मैं रणवीर कपूर की फैन नहीं हूँ , न दीपिका मुझे सुहाती है , और कल्कि तो मुझसे “जिन्दगी न मिलेगी दुबारा” में भी नहीं झेली गई. फिल्म का शीर्षक भी बड़ा घटिया सा लग रहा था। फिर भी लन्दन में यदा कदा मिलने वाला एक “सनी सन्डे”,कुछ दोस्तों के कहने पर हमने इन तीनो की फिल्म यह जवानी है दीवानी को समर्पित करने का निश्चय किया . दोस्ती का यही जज़्बा अगर आपके अन्दर भी हो तो यह फिल्म आप भी जरूर देख आइये.
मस्ती से भरपूर.फिल्म “यह जवानी है दीवानी”.
कहने को करन जौहर द्वारा निर्मित और अयान मुखर्जी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में कहानी जैसा कुछ भी नहीं. परन्तु करन जौहर का ख़ूबसूरती से दृश्यों को फिल्माने का स्किल और अयान मुखर्जी की “वेक अप सिद्ध” वाली इंटेलीजेन्स और सहजता इस फिल्म में भी साफ़ झलकती है।
छोटे छोटे रोजमर्रा की युवाओं की जिन्दगी से जुड़े चुटीले से संवादों से भरी यह फिल्म इस सहजता और मस्ती से आगे बढ़ती जाती है कि कहीं भी बोझिलता नहीं आने देती।
फिल्म में, बनी (रणवीर कपूर) एक लापरवाह , मस्त सा लड़का है जिसका सपना, दुनिया का एक एक कोना देख लेने का है। उसके दो खास दोस्त हैं अदिति (कल्कि) और अवि (आदित्य रॉय कपूर) अदिति, अवि से प्रेम करती है पर कभी बताती नहीं . ये तीनो घूमने मनाली की पहाड़ियों पर जाते हैं .उधर नैना एक पढ़ाकू लड़की है , मेडिकल की छात्रा है और इन तीनो की स्कूल मेट है। वह भी अपनी पढाई से ब्रेक के लिए इत्तेफाक से मनाली के उसी ट्रिप पर जाती है। चारो दोस्त मिलते हैं खूब मस्ती करते हैं। और बहुत अलग अलग होते हुए भी बनी और नैना को एक दूसरे से प्यार हो जाता है पर कोई कुछ नहीं कहता। तभी एक स्कॉलरशिप पर बनी न्यू यॉर्क चला जाता है। आठ साल बाद अदिति की शादी में फिर सब मिलते हैं और आखिर में बनी, नैना के साथ रहने का फैसला कर लेता है। इस तरह से फिल्म का हैप्पी एंड हो जाता है।
इन दोस्तों के मिलने , बिछुड़ने और फिर मिलने की छोटी सी , सामान्य सी कहानी में अगर कोई फेक्टर है जो फिल्म में बांधे रखता है वह है दोस्ती, दोस्तों के साथ मस्ती, सरल चुटीले संवाद और नेचुरल अभिनय।
रणवीर कपूर इस तरह के लापरवाह से चरित्र के लिए एकदम सही चुनाव रहते हैं। जिस सहजता से वह चलताऊ से संवाद भी अपने अंदाज से बोलते हैं हंसी आ ही जाती है। दीपिका का चरित्र फिल्म में एक सरल , पढ़ाकू टाइप लड़की का है उन्होंने भी अपने काम के साथ पूरा न्याय किया है . सबसे ज्यादा चकित और आकर्षित करती है कल्कि। उनका एक एक भाव और संवाद अदायगी काबिले तारीफ है।
अरसे बाद एक छोटी सी भूमिका में फारुख शेख ने अपनी छाप छोड़ी है और एक आइटम सॉंग से फिर से हिंदी फिल्मों में आकर माधुरी दीक्षित ने भी अपना पूरा जादू बिखेरा है.
फिल्म में संगीत प्रीतम का है और गीतों के बोल अमिताभ भट्टाचार्य के हैं , जिसमें से बलम पिचकारी , और बद्द्तमीज दिल काफी प्रचलित हो चुके हैं, काफी कैची से हैं और स्क्रीन पर देखने में भी अच्छे लगते हैं।
फिल्म के शुरू में ही माधुरी दीक्षित का आइटम सॉंग है, जिसमें वे जितनी खूबसूरत लगी हैं उतनी ही दिलकश गीत की कोरियोग्राफी भी हैं.
कुल मिलाकर यह एक हलकी फुलकी , मस्ती से भरपूर फिल्म है। जो तथाकथित नई पीढी पर फिल्माई जाने के वावजूद हर वर्ग का मनोरंजन करने में सक्षम है। हाँ फिल्मो में आदर्श और अलग कहानी ढूँढने वालों को शायद यह फिल्म न पसंद आये।
तो आप यदि दोस्तों में और दोस्ती निभाने में विश्वास करने वालों में से हैं तो अगली फुर्सत में ही पूरे परिवार के साथ जा कर देख आइये।
पर हाँ …नई पीढी , पुरानी पीढी के भेद का चश्मा घर पर ही उतार कर जाइयेगा। शायद आपको भी आपके कॉलेज के दिन और पुराने दोस्त याद आ जाएँ :).
सुन्दर समीक्षा, अब जाकर देख आते हैं।
बहुत खूबसूरत रिव्यु ……… आपके नज़रिए से एक बार फ़िर देखना तो लाज़मी है ।बहुत बढ़िया आलेख ।
अब रूममेट की शादी हो जाने का इतना नुक्सान तो है , अकेले तो हम कोई फिलम ना देख पाएंगे 🙂 🙂
रिव्यू के बारे में तो फिलम देख कर बताएँगे 🙂
वाह…फरमाईश का जवाब इतना फास्ट 🙂 🙂
फिल्म का शीर्षक तो मुझे भी अजीब सा लग रहा था लेकिन जब देखा की वेक अप सिड के अयान मुखर्जी की फिल्म है तो लगा शायद अच्छी ही हो…और अब तक जितने लोगों से सुना है सब तारीफ़ कर रहे हैं…बस अब जाकर हम भी देख ही आयेंगे फिल्म….दो तीन दिन में 🙂
देखते हैं…..काफी स्ट्रोंग सिफारिश जो की है…
और हलकी फुलकी दिमाग बाजू में रख कर देखने वाली फिल्म की ज़रुरत भी है इनदिनों…
अनु
देखते है अब देखना होता है … आपके सुझावों को ध्यान मे रखेंगे … वैसे समीक्षा बढ़िया है … 🙂
बिल्कुल देखेंगे जी 🙂 दोस्ती का वही जज़्बा है भाई हमारे अन्दर भी 🙂 🙂
देखते है अब देखना kab होता है! बढ़िया समीक्षा 🙂
Bahut Khoob.. Aapne Sameeksha ke sath sath Film ka Jo Chitran kia hai.. Us Se Dilchaspi or badh gyi…
Dhanyawaad.
अपना फ़िल्मी ज्ञान विगत कई वर्षों से कम होता जा रहा है . फिल्मे कई कई वर्षों में देख पाता हूँ . सोच रहा है देख ही आऊं. ये कल्कि कैसा नाम है जी .
फिल्म की सुंदर समीक्षा के लिए बधाई,,,अब तो फिल्म देखनी ही पड़ेगी ,,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
सटीक समीक्षा
अब देख कर आयेंगे फिर आपकी समीक्षा दुबारा पढेंगे ….फिर कमेन्ट करेंगे आपकी समीक्षा पर ।
राउडी राठौड के बाद अभी तक कोई फिल्म थिएटर में नहीं देखी है।आपकी पोस्ट पढकर लगता है ये वाली देख लेनी चाहिए।शीर्षक मुझे भी ज्यादा आकर्षक नहीं लगा।गाने पहले ही असर बना चुके हैं।आपको माधुरी का नृत्य अच्छा लगा पर मुझे लगता है पहले वाला जादू माधुरी इस बार नहीं जगा पाई हैं बल्कि इस गाने में रणबीर ज्यादा जमे हैं।रणबीर और दीपिका दोनों मुझे अच्छे लगते हैं।
फिल्म के नाम पर तो अब मैं जाता ही नहीं.. वरना 'डर्टी पिक्चर' इतनी शानदार न होती और 'वंस अपौन अ टाइम इन मुम्बई' में इतने अच्छे संवाद न सुनाई देते.. "औरंगजेब" एक हकीकत न होकर इतिहास होती.
ये फिल्म शनिवार को देखूंगा!! बाकी तो आपने कह ही दिया है!! सो मज़ा ही आएगा फिल्म में!!
बढ़िया समीक्षा …… कहानी तो समझ आ ही गयी ….. पुरानी पीढ़ी वाला चश्मा कभी चढ़ा नहीं लेकिन अब लगातार 3 घंटे थियेटर मेन गुजारने सज़ा लगते हैं :):)
बढ़िया समीक्षा…किन्तु चश्मा तो ले ही जाना होगा फिल्म देखने को…उसके बिना काम नहीं चलने का 🙂
आप ने देखा भी और दिखा भी दिया..वाह!
hahahahahahaha
बढ़िया।
देखा भी और दिखा भी दिया.वाह!धन्यवाद
कल देखी फिल्म। मैंने कुछ लिखा भी है इसपर। डाक्टर बनी दीपिका की छटपटाहट समझ में आती है। देखने लायक है।
तो युवाओं (आप जैसे ) के लिए फिल्म है यह -अंगूर खट्टे हैं! 🙁
खुबसूरत समीक्षा आनंद लिया जायेगा
आपकी सिफारिश ललचा रही है , देख लेते हैं फिल्म !
हम भी देखने की सोच ही रहे थे। अब आपने इतनी तारीफ कर दी है तो दिल्ली जाकर अवश्य देखेंगे। वैसे भी मनोरंजक साफ सुथरी फ़िल्में कम ही देखने को मिलती हैं।
अभी तक देखि नहीं पिक्चर ….
आपका रिव्यू बड के लग रहा है अब जाना पढ़ेगा जल्दी ही … इससे पहले की उअर जाए सिनेमा से….
फिल्म बहुत अच्छी है ':शॉट्स लोकेशन और किरदार भी अच्छे है। सोंग सारे ही अच्छे है। लेकिन हर शॉट्स में ड्रिंक्स का अधिक मात्रा में दिखाया गया है।।।।
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