इस बार ईस्टर के बाद राजकुमार विलियम की शादी की वजह से २-२ बड़े सप्ताहांत मिले. और शायद यही वजह रही हो कि अचानक लन्दन का मौसम भी बेहद सुहावना हो चला था.अब हमें तो राजकुमार की शादी की खास तैयारियां करनी नहीं थी .ले दे कर एक रिपोर्ट ही लिखनी थी तो सोचा क्यों ना इन सुहानी छुट्टियों का कुछ फायदा उठाया जाये. दुनियाभर से लोग प्रिंस की शादी के लिए लन्दन आ रहे हैं, तो उनके लिए कुछ स्थान खाली कर दिया जाये और दो दिन के लिए लन्दन से बाहर कहीं घूम आया जाये. विचार आया तो उसे क्रियान्वित करने में भी ज्यादा समय नहीं लगा. और हम कुछ मित्रों ने झटपट कार्यक्रम बना डाला. पहले एक दिन समुद्र तट पर बिताने का फिर लन्दन से करीब २२० मील  दूर, कॉर्नवाल स्थित, एक नकली रैन फोरेस्ट देखने का. समुद्र तट का नजारा तो पिछली पोस्ट में दिखा चुकी हूँ आपको. अब बात एडेन प्रोजेक्ट की.

करीब पांच घंटे का “सेंट ऑस्टेल” शहर तक का, कार का सफ़र और थकान का नाम नहीं. यह शायद सिर्फ यूरोप  में संभव है. इतनी खूबसूरत वादियाँ कि नजर हटाने को दिल नहीं चाहता उसपर मौसम खुशगवार हो, और साथ में अपनों का साथ हो. तो हँसते गाते सफ़र कट जाता है.सो हम भी छोटी छोटी सड़कों के द्वारा प्रकृति की गोद से होते हुए सेंट ऑस्टेल के अपने होटल में पहुँच गए. एडेन प्रोजेक्ट का कार्यक्रम दूसरे  दिन का था सो रात का भोजन किया और मित्रों के साथ जम कर अन्ताक्षरी खेलने बैठ गए. अब जब पुरसुकून समय हो और मित्र साथ में, तो आवाज़ के स्वर बढ़ते ही जाते हैं. सो बेचारा होटल मैनेजर  निवेदन करने आया कि रात बहुत हो चुकी है कृपया दूसरे  निवासियों का लिहाज किया जाये और थोड़ा शांत हो जाया जाये.  मन तो नहीं था. पर बात साथी निवासियों की थी और दूसरे  दिन भी पूरे दिन घूमना था सो हमने उस मैनेजर  की बात रख ली और अन्ताक्षरी बंद करके निंद्रा देवी की शरण ले ली.
सेंत ऑस्टेल शहर से एडेन प्रोजेक्ट करीब पांच मील  ही है अत: नाश्ता लगभग ठूंस कर हम लोग निकल पड़े ज्यादा इस बारे में पता ना था बस इतना ही सुना था कि इंसानों द्वारा बनाया गया एक बड़ा सा जंगल है जो बच्चों के लिए काफी शिक्षाप्रद है .वहां जाकर देखा तो वाकई मुँह से वाह निकल गया.एडेन प्रोजेक्ट नाम का यह जंगल दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीन हाउस है. जहाँ प्रवेश करते ही सबसे पहले बहुत ही रोचक एक यंत्र चालित झांकी दिखाई पड़ती है.जिसके माध्यम से बच्चों को यह बताने की कोशिश की गई है, कि अगर पेड पौधे  नहीं होंगे तो क्या होगा.पढने के लिए मेज नहीं होगी ,बैठने के लिए कुर्सी नहीं, खेलने के लिए वीडियो गेम नहीं, पहनने के लिए कपडे नहीं और फ्रिज में एक भी खाने की वस्तु नहीं …और नतीजा…सब कुछ ख़तम.
विशाल व्योम 
उसके बाद प्रवेश होता है मुख्य परिसर का .जहाँ बने हैं दो  विशाल प्राक्रतिक वियोम (गुम्बद) और जिनके अन्दर है पूरी दुनिया. अष्टकोण  और पञ्चकोण  के आकार के बने ये वियोम रसोई में प्रयोग होने वाली क्ल्लिंग फ़ॉइल यानि एक तरह के प्लास्टिक की शीट और स्टील की सलाखों से बने हैं. जिनमें से एक टॉपिकल  और दूसरा  मेडिटेरेनियन पर्यावरण  पर आधारित है. जहाँ दुनिया के हर हिस्से की हर प्रजाति के पौधों  को लगाकर संरक्षित किया गया है .सबसे पहले हमने प्रवेश किया ट्रॉपिकल  वियोम में, जो ३.९ एकड़ जगह में बना हुआ है.जो ५५ मीटर ऊंचा, १०० मीटर चौड़ा  और २०० मीटर लम्बा है. और जिसे उष्णकटिबंधीय तापमान और नमी के स्तर पर रखा है, वहां बाहर ही हमें ताकीद कर दिया गया था, कि अपने जेकेट उतार कर जाइये अन्दर ९० डिग्री  फेरानाईट  तापमान है. अब कुछ लोग  ज्यादा ही अक्लमंद  होते हैं, सोचा ऐसे ही बड़ा चढ़ा कर बोला जा रहा है. एक ही जगह पर ६५ और इस गुम्बद में घुसते ही ९० वो भी बिना किसी हीटिंग  सिस्टम के, कैसे हो सकता है …परन्तु गुम्बद के अन्दर प्रवेश करते ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया. वाकई गुम्बद के अन्दर का तापमान ९० डिग्री फेरानाईट से ज्यादा था और बेहद गर्मी लग रही थी. बच्चे भारत में होने के एहसास की बातें करने लगे थे. उस गुम्बद नुमा जंगल में एशिया और ट्रॉपिकल देशों में होने वाली सभी सब्जी और फलों के पेड पोधे थे जो वाकई एशिया के किसी शहर में होने का एहसास करा रहे थे.आम, केले, पपीते, गन्ने के पेड , नीचे धनिये  ,करी  पत्ते आदि के पौधे , जमीं में लगे अदरक. अजीब सा नेस्टोलोज़िया फैला रहे थे. यहाँ तक कि बीच बीच में कुछ मॉडल्स   के माध्यम से उन देशों का वातावरण भी बनाने की कोशिश की गई थी. खूबसूरत झरनों और प्रकृति के खूबसूरत रूप को निहारते हुए कहीं से भी यह एहसास नहीं होता था, कि यह कोई प्राकृतिक जंगल नहीं, बल्कि ढाई साल के समय में एक बेजान धरती के टुकड़े पर, विशाल गुम्बद के अन्दर बनाया गया मानव निर्मित जंगल है.
इस तरह सभी देशों की सैर करके हम उस गुम्बद से निकल आये और फिर घुसे दूसरे  भूमध्यीय  गुम्बद में, जो कि इतना गरम नहीं था.और उसके अन्दर मेडेटेरीनियन  पेड पौधों के साथ ही एक बहुत ही खूबसूरत बगीचा भी था.इतने खूबसूरत ट्यूलिप खिले हुए थे, कि किसी चित्रकार की कोई सुन्दरतम कलाकृति जान पड़ते थे.
अफ्रीका 
वहां की छटा देखकर बाहर निकले तो नजर पडी एक बहुत ही निराले फ़ूड कोर्ट पर जहाँ सब कुछ लकड़ी का था .बनाने वाले बर्तन भी और खाने वाले बर्तन भी.सब कुछ एकदम प्राकृतिक जैसा. मुँह में पानी तो आया परन्तु सुबह नाश्ता इस कदर ठूंसा हुआ था कि लालच छोड़ हम आगे बढ़ गए. यह एक हॉल था जहाँ स्कूल के बच्चों द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा पर बनाये गए प्रोजेक्ट रखे थे और वहीँ दिखाई गई एडेन प्रोजेक्ट के निर्माण और उद्देश्य से जुडी एक रोचक फिल्म .
फ़ूड कोर्ट 
इस ग्लोबल वार्मिंग के समय में एक बंजर जमीं पर बनाया गया ये ग्रीन हाउस. आशा और सजगता का एक प्रमाण सा है. जो बेहद रोचक अंदाज में अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूकता फ़ैलाने का कार्य बहुत ही कुशलता और सफलता से कर रहा है.और जहाँ से बाहर निकलते ही हर बच्चे – बड़े के मन में एक ही बात होती है कि ऐसा ही एक जंगल हम भी अपने घर के पीछे बनायेंगे,  वहां अपनी मनपसंद पौधे उगायेंगे .और अपनी प्यारी धरती को जो हमें इतना कुछ देती है.. — हम अपने हिस्से का योगदान अवश्य देंगे.