टावर ऑफ़ लंदन पर, प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए जवानों की स्मृति में 888,246 (2010 के ऑडिट के मुताबिक प्रत्येक ब्रिटिश शहीद के नाम एक) पॉपी के सिरामिक के फूल लगाए गए. जिन्हें १८ जुलाई २०१४ से लगाना शुरू किया गया था।  


         
Seas of Red.
एक खून के दरिया से लगने वाला ये नजारा एक पल को सांस रोक देने वाला था जिसे करीब ५ लाख लोगों ने देखा। फिर १२ नवम्बर से इन्हें उखाड़ने का काम शुरू हुआ जो नवम्बर अंत तक चलेगा और फिर इन्हें डिब्बा बंद करने का और उन लोगों को भेजने का काम शुरू होगा जिन्होंने २५ पाउंड्स प्रति फूल के हिसाब से इन्हें खरीदा है. वहीँ टावर ऑफ़ लंदन की रोती हुई खिड़की (वीपिंग विंडो ) और लहर (वेव) के पॉपी के फूलों के कैस्केट २०१५ से २०१८ तक पूरे यू के में घुमाए जाएंगे और फिर उन्हें इम्पीरियल वॉर म्यूजियम में रख दिया जाएगा। दी वेव 


कोई भी इंसान इसे देख कर भावुक हुए बगैर नहीं रह सकता। युद्ध में मारे गए लाखों जवानों को याद करने का और उन्हें श्रद्धांजलि देने का यह बेशक एक संवेदनशील तरीका है. परन्तु कुछ लोगों के राजनैतिक फायदे के लिए लाखो मासूम जानों का चला जाने, अनगिनत बच्चों का अनाथ हो जाने और न जाने कितने ही परिवारों के पूरी तरह खत्म हो जाने की भरपाई क्या इस तरह की किसी भी श्रद्धांजलि से की जा सकती है? 
वीपिंग विंडो 
हम उन शहीदों को याद करते हैं, उनके बलिदान पर फक्र करते हैं, उनकी देशभक्ति की कसमें खाते हैं, हमारी आँखें गीली होती हैं और दिल जज़्बाती हो जाता है. पर क्या हम उस भयावह स्थिति की कल्पना मात्र भी कर पाते हैं? उस मंजर की, उस बीभस्त नज़ारे की? उन मासूमों की असामयिक अप्राकृतिक मौत की, उन क्षत विक्षित परिवारों के दुःख का क्या सही भान हमें हो पाता है ? शायद नहीं, क्योंकि यदि ऐसा होता तो वह समय और उन बलिदानों को याद करके हम यह अपव्ययी आयोजन न करते, बल्कि युद्धों और ऐसी अनगिनत मासूम मौतों को रोकने के प्रयत्न करते।

कितना अच्छा होता यदि इस तरह के युद्ध की नौबत ही न आने देने के लिए हम कुछ करते। कितना अच्छा होता कि कभी कोई युद्ध न होता, जिसकी यादें इतनी भयानक न होतीं। कितना अच्छा होता कि हम फिर कभी कोई युद्ध न लड़ने की कसम खाते शायद यह उन जवानो और उनके परिवारों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होती.