इस आदम कद दुनिया में, लोगों का सैलाब है
पर इंसान कहाँ हैं?
रातों के अंधेरे मिटाने को, बल्ब तो तुमने जला दिए
पर रोशनी कहाँ है?
तपते रेगिस्तानों में भी बना दी झीलें तुमने
पर आंखों का पानी कहाँ है?
सजाने को देह ऊपरी, हीरे जवाहरात बहुत हैं
पर चमकता ईमान कहाँ है?
इस कंक्रीट के जंगल में मकान तो बहुत हैं
पर घर कहाँ हैं।
मकानों में, हवेलियों कमरे तो हैं अनगिनत
पर उनमें रहने वाले अपने कहाँ हैं।
उड़ान भर के छाप लिया पंजा चाँद पर
पर पाँव जमाने को ज़मीं कहाँ है।
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अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न. तो सुनिए. मैं एक जर्नलिस्ट हूँ मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टीवी जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.अब लन्दन में निवास है और लिखने का जुनून है.
इस आदम कद दुनिया में, लोगों का सैलाब है
पर इंसान कहाँ हैं?….वाह ! बहुत खूब ??
इस कंक्रीट के जंगल में मकान तो बहुत हैं
पर घर कहाँ हैं।
मकानों में, हवेलियों कमरे तो हैं अनगिनत
पर उनमें रहने वाले अपने कहाँ हैं।
ज़बरदस्त लिखा है । सच्चाई को बयाँ करती अच्छी रचना ।
आपकी लिखी रचना शुकवार 24 जून 2022 को साझा की गई है ,पांच लिंकों का आनंद पर…
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
चिन्तन को प्रेरित करती बहुत सुन्दर रचना ।
बहुत ख़ूब !
इन्सान ने तरक्की तो बहुत की है पर वो ख़ुद बिना जज़्बात वाली एक मशीन बन कर रह गया है.
बहुत ख़ूब !
इंसान ने तरक्की तो बहुत की है पर वो बिना आत्मा वाली, बिना जज़्बात की एक मशीन बन कर रह गया है.
वाह शिखा जी सच है अब न तो जमीन है न मुठ्ठी भर असमान