लन्दन में इस बार बसंत का आगमन ऐसा नहीं हुआ जैसा कि हुआ करता था. आरम्भ में ही सूखा पड़ने की आशंका की घोषणा कर दी गई. और  फिर लगा जैसे  बेचारे बादल  भी डर गए कि नहीं बरसे तो उन्हें भी कोई बड़ा जुर्माना ना कर दिया जाये और फिर उन्हें तगड़ी ब्याज दर के साथ ना जाने कब…

हमारे समाज को रोने की और रोते रहने की आदत पढ़ गई है . हम उसकी बुराइयों को लेकर सिर्फ बातें करना जानते हैं, उनके लिए हर दूसरे इंसान पर उंगली उठा सकते हैं परन्तु उसे सुधारने की कोशिश भी करना नहीं चाहते .और यदि कोई एक कदम उठाये भी तो हम पिल पड़ते हैं लाठी बल्लम लेकर उसके पीछे…

यूँ सुना था तथाकथित अमीर और विकसित देशों में सड़कों पर जानवर नहीं घूमते. उनके लिए अलग दुनिया है. बच्चों को गाय, बकरी, सूअर जैसे पालतू जानवर दिखाने के लिए भी चिड़िया घर ले जाना पड़ता है. और जो वहां ना जा पायें उन्हें शायद पूरी जिन्दगी वे देखने को ना मिले.ये तो हमारा ही देश है जहाँ न  चाहते हुए भी हर…

ये मेरा दुर्भाग्य ही है कि अधिकांशत: भारत से बाहर रहने के कारण,आधुनिक हिंदी साहित्य को पढने का मौका मुझे बहुत कम मिला.बारहवीं में हिंदी साहित्य विषय के अंतर्गत  जितना पढ़ सके वह एक विषय तक ही सीमित  रह जाया करता था.उस अवस्था में मुझे प्रेमचंद और अज्ञेय  की कहानियाँ सर्वाधिक पसंद थीं परन्तु और भी बहुत नाम सुनने में आते रहते थे या पत्र…

आज निकली है धूप  बहुत अरसे बाद  सोचती हूँ  निकलूँ बाहर  समेट लूं जल्दी जल्दी  कर लूं कोटा पूरा  मन के विटामिन डी का  इससे पहले कि  फिर पलट आयें बादल  और ढक लें  मेरी उम्मीदों के सूरज को. ******** यूँ धुंधलका शाम का भी बुरा नहीं  सिमटी होती है उसमें भी  लालिमा दिन भर की  जिसे ओढ़कर सो जाता…

बचपन से राजा महाराजाओं ,राजघरानो के किस्से सुनते आये हैं.उनके वैभव, राजसी ठाट बाट, जो कभी भी किसी भी हालत में कम नहीं होते थे. बेशक जनता के घर खाली हो जाएँ पर राजा का खजाना कभी खाली नहीं होता था.. राज परिवार में से किसी की  भी सवारी नगर से निकलती तो सड़क के दोनों और जनता उमड़ पड़ती.बच्चे ,बूढ़े, स्त्रियाँ सभी करबद्ध खड़े…

कल देखा था मैंने उसे  वहीँ उस कोने में  बैठा था चुपचाप मुस्काया मुझे देख  सोचा होगा उसने  कुछ तो करुँगी  बहलाऊँगी ,मनाऊंगी  फिर उठा लुंगी अहिस्ता से  हमेशा ही होता है ऐसे. वो जब तब रूठ कर बैठ जाता है  थोडा ठुनकता है, यहाँ वहां दुबकता है  फिर मान जाता है. पर इस बार जैसे  कुछ अलग है  नहीं है हिम्मत मनाने की …

आज मेरी इस तूफ़ान का जन्म दिन है .यह कविता मैंने तब लिखी थी जब इसे अक्षर पढने तो क्या बोलने भी नहीं आते थे. फिर जब बोलने- समझने लगी तो एक बार मैंने इसे यह पढ़कर सुनाई.पर आखिरकार कुछ समय पहले इसने खुद इसे पढ़ा और कहा की आज जन्म दिन के उपहार स्वरुप मैं उसे यही कविता दे दूं.यानि…

“आज मैंने घर में मंचूरियन बनाया बहुत अच्छा बना है.सबने बहुत तारीफ़ की।” “कल हम घूमने जा रहे हैं, बहुत दिनों बाद.बहुत मजा आएगा।” “किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है, आ जा पूरी छोलों के साथ प्याज भी है।” …….(सभार राजीव तनेजा ) वाह वाह वाह… क्या लगता है आपको  सहेलियां बात कर रही हैं ? या कोई…

न नाते देखता है न रस्में सोचता है रहता है जिन दरों पे न घर सोचता है हर हद से पार गुजर जाता है आदमी दो रोटी के लिए कितना गिर जाता है आदमी *************** यूँ तो गिरना उठना तेरा  रोज़ की कहानी है  पर इस बार जो गिरा तो  फिर ऊपर नहीं उठा है. ****************** बेहतर होता जो तनिक …