तुमने मांगी थी वह बाती, जो जलती रहती अनवरत करती रहती रोशन तुम्हारा अँधेरा कोना. पर भूल गए तुम कि उसे भी निरंतर जलने के लिए चाहिए होता है साथ एक दीये का डालना होता है समय समय पर तेल.वरना सूख करबुझ जाती है वह स्वयंऔर छोड़ जाती हैदीये की सतह पर भीएक काली लकीर……

बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा। न जाने क्यों नहीं लिखा। यूँ व्यस्तताएं काफी हैं पर इन व्यस्तताओं का तो बहाना है. आज से पहले भी थीं और शायद हमेशा रहेंगी ही. कुछ लोग टिक कर बैठ ही नहीं सकते। चक्कर होता है पैरों में. चक्कर घिन्नी से डोलते ही रहते हैं. न मन को चैन, न दिमाग को, न ही पैरों को.…

जी हाँ,मेरे पास नहीं है  पर्याप्त अनुभव  शायद जो जरुरी  है कुछ लिखने के लिए  नहीं खाई कभी प्याज रोटी पर रख कर  कभीनहीं भरा पानी  पनघट पर जाकर   बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, कुआं और बरगद का चबूतरा सब फ़िल्मी बातें हैं मेरे लिए  “चूल्हा” नाम ही सुना है सिर्फ मैंने  और पेड़ पर चढ़ तोड़ना आम  एक एडवेंचर,एक खेल  जो कभी नहीं…

होली पर दुनिया गुझिया बना रही है और हम यह – सुनिये…. सुनिये….. ज़रा अपने देश से होली की फुआरें आ रही थीं  कभी फेसबुक पे तो कभी व्हाट्स एप पे गुझियायें परोसी जा रही थीं कुछों ने तो फ़ोन तक पे जलाया था और आज कहाँ कहाँ क्या क्या बना सबका बायो डाटा सुनाया था सुन सुनके गाथाएँ हमें भी जोश…

मैंने अलगनी पर टांग दीं हैं  अपनी कुछ उदासियाँ  वो उदासियाँ  जो गाहे बगाहे लिपट जाती हैं मुझसे  बिना किसी बात के ही  और फिर जकड लेती हैं इस कदर  कि छुड़ाए नहीं छूटतीं  ये यादों की, ख़्वाबों की  मिटटी की खुश्बू की उदासियाँ  वो बथुआ के परांठों पर  गुड़ रख सूंघने की उदासियाँ  और खेत की गीली मिटटी पर बने  स्टापू की…

जब से इस दुनिया की आधी आबादी ने अपने अस्तित्व की लड़ाई आरम्भ की तब से अब तक यह लड़ाई न जाने किन किन मोड़ों से गुजरी। कभी चाहरदिवारी से निकल कर बाहर की दुनिया में कदम रखने के लिए लड़ी गई, कभी शिक्षा का अधिकार मांगती, कभी अपने फैसले खुद करने के लिए लड़ती तो कभी कार्य क्षेत्र में समान अधिकारों की मांग…

मेट्रो के डिब्बे में मिलती हैतरह तरह की जिन्दगी ।किनारे की सीट पर बैठी आन्नाऔर उसके घुटनों से सटा खड़ा वान्या    आन्ना के पास वाली सीट केखाली होने का इंतज़ार करताबेताब रखने को अपने कंधो परउसका सिरऔर बनाने को घेरा बाहों का।सबसे बीच वाली सीट परवसीली वसीलोविच,जान छुडाने को भागतेकमीज के दो बटनों के बीच       घड़े सी तोंद पे दुबकते सन से बाल   रात…

जीवन में छोटी छोटी  खुशियाँ कितनी मायने रखती हैं इसे किसी को समझना हो तो उसके जीने के ढंग से समझा जा सकता था। कोई भी हालात हो या समस्या अगर उसका हल चाहिए तो बैठकर रोने या अपनी किस्मत को कोसने से तो कतई नहीं निकल सकता । हाँ ऐसे समय में सकारात्मकता से सोचा जाये तो जरूर कुछ…

जब से सोचने समझने लायक हुई, न जाने कितने सपने खुली आँखों से देखे. कभी कोई कहता कोरे सपने देखने वाला कहीं नहीं पहुंचता तो कभी कोई कहता कोई बात नहीं देखो देखो सपने देखने के कोई दाम पैसे थोड़े न लगते हैं.पर उनमें ही कुछ बेहद पोजिटिव और मित्र किस्म के लोग भी होते जो कहते कि अरे सपने…

मुझसे एक बार जिंदगी ने  कहा था पास बैठाकर। चुपके से थाम हाथ मेरा  समझाया था दुलारकर। सुन ले अपने मन की,  उठा झोला और निकल पड़।   डाल पैरों में चप्पल  और न कोई फिकर कर।    छोटी हैं पगडंडियां, पथरीले हैं रास्ते, पर पुरसुकून है सफ़र. मान ले खुदा के वास्ते। और मंजिल ? पूछा मैंने तुनक कर.  उसका…