अभी कुछ दिन पहले मुझे ये ख्याल आया था कि खाली दिमाग कवि का घर …ये बात कही तो मैंने बहुत ही लाईट मूड में थी. पर फिर हाल ही में ,आजकल के कवियों पर पढी एक पोस्ट से पुख्ता हो गई ..वो क्या है आजकल हम लोगों के पास करने को तो और कुछ होता नहीं ..ना गेहूँ बीनने हैं…

आइये आज आप सबको ले चलती हूँ रिवर थेम्स के क्रूज पर. नदी के किनारे बहुत सी  एतिहासिक इमारतें हैं और उनकी एक अपनी पहचान भी है ..पर मेरी नजरों को देखिये वो उनसे अलग भी कुछ देख लेती हैं ..तो आपको दिखाती हूँ कुछ तथ्य और कुछ अपने कथ्य 🙂  सबसे पहले  लन्दन आई – अरे मैं लन्दन नहीं आई.…

चाँद हमेशा से कल्पनाशील लोगों की मानो धरोहर रहा है खूबसूरत महबूबा से लेकर पति की लम्बी उम्र तक की सारी तुलनाये जैसे चाँद से ही शुरू होकर चाँद पर ही ख़तम हो जाती हैं.और फिर कवि मन की तो कोई सीमा ही नहीं है उसने चाँद के साथ क्या क्या प्रयोग नहीं किये…बहुत कहा वैज्ञानिकों ने कि चाँद की…

आज मुस्कुराता सा एक टुकडा बादल का  मेरे कमरे की खिड़की से झांक रहा था  कर रहा हो वो इसरार कुछ जैसे  जाने उसके मन में क्या मचल रहा था  देखता हो ज्यूँ चंचलता से कोई  मुझे अपनी उंगली वो थमा रहा था  कह रहा हो जैसे आ ले उडूं तुझे मैं  बस पाँव निकाल देहरी से बाहर जरा सा.…

दूसरे  कमरे  से आवाज़े आ रही थीं .एक पुरुष स्वर -..” इतना बड़ा हो गया किसी काम का नहीं है …इतने बड़े बच्चे क्या क्या नहीं करते ..जब देखो टीवी और गेम या खाना ..जरा भी फुर्ती नहीं है ..एकदम उत्साह विहीन .ना जाने क्या करेंगे अपनी जिन्दगी में …” फिर एक महिला का स्वर आया …” अरे अहिस्ता बोलो…

जी हाँ झुलस रहा है लन्दन. यहाँ  पारा  आज  ३२ डिग्री तक पहुँच गया है जो अब तक के  साल का  का सबसे गरम दिन है .यहाँ के मेट ऑफिस के अनुसार अगले २ दिन तक यही स्थिति रहेगी. . जहाँ लन्दन के पार्क और समुंद्री तट लोगों से  भरे पड़े हैं वहीँ  ऑफिस में लोग ब्रेक में सूर्य किरणों  का…

यकीन मानिये मैं जब भी यश चोपड़ा  की कोई फिल्म देखती थी उसके मनोरम दृश्यों को देख यही ख्याल आता था “अरे क्या है ऐसा स्विट्ज़रलैंड में जो हमारे यहाँ नहीं मिलता इन्हें ..क्या भारत में बर्फ नहीं पड़ती? या यहाँ हसीं वादियाँ और पहाड़ नहीं हैं ?गायों और झरनों की कोई कमी है क्या भारत में? और वो बैल की घंटी…

रक्तिम लाली आज सूर्य की  यूं तन मेरा आरक्त किये है. तिमिर निशा का होले होले  मन से ज्यूँ निकास लिए है. उजास सुबह का फैला ऐसा  जैसे उमंग कोई जीवन की  आज समर्पित मेरे मन ने सारे निरर्थक भाव किये हैं लो फैला दी मैने बाहें  इन्द्रधनुष अब होगा इनमे  बस उजली ही किरणों का  अब आलिंगन होगा इनमें …

बचपन में हम बहनें बहुत लड़ा करती थीं ..सभी भाई बहन का ये जन्म सिद्ध अधिकार है ..और लड़ते हुए गुस्से में एक दूसरे  को ना जाने क्या क्या कह दिया करते थे .तब मम्मी बहुत डाँटती थीं , कि शुभ शुभ बोला करो, ना जाने कौन से वक़्त माँ सरस्वती ज़ुबान पर बैठ जाये , और तीन  बार कुछ…

हम  जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में “व्रत” का बहुत महत्त्व  है हमें अपने बुजुर्गों को बहुत से उपवास करते देखा है,कुछ लोग भगवान को खुश करने के लिए उपवास रखते हैं ,कुछ लोग भोजन नियंत्रित (डाईट)करने के लिए उपवास करते हैं और कुछ लोग विरोध प्रदर्शित करने के लिए भी उपवास करते हैं . और हमेशा यही ख़याल आया…