हमारे देश में ९० % लोग अपनी आजीविका से संतुष्ट नहीं हैं, उनकी क्षमता और कौशल कुछ और होते हैं, वह कोशिश व काम किसी और के लिए करते हैं और बन कुछ और ही जाते हैं. नतीजा यह होता है कि वे अपने काम से झुंझलाए रहते हैं और इस मजबूरी में अपनाये अपने आजीविका के साधन के लिए किसी न किसी…

हमारे देश में सैक्स और संस्कृति दो शब्द ऐसे हैं जिन पर जब चाहे हंगामा करा लो. एक जुबान से निकला नहीं कि हंगामा और दूसरा न निकले तो हंगामा। हमें बच्चों के सामने सैक्स से सम्बंधित माँ बहन की गाली देने से परहेज नहीं है, खजुराहो, कोणार्क की मूर्ति कला देखने- दिखाने से परहेज नहीं है परन्तु बच्चों को उनके…

कल एक आधिकारिक स्क्रिप्ट पर आये फीडबैक को देखकर मेरे एक कलीग कहने लगे, – “ऐसे फीडबैक देते हैं तुम्हारे यहाँ? लग रहा है सिर्फ कमियां ढूंढने की कोशिश करके पल्ला झाड़ा गया है, बजाय इसके कि इसमें सुधार के लिए कोई गाइड लाइन दी जाती”  अब मैं उन्हें यह क्या बताती कि शायद हमारे उन अधिकारी को इसी काम के लिए रखा…

मेरे ऑफिस की खिड़की से दीखता है, बड़े पेड़ का एक छोटा सा टुकड़ा। जो छुपा लेता है उसके पीछे की सभी अदर्शनीय चीजों को. उन सभी दृश्यों को जिन्हें किसी भी नजरिये से खूबसूरत नहीं कहा जा सकता। फिर भी उन शाखाओं के पीछे से मैं  झाँकने की कोशिश  करती रहती हूँ. उन हरी हरी पत्तियों के पीछे भूरी -भूरी  …

बरगद की छाँव सा  शहरों में गाँव सा  भंवर में नाव सा  कोई और नहीं होता।  फूलों में गुलाब सा  रागों में मल्हार सा  गर्मी में फुहार सा  कोई और नहीं होता।  नारियल के फल सा  करेले के रस सा  खेतों में हल सा  कोई और नहीं होता। पूनम की निशा सा  पथ में दिशा सा  जीवन में “पिता” सा  कोई…

все те же Я тоже была наивной, В воды Волги опустив ноги В воды, смешанные с моими слезами Все равно вспоминала о Ганге. Горы видела – горы Урала, Только думала о Гималаях. И не знала я о том раньше: Да, зовут их, порой, непохоже, Только вода все та же Только земля все та же. (шиха варшней)  सब एक ही. कैसी…

सामने मेज पर  क्रिस्टल के कटोरे में रखीं  गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ  एक बड़ा कप काली कॉफी  और पल पल गहराती यह रात अजीब सा हाल है.  शब्द अंगड़ाई ले,  उठने को बेताब हैं  और पलकें झुकी जा रही हैं. *************** अरे बरसना है तो ज़रा खुल के बरसो किसी के सच्चे प्यार की तरह ये क्या बूँद बूँद बरसते हो…

जब से देश छूटा हिंदी साहित्य से भी संपर्क लगभग छूट गया और उसकी जगह (उस समय तो मजबूरीवश) रूसी, ग्रीक, स्पेनिश,अंग्रेजी आदि साहित्य ने ले ली. कभी कभार कुछ हिंदी की पुस्तकें उपलब्ध होतीं तो पढ़ ली जातीं। कई बार बहुत कोशिशें करके कुछ समकालीन हिंदी साहित्य खरीदा भी जिनमें कई तथाकथित चर्चित पुस्तकें भी शामिल थीं. परन्तु उनमें से बहुत…

अपने बाकी साथियों से कुछ अलग थी वो. हालाँकि काम वही करती थी. गाने भी वही गाती थी, चलती भी वैसे ही थी और नाचती भी वैसे ही थी. परन्तु न बोली में अभद्रता थी, न ही स्वभाव में लालच और न ही ज़रा सा भी गुस्सा या किसी तरह की हीन भावना  उसके स्वभाव में एक सौम्यता थी, वाणी में विनम्रता और उसका…

सृष्टि की शुरुआत से ही दो तरह के मनुष्यों का उदय हुआ , एक नर और एक नारी। जो शारीरिक रूप से एक दूसरे से भिन्न थे. अत: उन्हें मानसिक और भावात्मक रूप से भी एक दूसरे से भिन्न मान लिया गया. जॉन ग्रे ने तो अपनी प्रसिद्द पुस्तक में यहाँ तक कह डाला कि स्त्री और पुरुष अलग अलग गृह के निवासी…