जबसे भारत से आई हूँ एक शीर्षक हमेशा दिमाग में हाय तौबा मचाये रहता है “सवा सौ प्रतिशत आजादी ” कितनी ही बार उसे परे खिसकाने की कोशिश की.सोचा जाने दो !!! क्या परेशानी है. आखिर है तो आजादी ना. जरुरत से ज्यादा है तो क्या हुआ.और भी कितना कुछ जरुरत से ज्यादा है – भ्रष्टाचार  , कुव्यवस्था, बेरोजगारी, गरीबी , महंगाई…

कुछ दिन पहले अनिल जनविजय जी की फेस बुक दिवार पर एसेनिन सर्गेई की यह कविता  .Я помню, любимая, помню (रूसी भाषा में ) देखि. उन्हें पहले थोडा बहुत पढ़ा तो था परन्तु समय के साथ रूसी भी कुछ पीछे छूट गई. यह कविता देख फिर एक बार रूसी भाषा से अपने टूटे तारों को जोड़ने का मन हुआ.अत:  मैंने इसका…

लन्दन का मौसम आजकल अजीब सा है या फिर मेरे ही मन की परछाई पड़ गई है उसपर.यूँ ग्रीष्म के बाद पतझड़ आने का असर भी हो सकता है.पत्ते गिरना अभी शुरू नहीं हुए हैं पर मन जैसे भावों से खाली सा होने लगा है. सुबह उठने के वक़्त अचानक जाने कहाँ से निद्रा आ टपकती है ऐसे घेर लेती है कि…

  कुछ अंगों,शब्दों में सिमट गई  जैसे सहित्य की धार  कोई निरीह अबला कहे,  कोई मदमस्त कमाल. ******************* दीवारों ने इंकार कर दिया है  कान लगाने से  जब से कान वाले हो गए हैं  कान के कच्चे. ********************* काश जिन्दगी में भी  गूगल जैसे ऑप्शन होते  जो चेहरे देखना गवारा नहीं  उन्हें “शो नेवर” किया जा सकता  और अनावश्यक तत्वों को…

मन की राहों की दुश्वारियां निर्भर होती हैं उसकी अपनी ही दिशा पर और यह दिशाएं भी हम -तुम निर्धारित नहीं करते  ये तो होती हैं संभावनाओं की गुलाम  ये संभावनाएं भी बनती हैं स्वयं  देख कर हालातों का रुख  मुड़ जाती हैं दृष्टिगत राहों पे कुछ भी तो नहीं होता हमारे अपने हाथों में  फिर क्यों कहते हैं कि आपकी जीवन रेखाएं …

अमूमन कहा जाता है कि दोस्त ऐसे रिश्तेदार होते हैं जिन्हें हम खुद अपने लिए चुनते हैं. परन्तु मुझे लगता है कि दोस्त भी हमें किस्मत से ही मिलते हैं.क्योंकि मनुष्य तो गलतियों का पुतला है इस चुनाव में भी गलती कर सकता है खासकर जब बात अच्छे और सच्चे दोस्तों की हो.तो ऐसे दोस्त किस्मत वालों को ही नसीब होते…

भोपाल- यूँ यह शहर अनजान कभी ना था. गैस त्रासदी , ताल तलैये और बदलते वक़्त के साथ न्यू मीडिया और हिंदी साहित्य  के बढ़ते हुए क्षेत्र के रूप में भोपाल हमेशा ही चर्चा में सुनाई देता रहा. परन्तु कभी इस शहर के दर्शनों का लाभ नहीं मिला अत: इस बार जब भारत प्रवास के दौरान श्री अनिल सौमित्र जी का निमंत्रण,…

लन्दन में ओलम्पिक जोश अपने चरम पर है.27 जुलाई को उद्घाटन समारोह है.परन्तु अफ़सोस यह कि हमें उद्घाटन  की तो क्या पूरे खेलों में से किसी एक की भी टिकट नहीं मिली है. और हमें ही नहीं, हमारी पहुँच में जितने भी लोग हैं किसी को भी नहीं मिली है.ऐसे में हमने सोचा कि क्यों फिर ये छुट्टियां बर्बाद की जाएँ, जब…

  हमारे पास रविवार शाम गुजारने के लिए दो विकल्प थे. एक बोल बच्चन और एक कॉकटेल .अब बोल बच्चन के काफी रिव्यू पढने के बाद भी हॉल पर जाकर जेब खाली करने की हिम्मत ना जाने क्यों नहीं हुई तो कॉकटेल पर ही किस्मत अजमाई का फैसला किया गया, यह सोच कर ओलम्पिक साईट में नए खुले मॉल का VUE सिनेमा  चुना गया…

लरजती सी टहनी पर झूल रही है एक कली सिमटी,शरमाई सी थोड़ी चंचल भरमाई सी   टिक जाती है हर एक की नज़र हाथ बढा देते हैं सब उसे पाने को  पर वो नहीं खिलती इंतज़ार करती है  बहार के आने का कि जब बहार आए तो कसमसा कर  खिल उठेगी वह  आती है बहार भी  खिलती है वो कली भी…