कुछ लोग जब बन जाते हैं बड़े
तो बढ़ता है उनका पद
पर नहीं बढ़ता उनका कद।
वे रह जाते हैं छोटे,
मन, वचन और कर्म से।
उड़ते हुए हवा में
छोड़ देते हैं जमीं
और लगा देते हैं ठोकर
जमीं से जुड़े हुए लोगों को।
उड़ा देते हैं मिट्टी को फूंक से
समझ कर पाँव की धूल।
फिर उड़ते हुए जब होती है थकान
हो जाता है हवा का दबाव कम
तब होता है अकेलेपन का एहसास।
शिथिल हो जाते हैं पर
और उखड़ने लगती है सांस
तब देखते हैं पलटकर
ढूंढते हैं सहारे के लिए वही लोग
तब याद आती है उन्हें वही मिट्टी
पर तब तक उनके पैरों तले
खिसक चुकी होती है जमीं…