सिंधु घाटी से मेसोपोटामिया तक मोहन जोदड़ो से हड़प्पा तक कहाँ कहाँ से न गुजरी औरत, एक कब्र से दूसरी गुफा तक. अपनी सहूलियत से करते उदघृत देख कंकालों को कर दिया परिभाषित। इस काल में देवी उस में भोग्या इसमें पूज्य तो उसमें त्याज्या बदलती रही रूप सभ्यता दर सभ्यता। जिसने जैसा चाहा उसे रच दिया अपने अपने…
कुछ कहते हैं शब्दों के पाँव होते हैं वे चल कर पहुँच सकते हैं कहीं भी दिल तक, दिमाग तक,जंग के मैदान तक. कुछ ने कहा शब्दों के दांत होते हैं काटते हैं, दे सकते हैं घाव, पहुंचा सकते हैं पीड़ा। मेरे ख़याल से तो शब्द रखते हैं सिर्फ अपने रूढ़ अर्थ कब, कहाँ, कैसे,कहे, लिखे, सुने गए यह कहने सुनने वाले की नियत पर है निर्भर कोई भी शब्द अच्छा या…
मुस्कुराहटें संक्रामक होती है बहुत तेजी से फैलती हैं साथ ही चिंता, दुःख जैसे वायरस के लिए एंटी -वायरल भी होती है. फिर वह मुस्कुराहटें मरीज की हों या मरीज के साथ वाले की उनका प्रभाव सामने वाले पर अवश्य ही पड़ता है और इसी मुस्कराहट से उपजी सकारात्मकता से बेशक मुश्किलें न सुलझें पर कुछ वक्त के लिए भुलाई…
मोस्को में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान, हमारे मीडिया स्टडीज के शिक्षक कहा करते थे कि पत्रकारिता किसी भी समय या सीमा से परे है. आप या तो पत्रकार हैं या नहीं हैं. यदि पत्रकार हैं तो हर जगह, हर वक़्त हैं. खाते, पीते, उठते, बैठते, सोते, जागते हर समय आप पत्रकारिता कर सकते हैं. आप बेशक सक्रीय पत्रकार न हों परन्तु…







