१८ वीं और १९ वीं सदी के बहुत से पश्चिमी विद्वानों ने ये भ्रम फ़ैलाने की कोशिश की है कि भारत में ३०० – ४०० ईसा पूर्व जिस ब्राह्मी लिपि का विकास हुआ उसकी जड़े भारत से बाहर की हैं ,और इससे पहले भारत किसी भी तरह की लिखित लिपि से अनजान था. इसी सम्बन्ध में डॉ. Orfreed and Muller…

नारी बंद खिड़की के पीछे खड़ी वो, सोच रही थी कि खोले पाट खिड़की के, आने दे ताज़े हवा के झोंके को, छूने दे अपना तन सुनहरी धूप को. उसे भी हक़ है इस आसमान की ऊँचाइयों को नापने का, खुली राहों में अपने , अस्तित्व की राह तलाशने का, वो भी कर सकती है अपने, माँ -बाप के अरमानो…

एक दिन मुझसे किसी ने कहा था, कि अपने लिए मांगी दुआ कबूल हो न हो पर किसी और के लिए मांगी दुआ जरुर क़ुबूल होती है.ये अहसास बहुत खूबसूरत लगा मुझे …और सच भी..बस उसी से कुछ ख्याल मन में आये अब ये ग़ज़ल है या नज़्म या कुछ भी नहीं ..ये तो नहीं पता पर एक एहसास जरुर…

होली के त्यौहार पर , चलो कुछ हुडदंग मचाएं, टिप्पणियाँ तो देते ही हैं इस बार कुछ title बनाये. ब्लॉगजगत के परिवार में. भांति भांति के गुणी जन आज इस छत के नीचे मिल जाएँ सब मित्रगण प्रेम सौहार्द के रंग के साथ है बस थोडा निर्मल हास्य जैसे मीठी ठंडाई में मिला दी भंग की गोली चार.. लो सबसे…

. इस चक्कर की शुरुआत होती है इंजीनियरिंग डिग्री के बाद किसी maltinational में जॉब ऑफर से ….नया नया जोश और सजने लगते हैं सपने…Onsite के बहाने विदेश यात्रा के ..तभी एक स्पीड ब्रेकर आता है..” कि बेटा शादी कर के जाओ जहाँ जाना है , .एक बार गए तो क्या भरोसा है .नौकरी लग गई है, उम्र भी हो…

प्रेम दिवस कहो या valentine day ..कितना खुबसूरत एहसास है …आज के दौर की इस आपा धापी जिन्दगी में ये एक दिन जैसे ठहराव सा ला देता है .एक दिन के लिए जैसे फिजा ही बदली हुई सी लगती है ..फूलो की बहार सी आ जाती है…हर चेहरा फूल सा खिला दीखता है..कोई गर्व से , कोई ख़ुशी से ,…

६ फरवरी …. . मेरे दिल के बहुत करीब है ये तारीख ,मेरे हीरो का जन्म दिवस…जी हाँ एक ऐसा इंसान जो जिन्दगी से भरपूर था ..जीवन के हर पल को पूरी तरह जीता था. एक मेहनतकश इंसान…. जिसके शब्दकोष में असंभव शब्द ही नहीं था,..व्यक्तित्व ऐसा रौबीला कि सामने वाला मुंह खोलते हुए भी एक बार सोचे ,आवाज़ ऐसी…

“In my next life I would like to be born an indian” जी नहीं… ये कथन मेरा नहीं ,मुझे तो ये रुतबा हासिल है….यह कथन है एक अंग्रेज़ का ..जी हाँ ठीक सुना आपने वो अंग्रेज़ जिन्हें भारत में कमियां और अपने देश में खूबियाँ ही नजर आती हैं.यह कहना है Sebastian Shakespeare का जो हाल ही में २ हफ्ते…

तुम्हारे उठने और  मेरे गिरने के बीच  बहुत कम फासला था.  बहुत छोटी सी थी ये जमीं  या तो तुम उठ सकते थे  या मै ही,  मैंने  उठने दिया दिया था तुम्हे  अपने कंधो का सहारा देकर  उसमे झुक गए मेरे कंधे  आहत हुआ अंतर्मन  पर ह्रदय प्रफुल्लित था  आत्मा की आवाज़ सुनकर.  पर आज  सबकुछ नागवार सा है,  भूल…

अक्सर हमने बुजुर्गों को कहते सुना है कि ये बाल हमने धूप में सफ़ेद नहीं किये…..वाकई कितनी सत्यता है इस कहावत में …जिन्दगी यूँ ही चलते चलते हमें बहुत कुछ सिखा देती है और कभी कभी जीवन का मूल मन्त्र भी हमें यूँ ही अचानक किसी मोड़ पर मिल जाता है.अब आप सोच रहे होंगे कि किस लिए इतनी भूमिका…