हमारे पास रविवार शाम गुजारने के लिए दो विकल्प थे. एक बोल बच्चन और एक कॉकटेल .अब बोल बच्चन के काफी रिव्यू पढने के बाद भी हॉल पर जाकर जेब खाली करने की हिम्मत ना जाने क्यों नहीं हुई तो कॉकटेल पर ही किस्मत अजमाई का फैसला किया गया, यह सोच कर ओलम्पिक साईट में नए खुले मॉल का VUE सिनेमा  चुना गया कि फिल्म ना भी झेलने लायक हुई तो कम से कम अच्छे सिनेमा हॉल को देखकर पैसे वसूल हो जाएँ.खैर हॉल के अन्दर पहुंचे तो हम अकेले ही थे लगा .. गलत फिल्म चुन ली .पर फिर धीरे- धीरे  लगभग पूरा हॉल भर गया और फिल्म शुरू हुई.

पहले ही सीन में हीरो(सैफ अली खान ) दिल्ली से लन्दन जा रहा है. आश्चर्य नहीं हुआ. आजकल लगभग हर फिल्म में लन्दन आना जाना ऐसे दिखाया जाता है जैसे सारी उड़ान भारत से सिर्फ लन्दन की तरफ ही जाती हैं.मानो २ ही देश हैं दुनिया में.खैर दिल्ली से जहाज में चढ़ा हुआ हीरो सीधा लन्दन के “बार” में ही उतरता है और उसकी फ्लर्टिंग शुरू हो जाती है. हर सामने नजर आई लड़की को पटा लेता है. आखिर लन्दन वो आया ही क्यों है भला. फिल्म की हीरोइन (दीपिका पदुकोन)  भी लन्दन में पली बड़ी है तो जाहिर हैं वो भी ऐसी ही है.डिस्को और  बार , पीना और नाचना.यही उसकी जिन्दगी है.ऐसे ही समय में एक सिमटी सकुचाई देसी बाला(डायना पेंटी ) का भी आगमन होता है. जिसे लन्दन के ही किसी लफंगे ने नकली शादी कर के फंसा दिया है. और अब वह उसे अपनाने से मना कर देता है.और इन परिस्थितियों में रोती हुई उस देसी कन्या मीरा को मिस लन्दन वेरोनिका अपने घर ले आती है. और “what is in the house,”on the house”  ” के आधार पर दोनों सहेलियां बन जाती हैं.फिल्म के पहले हाफ में कहानी इसी तरह मस्ती में चलती है ,मौज मस्ती, चुहुल और सिनेमा हॉल में लोग हँसते रहते हैं.पर फिल्म के दूसरे भाग में हीरो की माँ ( डिम्पल) के आगमन से कहानी का रुख थोडा सा बदलता है, जब माँ को खुश करने के लिए मिस लन्दन की जगह देसी बाला को बहु के रूप में पेश कर दिया जाता है. फिर वही होता  है जिसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं.नाटक करते करते प्यार, कशमकश,जलन . और फिर दोस्ती , प्यार , और त्याग वाले सभी मेलोड्रामा के साथ फिल्म अपने सुखद अंत तक पहुँच जाती है.

फिल्म की कहानी सैफ खान की ही एक फिल्म “लव आजकल” की ही तर्ज़ पर है, यहाँ तक कि माहौल  और परिवेश भी बिलकुल वही है.तो अगर अपने लव आजकल देखी है तो इस फिल्म में आपको कुछ हास्य एंगल की अधिकता से अलग कुछ भी नया नहीं लगेगा.

हाँ फिल्म देखने के बाद मुझे लगा जैसे फिल्म बनाने वाला कुछ पॉइंट्स पर नजर डालने को कहता है. बरसों पुराने स्लोगन एल बी सी डी (लन्दन बोर्न कन्फ्यूज देसी )को दिखाना चाहता है.जैसे –
-एक भारतीय पुरुष लन्दन पहुँच जाये या अमेरिका.वह शहर उसके लिए खुले रिश्ते बनाने की जगह तो हैं. परन्तु शादी उसे ऐसी ही लड़की से करनी है जो उसके घर लौटने पर उसे रोटी बनाकर खिला सके.
-लन्दन में पली बढ़ी एक लड़की हर काम बिंदास तरीके से करती है. किसी से भी उसका रिश्ता १ हफ्ता ,२ हफ्ता या ज्यादा से ज्यादा १ महीने रखने में विश्वास करती है. परन्तु अगर उसका पार्टनर उसकी सहेली से शादी करना चाहे तो उसके अन्दर की भारतीय नारी जाग जाती है.और अचानक वह मिस लन्दन से भारतीय बाला बनने पर उतारू हो जाती है.
-लन्दन में लोगों को तो घर में रहना ही नहीं आता. बिखरा सामान, खाली फ्रिज,अस्तव्यस्त गंदे कपडे  ..उस अपार्टमेन्ट को घर एक सुघड़ भारत से आई लड़की ही बना सकती है .वगैरह वगैरह 

यूँ फिल्म का संपादन कसा हुआ है और संवाद चुटीले हैं कहीं भी फिल्म उठ कर जाने को नहीं कहती.
सैफ इस तरह की कई भूमिकाएं कर चुके हैं अत: वो इसमें फिट लगते हैं. दीपिका ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.नई अभिनेत्री डायना पेंटी.स्क्रीन पर अच्छी लगती है.अभिनय भी ठीक कर लेती हैं हाँ संवाद अदायगी कहीं  कहीं  सपाट हो  जाती  है.वोमन इरानी और डिम्पल ने अपनी छोटी सी भूमिका में गज़ब ढाया  है.उनके हिस्से आये संवाद फिल्म में नई जान डालते हैं.
फिल्म का संगीत वैसे मुझे कान फोडू लगा. फिर भी “तुम्हीं दिन ढले ” और “दारू देसी” देखने,सुनने में अच्छे लगते हैं.
पूरी फिल्म के दौरान लन्दन की सड़कों पर शिद्दत से घुमाया गया है. और लन्दन  की नाईट लाइफ की भी अच्छी नुमाइश की गई है.

हालाँकि कुछ डिटेलिंग पर निर्देशक मुझे चुकता सा लगता है जैसे  – कार को किसी भी स्ट्रीट पर यूँ खड़ा करके चले जाना – मन  होता है कहूँ, ओये!!! पार्किंग टिकेट लगा के जा, वर्ना अभी ठुल्ला आकर भारी जुर्माना लगा जायेगा.
या फिर भारत में एक फुटपाथ पर अपना बैग और जेकेट छोड़कर हीरो जी सड़क पार हिरोईन से मिलने चले जाते हैं …तो लगता है कहूँ- बॉस !! ये इंडिया है माना हिरोईन के सामने बैग की परवाह नहीं पर उसमें  मौजूद पासपोर्ट आदि की तो चिंता कर लो.
पर ये बातें नजरअंदाज की जा सकती हैं.और कुल मिलाकर एक बार देखने लायक फिल्म तो है ही.उसपर और कुछ नहीं पर यदि आपको लन्दन के दर्शन करने हैं तो देख ही आइये साथ में थोडा हंस भी लेंगे फिल्म इतनी भी बुरी नहीं है.Not bad I would say.