार….गर्मी का प्रकोप  कम था .हम काफी सारे काम लेकर गए थे तो शुरूआती दिन तो बारिश के पानी के साथ ही कहाँ बह गए अहसास ही नहीं हुआ.फिर बरसाती बूंदों की तरह कुछ बड़े ब्लॉगरों से छोटी छोटी मुलाकातें हुईं. गुडगाँव में प्यारी सी सोनल के साथ प्यारी सी मुलाकात हुई ,जो २ घंटा ट्रैफिक  में फंसी रहीं मुलाकात पॉइंट तक पहुँचने के लिए. फिर पता चला कि जहाँ हम टिकने वाले थे उनका घर भी वहीँ था,तो मुलाकात फिर वहीं  हुई.और उनसे मिलकर उतना ही मजा आया जितना कि उनकी रोचक पोस्ट्स पढ़कर आता है.फिर एक राजधानी एक्सप्रेस टाइप मुलाकात हुई आशीष राय से जिनकी आने वाली ट्रेन तो थी लेट और जाने वाली थी ऑन टाइम .उनकी ही आई बुक से डॉ अमर की दुखद खबर मिली.यकीन ही नहीं हुआ अब भी नहीं होता.उनसे सीधा संपर्क तो नहीं था परन्तु उनकी टिप्पणियों के माध्यम से एक बेहद अच्छे और जिंदादिल इंसान के रूप में उन्हें जाना था, उनका जाना यकीनन ब्लॉगजगत की अपूर्णीय क्षति है.

फिर अचानक एक दिन खुशदीप सहगल का मैसेज  मिला तब हमारे दिल्ली में रहने के ३ दिन ही बचे थे और खुशदीप ने तुरत फुरत विमेंस प्रेस क्लब में एक छोटा सा गेट  टू गेदर आयोजित कर डाला.



अब यह ब्लॉगर साथियों से मिलने का जूनून था या हमारी पुरानी आदत कि हम डेल्ही मेट्रो की मेहरबानी से (विगत वर्षों में भारत की सबसे सकारात्मक उपलब्धी )एकदम वक़्त पर खुशदीप के बताये पते पर पहुँच गए.और फिर अगले  30 मिनट बैठे  हुए हमें यह एहसास सताने लगा कि यह पहली अप्रैल पर हमारी गैर मौजूदगी का प्रभाव तो नहीं.यहाँ इस विचार ने मन में प्रवेश किया वहीँ खुशदीप और सर्जना ने कक्ष  में,और उनके पीछे  पीछे  ही राजीव  और संजू  तनेजा, वंदना गुप्ता ,राकेश जी सपत्नीक  ने भी और हमने चैन की सांस ली, सोचा जाने क्यों ?? मैं जल्दी करती नहीं जल्दी हो जाती है….

सबसे पहले डॉ अमर को याद करते हुए २ मिनट के मौन के साथ सबने उन्हें विनम्र  श्रद्धांजलि  दी  फिर सभा को आगे बढ़ाया  गया  स्वादिष्ट पीच टी के साथ. जिसकी सफाई देते हुए खुशदीप को आप कई जगह देख सकते हैं अब गृह  स्वामिनी से तो सभी को डरना पड़ता है.फिर सर्जना ने हमारा दिल ले लिया जबरदस्त्त पापड़ी चाट और टिक्कियाँ खिलाकर. अब इसके बाद खाने गुंजाइश तो बची नहीं थी  परन्तु एक पौष थाली का आना बाकी था जैसे तैसे  उधार के पेट ( वंदना जी से साभार )मंगवाए गए और उस थाली का भी कल्याण किया गया.और इस बीच वही सब हुआ जो ब्लॉगरों  के एक जगह इकठ्ठा होने पर होने की उम्मीद की जानी चाहिए.बीच बीच में कुछ हम ब्लॉगरों की खुश मिजाजी से चिढ़े हुए और अपने काम के बोझ तले दबे हुए लोग हमें धीमे बोलने को धमका भी गए.पर ब्लॉगरों  की आवाज़ को भला कौन दबा पाया है.खैर भोजन और गप्पों के बीच ही शामिल हुईं गीता श्री तो लग गया एक और मस्त तडका.और इस तरह बेहद खूबसूरत मिजाज़ के लोगों के साथ एक बेहद खूबसूरत दोपहर का समापन हुआ.



हम जो पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के बारे में कुछ नकारात्मक और निराशा भरे अनुभवों से भरे घूम रहे थे.प्रेस क्लब के उस कक्ष से एक नई सकारात्मक ऊर्जा के साथ सभी का तहे दिल से आभार करते बाहर निकले.और मन ही मन कहा “उम्मीद अभी बाकी है दोस्त “