एक जंगल था. उसमें तरह तरह के जीव रहते थे. उस पर कुछ कुछ तथाकथित बलशाली जीवों जैसे शेर, चीता, भालू आदि ने कब्जा कर रखा था. जंगल के सभी अच्छे, फलदायक इलाके उन्होंने अपने कब्जे में किये हुए थे. जिनके अन्दर वे सिर्फ अपने ही लोगों को जाने देते. उनके बाहर उन्होंने अपने ही भेड़ियों, सियारों आदि को पहरे पे लगाया हुआ था. उनके ही साथ कुछ लोमड़ियाँ भी थीं जो उनका इन कामों में साथ दिया करतीं. इससे उन सभी छोटे छोटे जानवरों को कभी कभी उस इलाके में घुसने और वहां के फलों का रसपान करने को मिल जाता और वे इससे अपने आपको धन्य मानते.
इसी जंगल में कुछ बिल्लियाँ भी रहती थीं. काबिल, खूबसूरत, प्रतिभावान, चालाक बिल्लियाँ. जिनसे इन अधिपतियों और उनके कर्मचारियों को डर लगा रहता था. न जाने कब ये बिल्लियाँ उनके इलाके में दाखिल हो जाएँ और उनका अधिपत्य समाप्त हो जाये. अत: वे और उनका दल कभी इन बिल्लियों को उस इलाके में नहीं घुसने देता था. कभी कोई बिल्ली यदि वहां दाखिल हो भी जाती तो ये बलशाली जानवर, इन के चहेते भेड़िये और लोमड़ियाँ उन्हें खदेड़ देते. उनपर भोंकते – गुर्राते. इनके पास कुछ ऐसे पेने अस्त्र भी थे जिनसे बिल्लियाँ डरतीं थीं. वे उनसे वार कर उनको घायल कर देते और बिल्लियाँ बेचारी कभी थोड़ा बहुत जवाब देतीं, प्रतिकार करतीं, फिर उन अस्त्रों से घायल हो हताश, दुखी हो चुप बैठ जातीं.
एक बार एक चालाक, बहादुर, प्रतिभावान बिल्ली अपनी काबिलियत से उनके एक इलाके में पहुँच गई और वहां के सबसे फलदार वृक्ष की सबसे ऊपर वाली शाखा पर चढ़ कर बैठ गई. अब उस इलाके के जानवर बोखला गए. उन्होंने अपने भेड़ियों, कुत्तों, लोमड़ियों को उस बिल्ली को डरा धमका कर वहाँ से वापस लौटने को विवश करने को कहा. वे सब अपने काम पर लग गए. खूब भौंके, गुर्राए पर वह बिल्ली टस से मस न हुई. उनमें से किसी में भी उस पेड़ पर चढ़ने की काबिलियत नहीं थी. अब वे नीचे से ही अपने पेने अस्त्र बिल्ली की तरफ उछाल- उछाल कर फेंकने लगे. परन्तु वे अस्त्र भी उस तक नहीं पहुँच रहे थे या ज्यादा से ज्यादा उससे टकराकर वापस उनके सर पर ही आ गिरते थे. बिल्ली शांति से अपनी जगह पर बैठी मुस्कुरा रही थी. किसी का कोई भी वार उसका बाल भी बांका नहीं कर पा रहा था.
यह नजारा देख कर अब वे स्वघोषित अधिपति परेशान हो रहे थे कि अब बाकी बिल्लियों के हौंसले भी बुलंद हो जायेंगे. काबिल तो वे थीं ही अब उनका एकछत्र साम्राज्य छिन सकता था और इस इलाके के फल अब उन्हें बिल्लियों के साथ ही बाँट कर खाने होंगे. वे बिलबिला रहे थे पर कुछ कर पाने में असमर्थ थे क्योंकि बिल्लियों ने अब उनके गीदड़ों से या उनके नुकीले अस्त्रों से डरना छोड़ दिया था.
इति बिल्ली गीदड़ कथा.
(फिर एक कहानी याद आई फिर एक फ़साना याद आया)
(तस्वीर गूगल से साभार)
क्या घुमा घुमा कर मारा है । आधिपत्य जाने का खतरा कैसे उठा लें भला । सच हैं अब बिल्लियाँ तेज़ तर्रार हो गयी हैं। अपने रास्ते बनाने आते उनको ।धारदार व्यंग्य ।