इंग्लिश समर की सुहानी शाम है, अपोलो लन्दन के बाहर बेइन्तिहाँ भीड़ है. जगजीत सिंह लाइव इन कंसर्ट है. “तेरी आवाज़ से दिल ओ ज़हन महका है तेरे दीद से नजर भी महक जाये ” कई दिनों से हो रहा यह एहसास जोर पकड़ लेता है. हम अन्दर प्रवेश करते हैं. थियेटर के अन्दर बार भी है. देखा लोग वहां से…
हवा हुए वे दिन जब बच्चे की तंदरुस्ती से घर की सम्पन्नता को परखा जाता था. माताएं अपने बच्चे की बलाएँ ले ले नहीं थकती थीं कि मेरा बच्चा खाते पीते घर का लगता है. एक वक़्त एक रोटी कम खाई तो चिंता में घुल घुल कर बडबडाया करती थीं ..हाय मेरे लाल ने आज कुछ नहीं खाया शायद तबियत ठीक नहीं है. नानी दादी से जब भी बच्चा…








