तुमने मांगी थी वह बाती, जो जलती रहती अनवरत करती रहती रोशन तुम्हारा अँधेरा कोना. पर भूल गए तुम कि उसे भी निरंतर जलने के लिए चाहिए होता है साथ एक दीये का डालना होता है समय समय पर तेल.वरना सूख करबुझ जाती है वह स्वयंऔर छोड़ जाती हैदीये की सतह पर भीएक काली लकीर……
मेट्रो के डिब्बे में मिलती हैतरह तरह की जिन्दगी ।किनारे की सीट पर बैठी आन्नाऔर उसके घुटनों से सटा खड़ा वान्या आन्ना के पास वाली सीट केखाली होने का इंतज़ार करताबेताब रखने को अपने कंधो परउसका सिरऔर बनाने को घेरा बाहों का।सबसे बीच वाली सीट परवसीली वसीलोविच,जान छुडाने को भागतेकमीज के दो बटनों के बीच घड़े सी तोंद पे दुबकते सन से बाल रात…









