फ़्रांस की राजधानी पेरिस – द सिटी ऑफ़ लव, भव्यता, संम्पन्नता, ग्लेमर का पथप्रदर्शक.बाकी दुनिया से अलग एक शहर, जिसकी चकाचौंध के आगे सब कुछ फीका लगता है. लन्दन आने वाले हर व्यक्ति के  मन में सबसे पहले इस फैशन  की इस राजधानी को देख लेने की इच्छा बलबती होने लगती है. लन्दन से कुल  ३४३ km  ( सड़क से ) दूर पेरिस तक जाने के लिए सभी यातायात के साधन मौजूद हैं. परन्तु हमने  जाना तय किया यूरो स्टार से,यह ट्रेन लगभग सवा दो घंटे में पेरिस पहुंचा देती है और आप इंग्लिश चैनल  पार करते समय ट्रेन का समुन्द्र के अन्दर बनी गुफा में से होकर जाने का भी अनुभव ले पाते हैं. हालाँकि सिवा इसके कि आपको पता है कि आप समुंदर के अन्दर से जा रहे हैं और किसी भी तरह का अलग अहसास इसमें नहीं होता.बरहाल कुछ ही समय में आप एक देश से दूसरे देश पहुँच जाते हैं. परन्तु इंग्लेंड फ़्रांस की सीमा पर पहुँचते  ही कस्टम और इमिग्रेशन के समय आपको अहसास होता है कि आप दूसरे देश में आ गए हैं और खासकर अगर आप इंग्लेंड से आये हैं तो वहां के पूछताछ अधिकारीयों के चेहरे पर अनमने भाव भी दृष्टिगोचर होने लगते हैं. आप को कुछ ज्यादा ही गौर से देखा और परखा जाने लगता है.

कहने का मतलब यह कि अपने को अंग्रेज कहलाने और अंग्रेजी जानने में गर्व से सर उठाकर चलने वालों का सारा एटीट्युट  वहां जमीं पर दिखाई देने लगता है.एक टूरिस्ट शहर होने के वावजूद राह चलते राहगीर हों या होटल का मैनेजर  कोई भी अंग्रेजी बोलने में रूचि लेता दिखाई नहीं पड़ता.अत: रेलवे स्टेशन से होटल तक का पांच मिनट का बताया हुआ रास्ता हमने आधे घंटे में बड़ी मुश्किल से तय किया.उस पर वहां पहुँचते ही “ऊंची दूकान फीके पकवान” कहावत चरितार्थ होती दिखाई दी. शहर के बीच में एक महँगा होटल होने के वावजूद बहुत ही साधारण से होटल में हम प्रवेश कर रहे थे .इंटरनेट पर देख कर होटल बुक कराने का यह एक और नुक्सान था.खैर हमारा पेरिस में कार्यक्रम सिर्फ तीन दिन का था जिसमें से आधा दिन निकल चुका था और एक पूरा दिन डिज़नी लैंड के लिए सुरक्षित था. तो बचे डेढ़ दिन में पूरा पेरिस देखने की नीयत से हम सामान रख कर तुरंत रिसेप्शन पर पहुंचे कि वहां से शहर के दर्शनीय स्थल और ट्रांसपोर्ट की जानकारी लेकर तुरंत ही निकला जाये. परन्तु शायद फ्रांसीसियों के रूखेपन के किस्से यूँ ही मशहूर नहीं हैं. होटल के रिसेप्शन पर बैठे महोदय सामने ग्राहक को देखकर भी बाकायदा फ़ोन पर अपनी सहेली से गप्पों में मशगूल थे.अब आप पूछेंगे कि वह तो फ्रेंच बोल रहा होगा हमने कैसे जाना कि वह अपनी प्रेमिका से बतिया रहा था ? तो जी प्रेम किसी भाषा में किया जाये समझ आ ही जाता है. हमारे दो  बार टोकने के वावजूद भी २०  मिनट बाद वह हमसे मुखातिब हुए और अपनी मजबूरी में बोली गई अंग्रेजी में हमें सिर्फ एक बस का नंबर समझा सके जो हमें पेरिस के मुख्य चौक तक ले जा सकती थी.

अब हमारी समझ में आ चुका था कि क्यों लोग लन्दन से पेरिस का फिक्स टूर लिया करते हैं और हमने अपने बल बूते पर अपनी सुविधा के अनुसार पेरिस देखने की योजना बनाकर कितनी बड़ी भूल की थी. खैर “देर आये दुरुस्त आये” की तर्ज़ पर हमने फिर साईट सीन दिखाने वाली खुली बस के दो दिन के टिकट लिए और निकल पड़े पेरिस घूमने .सीन नदी के किनारे बसा यह शहर वाकई बेहद खूबसूरत है और ज्यादातर दर्शनीय इमारतें इसी नदी के दोनों तरफ बनी हुई हैं जिन्हें आपस में पुराने बने हुए दर्शनीय पुल जोड़ते हैं.यूँ बस से सभी स्थल दिखाई दे ही रहे थे पर सबसे पहले हमने मुख्य स्थल एफिल टावर ही देखने की ठानी .
लोहे के इस विशाल  टॉवर  का निर्माण १८८९ में वैश्विक मेले के लिए शैम्प-दे-मार्स में सीन नदी के तट पर  हुआ था. और इसे बनाने में २ साल २ महीने और पांच दिन लगे थे.।  एफ़िल टॉवर को गुस्ताव एफ़िल नाम के एक इंजिनियर ने बनाया था. यह वही व्यक्ति थे जिन्होंने स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी का बाहरी खाका भी बनाया था.और उन्हीं के नाम पर एफिल टॉवर का नामकरण हुआ है। १९३० तक एफ़िल टॉवर  दुनिया की सबसे ऊँची इमारत थी। आज की तारीख में टॉवर की ऊँचाई ३२४ मीटर है, जो की पारंपरिक ८१ मंज़िला इमारत की ऊँचाई के बराबर है। और इस तीन मंजिला टॉवर को टिकट खरीद कर देखा जा सकता है. दूसरी मंजिल तक और तीसरी मंजिल तक जाने के अलग अलग पैसे हैं.शायद उंचाई से डरने वाले लोग दूसरी मंजिल से ही वापस आ जाते होंगे पर हमने तीसरी मंजिल तक जाने के लिए टिकट लिया और पहुँच गए यह देखने कि आखिर लोहे के इस बड़े से खम्भे नुमा चीज़ में ऐसी क्या बात है कि इसे दुनिया के आश्चर्यों में गिना जाता है.
५७ मीटर की उंचाई पर बनी टॉवर की पहली मंजिल पर गुस्ताव एफ़िल की ओर से श्रद्धांजलि के रूप में १८ ओर १९ सदी के महान वैज्ञानिकों के नाम बड़े स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं. जो नीचे से दिखाई देते  है। बच्चों के लिए एक फ़ॉलॉ गस नामक प्रदर्शन है जिसमें खेल-खेल में बच्चों को एफ़िल टावर के बारे में जानकारी दी जाती है। यहीं  कांच की दीवार वाला 58 Tour Eiffel नामक रेस्टोरेंट भी है.
११५ मी. की ऊंचाई पर स्थित एफ़िल टावर की दूसरी मंज़िल से पैरिस का सबसे बेहतर नज़ारा देखने को मिलता है,हमें बताया गया कि मौसम साफ़ हो तो करीब ७० कि० मि० तक यहाँ से देखा जा सकता है.। इसी मंज़िल पर एक कैफ़े और सुविनियर खरीदने की दुकान भी है। दूसरी मंज़िल के ऊपर एक उप-मंज़िल भी है जहाँ से तीसरी मंज़िल के लिए लिफ्ट ले सकते है।
२७५ मी. की ऊँचाई पर एफ़िल टावर की तीसरी मंज़िल चारों ओर से शीशे से बंद है। यहाँ गुस्ताव एफ़िल का ऑफ़िस भी है. इसे कांच की दीवारों से ढका गया है,ताकि यात्री इसे बाहर से देख सकें। इस ऑफ़िस में गुस्ताव एफ़िल की मोम की मूर्ति रखी है। तीसरी मंज़िल के ऊपर एक उप-मंज़िल है जहाँ पर सीढ़ियों से जा सकते है। इस उप-मंज़िल की चारों ओर जाली लगी हुई है और यहाँ पैरिस की खूबसूरती का नज़ारा लेने के दूरबीनें  रखी हुई हैं । इस के ऊपर एक दूसरी उप मंज़िल है जहाँ जाना मना है । यहाँ रेडियो और टेलिविज़न की प्रसारण के लिए एंटीना  है.
तो तीसरी मंजिल से ही एक बार दूरबीन से झांककर हम नीचे उतर आये.पेट में चूहे कूद रहे थे और टॉवर के रेस्टोरेंट में उनके पैसों के एवज में खाने लायक हमें कुछ नहीं मिला था.नीचे परिसर में आये तो कुछ खाने के स्टाल थे जहाँ फ्रेंच ब्रेड के ही कुछ किस्म के सेंडविच मिल रहे थे किसी तरह उन्हीं में से कुछ लिया और पेट की आग को शांत किया. एक और बात समझ में आई कि यहाँ खाना भी आसानी से नहीं मिलने वाला सुबह होटल में नाश्ते के समय भी हालाँकि होटल के किराये में फ्रेंच नाश्ता शामिल था, जिसमें सिर्फ क्रोजंट और कॉफी था. कोई अंडा नहीं ब्रेड तक नहीं. फ्रेंच नाश्ता मतलब = क्रोजंट और कॉफी बस.खैर रात को किसी अच्छे  होटल की आशा में किसी तरह वही खाकर गुजारा कर हम लोग निकले ल्रूव म्यूजियम देखने.
फ्रांसीसी भाषा में – Musée du Louvre- यूरोप का सबसे पुराना और विश्व के प्रसिद्द संग्रहालयों  में से एक है.पिरामिड के आकार का प्रवेश द्वार वाले इस अद्भुत संग्रहालय में उनीसवीं सदी तक की सभ्यताओं की स्मृतियाँ रखी हुई हैं. कला के एक से बढकर एक उत्कृष्ट नमूनों के साथ मेरे लिए जो एक सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र था वह था –  मिस्र की सभ्यता का लाइव मॉडल – इतना बेहतरीन. कि लगता था उसी समय के एक शहर में विचरण कर रहे हैं. यहाँ गलियों से होते हुए निकलेंगे उन सार्वजानिक जल कुंडों में और फिर बाजार, दुछत्ती घर और ब्रेड को पकाने वाले सार्वजानिक मिट्टी के तंदूर. मुझे वहां घूमते हुए बेहद मजा आ रहा था परन्तु साथ के बाकी लोग जल्दी में थे  लिओनार्डो द बिंची (Leonardo da Vinci) की  उस कला कृति को देखने के लिए, जिसका कथित रहस्य आज तक बना हुआ है. “मोना लीसा”. विन्ची की इस रहस्यमयी छोटी सी तस्वीर में मुझे समझ में नहीं आया कि ऐसा क्या था कि सबसे ज्यादा भीड़ वहीँ लगी हुई थी पर शायद कला के पारखी समझ सके हों हमें तो  वह बहुत  ही साधारण सी एक औरत की तस्वीर भर लगी.
यूँ यह संग्रहालय इतना बड़ा है कि पूरा देखने में एक हफ्ता तो लग ही जाये पर हम दो घंटे में घूम घाम कर निकल आये उसके बाद हमारा लक्ष्य था 
नोट्रे दाम कथेड्रल – कहा जाता है कि मार्बल के इस खूबसूरत चर्च को देखे बिना पेरिस की यात्रा अधूरी है.मध्युगीन पेरिस के गोथिक वास्तुकला का यह एक अद्भुत नमूना है.और इसे बनाने में १०० से अधिक साल लगे थे.अंदाजा लगया जा सकता है कि पेरिस के दर्शनीय स्थलों में इसका क्या स्थान है .
पेरिस में देखने लायक कथेद्रल और संग्रहालय इतने हैं कि आप देखते देखते थक जाओ परन्तु वह ख़त्म ना हों. अत: हमने निश्चय किया कि अब बाकी सभी इमारतें बस में बैठ कर ही देखी जाएँ और उस सीन नदी को भी, जिसका नौका विहार काफी प्रसिद्द है पर हमारे पास समय नहीं था. 
शाम होने लगी थी और अँधेरा होते ही एफिल टॉवर रौशनी से जगमगा उठता है. सो इस “इवनिंग ऑफ़ पेरिस” को हम वहीँ बैठकर निहारना चाहते थे.जिसके लिए पूरे परिसर में लोग जमा हो उठे थे.जिसे जहाँ जगह मिली जम गया था. और इंतज़ार कर रहा था उस पल का जब वह लोहे की ईमारत एक खूबसूरत रोमांटिक ईमारत में बदल जाएगी. और वाकई रौशनी में भीगा एफिल टॉवर पूरे माहौल को जैसे देदीप्यमान  कर देता है.परिसर की सीढियों  में बैठे जोड़े अपलक उसे निहारते हुए भावुक हुए जा रहे थे.पेरिस की रंगीनियों का समय आरम्भ हो चुका था.पेरिस के नाईट क्लब अपने शबाब पर आ रहे थे परन्तु हमें अपने डेरे पर लौटना था.लौटने हुए देखी हमने वह जगह जहाँ पेपेराज्जी से भागते लेडी डायना और डोडी का एक्सीडेंट हो गया था और इस रंगीन शहर में इस प्रेमी जोड़े की कब्र भी शामिल हो गई थी.
दूसरा दिन डिज़नी  लैंड  के लिए सुनिश्चित था.अब डिज़नी लैंड  की व्याख्या करने यहाँ बैठी तो जाने कितने आलेख लिखने पड़ें अत: सिर्फ इतना बता देती हूँ कि सपनो की सी इस दुनिया में वह सब कुछ है जिसकी आप  खूबसूरत से खूबसूरत कल्पना कर सकते हैं. बच्चों के लिए स्वर्ग जैसा, यह ऐसा स्थान है जो एक अद्भुत दुनिया की सैर करता है. परन्तु फ़्रांस की इस अद्भुत दुनिया में बहुत जरुरी है कि आप आपना होश ना खोएं .वर्ना शायद अपना बटुआ, या बैग या फिर कैमरा भी भी खो सकते हैं. जैसे हमने खोया अपना बैग जो बाद में ढूंढने से हमें मिला एक कचरा पेटी में, अन्दर से एकदम खाली….
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