भाषा – मेरे लिए एक माध्यम है अभिव्यक्ति का. अपनी बात सही भाव में अधिक से अधिक दूसरे  तक पहुंचाने का. अत: मैं यह मानती हूँ कि जितनी भी भाषाओं का ज्ञान हो वह गर्व की बात है परन्तु तब तक, जब तक किसी भाषा को हीन बना कर वह गर्व न किया जाये।  यूँ जरुरत के वक़्त भाषा को किसी…

 रूस के गोर्की टाउन से कर इंग्लैण्ड के स्टार्ट फोर्ड अपोन अवोन तक और मास्को के पुश्किन हाउस  से लेकर लन्दन के कीट्स हाउस तक। ज़ब जब किसी लेखक या शायर का घर , गाँव सुन्दरतम तरीके से संरक्षित देखा हर बार मन में एक  हूक उठी कि काश ऐसा ही कुछ हमारे देश में भी होता। काश लुम्बनी को भी एक यादगार…

 http://shikhakriti.blogspot.co.uk/2013/09/blog-post_15.html  यहाँ से आगे।  अब तक यह तो विजया की समझ में आने लगा था कि घर की तीसरी मंजिल पर रहने वाले निखिल के सगे भैया, भाभी क्यों अजनबियों की तरह रहते हैं, क्यों उन्होंने घर में आने जाने का रास्ता भी बाहर से बना लिया है, और क्यों त्योहारों पर भी वह एक दूसरे को विश तक नहीं करते। हालाँकि बात उलटी भी…

जब से लिखना शुरू किया, हमेशा ही मेरे मित्र मुझे कहानी भी लिखने को कहते रहे. परन्तु मुझे हमेशा ही लगता रहा कि its not my cup of tea.फिर लगातार कुछ दोस्तों के दबाब के कारण और कुछ अपनी क़ाबलियत आजमाने के स्वाभाव के चलते यह पहला प्रयास किया .. और यह मेरी पहली कहानी इस माह (सितम्बर) की “बिंदिया” पत्रिका…

“क्या आपके कारोबार में घाटा हो रहा है?,या आपके बच्चे आपका कहा नहीं मानते और उनका पढाई में मन नहीं लगता , या आपकी बेटी के शादी नहीं हो रही ? क्या आप पर किसी ने जादू टोना तो नहीं किया ? यदि हाँ तो श्री …..जी महाराज आपकी समस्या का समाधान कर सकते हैं। यदि आप पर किसी ने काला जादू किया है तो ऊपर वाले की…

 दिल्ली पुस्तक मेले का परिसर, खान पान में व्यस्त जनता। किसी भी मेले का अर्थ मेरे लिए होता है, कि वहां वह सब वस्तुएं देखने, खरीदने को मिलें जो आम तौर पर बाजारों और दुकानों में उपलब्ध नहीं होतीं। और यही उत्सुकता मुझे पिछले महीने के,भारत में प्रवास के आखिरी दिन की व्यस्तता के बीच भी दिल्ली पुस्तक मेले में खींच ले…

लन्दन में मौसम की खूबसूरती अपने चरम पर है , स्कूलों की छुट्टियां शुरू हो गई हैं और नया सत्र सितम्बर से आरम्भ होने वाला है. ऐसे में हम जैसे के माता पिता के लिए (जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं ) यही समय होता है जो भारत जाकर इन छुट्टियों का सदुपयोग कर आयें. तो हम जा रहे हैं एक महीने…

सामान्यत: मैं धर्म से जुड़े किसी भी मुद्दे पर लिखने से बचती हूँ। क्योंकि धर्म का मतलब सिर्फ और सिर्फ साम्प्रदायिकता फैलाना ही रह गया है। या फिर उसके नाम पर बे वजह एक धर्म को बेचारा बनाकर वोट कमाना या फिर खुद को धर्म निरपेक्ष साबित करना। परन्तु आजकल जिस तरह मीडिया में हिन्दू मुस्लिम राग चला हुआ है मुझे कुछ अनुभव…

 “एक अनुचित और नियम के विरुद्ध स्थानांतरण में,मैंने शासन के कड़े निर्देश का उल्लेख करते हुये ऐसा करने से मना कर दिया। तो महाशय जी ने कलेक्टर से दबाव डलवाया तो मैंने डाँट खाने के बाद लिखा – “कलेक्टर के मौखिक निर्देश के अनुपालन में …. अब मुझे पता है फिर मुझे बहुत बुरी लताड़ पढ़ने वाली है. यहाँ जीना है…

मुझे नफरत है  नम आँखों से मुस्कुराने वालों से  मुझे नफरत है  दिल के छाले छिपा जाने वालों से। मुझे नफरत है  ऍफ़ बी पर गोलगप्पे से सजी प्लेट की  तस्वीर लगाने वालों से  नफरत है मुझे  रोजाना चाट उड़ाने वालों से।  मुझे नफरत उनसे भी है  जो पानसिंह तोमर देखने के बाद  नुक्कड़ की दुकान पर  दही – गुलाब जामुन…