अभी तक नस्लवाद का इल्जाम पश्चिमी विकसित देशों पर ही लगता रहा है.आये दिन ही नस्लवादी हमलों के शिकार होने वालों की खबरे आती रहती हैं. कभी ऑस्ट्रेलिया से, तो कभी ब्रिटेन से तो कभी अमेरिका से. पर क्या कभी आपने सुना या सोचा कि अंग्रेज़ भी कभी इस नस्लवाद का शिकार हो सकते हैं.कुछ अजीब लगता है ना ? पर आजकल…

फ़्रांस की राजधानी पेरिस – द सिटी ऑफ़ लव, भव्यता, संम्पन्नता, ग्लेमर का पथप्रदर्शक.बाकी दुनिया से अलग एक शहर, जिसकी चकाचौंध के आगे सब कुछ फीका लगता है. लन्दन आने वाले हर व्यक्ति के  मन में सबसे पहले इस फैशन  की इस राजधानी को देख लेने की इच्छा बलबती होने लगती है. लन्दन से कुल  ३४३ km  ( सड़क से ) दूर पेरिस तक जाने…

रद्दी पन्ना – सफ़ेद कोरे पन्ने सी थी मैं  जिस पर जैसी चाहे  इबारत लिख सकते थे तुम पर तुमने भी चुनी काली स्याही  यह सोच कर कि उसी से चमकेगा पन्ना  पर भूल गए तुम  उन काले शब्दों को उकेरना होता है  बेहद एहतियात से  तनिक स्याही बिखरी नहीं कि   शब्द बदल जाते हैं धब्बों में और फिर वह…

बहुत समय से भारत के प्रसिद्द आई आई टी के किसी छात्र से बातचीत करने की इच्छा थी.मन था कि जानू जिस नाम का दबाब बेचारे भारतीय बच्चे पूरा छात्र जीवन झेलते हैं उस संस्था में पढने वाले बच्चे क्या सोचते हैं.कई बार कोशिश की पर जब मैं फ्री होती तो उसके इम्तिहान चल रहे होते (गोया वहां पढाई से ज्यादा…

स्मृतियाँ …बहुत जिद्दी किस्म की होती हैं..कमबख्त पीछा ही नहीं छोड़तीं जितना इनसे दूर जाने की कोशिश करो उतना ही कुरेदती हैं और व्याकुल करती हैं अभिव्यक्त करने के लिए. फिर चाहे वह किसी भी रूप में हो.घर में बच्चों को कहानी के तौर पर  सुनाने के रूप में या ,किसी संगी साथी से बाटने के रूप में.कहीं किसी डायरी…

क्रिसमस का समय है. बाजारों में ओवर टाइम हो रहा है और स्कूलों में छुट्टी है .तो जाहिर है की घर में भी हमारा ओवर टाइम होने लगा है.ऐसे में कुछ लिखने का मूड बने भी तो अचानक ” भूख लगी है ……..या ..”तू स्टुपिड , नहीं तू स्टुपिड”की आवाजों में ख़याल यूँ गडमड हो जाते हैं जैसे मसालदानी के…

जीवन की रेला-पेली है. कुछ चलती है, कुछ ठहरी है. जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ कहा वक्त ने हो गई देरी है. अब भावों में उन्माद नहीं क्यों शब्दों में परवाज़ नहीं साँसे कुछ अपनी हैं बोझिल या चिंता कोई आ घेरी है जब मौन प्रखर हो व्यक्त हुआ कहा वक्त ने ,हो गई देरी है. थे स्वप्न अभी…

मैं जब भी भारत जाती हूँ लगभग हर जगह बातों का एक विषय जरुर निकल आता है. वैसे उसे विषय से अधिक ताना कहना ज्यादा उचित होगा. वह यह कि “अरे वहां तो स्कूलों में पढाई ही कहाँ होती है.बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रहे हो. यहाँ देखो कितना पढ़ते हैं बच्चे”. पहले पहल उनकी इस बात पर मुझे गुस्सा…

*सिर्फ एक पंक्ति फेसबुक की दिवार पर – “मैंने अपनी महिला मित्र को छोड़ दिया. अब मैं आजाद हूँ.” और नतीजा… उस लडकी ने शर्मिंदगी और दुःख में आत्महत्या कर ली. *एक बच्ची ने फेस बुक पर एक इवेंट डाल दिया .कल उसका जन्म दिन है सभी को आमंत्रण .दूसरे दिन हजारों की संख्या में उसके घर आगे उपहार लिए…

हथेली की रेखाओं में कभी सीधी कभी आड़ी सी पगडंडी पर लुढ़कती कभी बगीचों में टहलती बारिश बन बरसती कभी धूप में तपती नर्म ओस सी बिछती तो कभी शूल बन चुभती झरने सी झरती कभी नदिया सी बहती रहती मेज पे रखे प्याले से कभी चाय सी छलकती. ग़ज़ल सी कहती कभी कभी गीतों पे थिरकती . रातों के…