पर्याप्त अनुभव
शायद जो जरुरी है
कुछ लिखने के लिए
नहीं खाई कभी प्याज
रोटी पर रख कर
कभीनहीं भरा पानी
पनघट पर जाकर
बैलगाड़ी, ट्रैक्टर, कुआं
और बरगद का चबूतरा
सब फ़िल्मी बातें हैं मेरे लिए
“चूल्हा” नाम ही सुना है सिर्फ मैंने
और पेड़ पर चढ़ तोड़ना आम
एक एडवेंचर,एक खेल
जो कभी नहीं खेला
हाँ नहीं है मेरे पास गाँव
नहीं हैं बचपन की गाँव की यादें
पर –
मेरे पास है शहर
बहुत सारे शहर
सड़के,आसमान, और बादल
उनपर चलती रेलें हैं
बसें हैं, हवाई जहाज हैं
और उनके साथ भागती सीमाएं हैं
अलग अलग किस्म,
अलग अलग नस्ल के लोग हैं
और उनकी रंगबिरंगी जिंदगियां हैं
तो मैं इन चित्रों की ज्यामिति को
उकेर देती हूँ ज्यों का त्यों ।
इन पर भी तो लिखना ज़रूरी है न !
wpadmin
अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न. तो सुनिए. मैं एक जर्नलिस्ट हूँ मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टीवी जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.अब लन्दन में निवास है और लिखने का जुनून है.
बिलकुल जरुरी है। प्याज , चूल्हा , मिटटी , गाँव – जीवन इनके सिवा भी तो बसता है कही और भी !
जी…. ये भी जीवन का ही हिस्सा हैं तो शब्दों में ढलेंगे ही ….
aapne likha vo sach vakt kaa , badlaav kaa
बच्चों को लेकर यही सब हैम लोगों के चर्चा का विषय होता है. वैसे यह जो स्टेशन है वह अपने ही जैसा दिख रहा है
यह switzarland का एक स्टेशन है।
सच है, सबका अपना अनुभव आवश्यक है लेखन है, सुन्दर रचनात्मक उहापोह।
shabdon ko to ek sancha chahiye akar me dhalne ke liye ..kya fark padta hai gaanv aur shahar ka ….:)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार
असली रोमांच तो वही है , स्काई स्क्रेपर्स और फर्राटा भर्ती जिंदगी , बिलकुल लिखिए ,
लेखन में १०० ग्राम एहसास होना चाहिये ( आप का ही कथन ) , उपजे चाहे जहाँ से | चाहे सोंधी मिट्टी से उपजा हो या चाहे हवाई जहाज की खिड़की पर अटके चाँद से उपज आया हो |
यह सब ज़िंदगी के रंग है और ज़िंदगी में हर रंग ज़रूरी है तो गाँव की गलियां न सही, शहर की स्ट्रीट तो है। तो बस लिखिए खूब लिखिए और बिंदास लिखिए जी …होली की हार्दिक शुभकामनायें।
ज़िंदगी के रंग हज़ार और हर रंग अपने में खूबसूरत…मनमोहक…तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि हम अपने चित्र को किस रंग से भरते हैं…| बात तो ये है न कि चित्र वास्तविक लगे…| बहुत सटीक बात लिखी है आपने…|
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ट्विटर और फेसबुक पर चुनावी प्रचार – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
सही कहा शिखा जी, परिवेश स्वतः झलकता है कविताओं में |
हम जिस परिवेश में जीत हैं उसी को भली भाँति जान पाते हैं …ज़ाहिर है कि लिखेंगे भी उसी के बारे में । किंतु भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्हें कई तरह की परिस्थितियों/ परिवेशों में जीने का अवसर मिल सका । निश्चित ही उनकी लेखनी का आकाश और भी विस्तृत होगा 🙂
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
—
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (20-03-2014) को एक बरस के बाद फिर, बरसेगी रसधार ( चर्चा – 1557 ) में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
—
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
—
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
बहुत सुंदर रचना |
सुंदर कविता
मानव जीवन का क्षेत्र बहुत व्यापक और विस्तृत हो गया है .किसी भी पक्ष कम महत्व का नहीं बल्कि आज तो ग्रामीण स्थितियाँ और पुराने रंग-ढंग बिलकुल बदल गए हैं अनुभव के क्षेत्र से एकदम बाहर . आप जो लिख रही हैं वह अपनी सच्चाई है ,अपने समय का दस्तावेज़.विविध देशों और बहुरंगी जीवन की अनुगूँज लेखन में होना बहुत ज़रूरी है .
बिलकुल जरूरी है … हर वो चीज़ जो कायनात में है विशिष्ट है … और उसकी विशेषता को लखना भी जरूरी है …
U write on REAL LIFE……..Dream ki bate to kabhi -kabhi hoti hai…..
हां बहुत ज़रूरी है शिखा… वो गुज़रा ज़माना है, तो ये वर्तमान है…
रोड, मेट्रो, ट्रेन, सड़कें, जींस ……. पर भी लिखना तो जरूरी ही है 🙂
लिखना जरूरी है…..सच
शिखा जी , अच्छा लिखने के लिये गहरी अनुभूतियों की जरूरत होती है । गाँव हो या शहर कोई अन्तर नही पडता । आप जहाँ हैं बहुत दिल से लिख रही हैं ।
सच है लिखने के विषय को तो किसी भी सीमा से परे होना ही है ….
लेखन कोई मात्र कल्पना नहीं ,अनुभव की धरा पर ही बीज पनपते हैं ,
ज़रूरी है कि जो लिखा जाए सच्चाई के साथ लिखा जाए . ये भी ज़रूरी नहीं कि सोंधी महक केवल गाँव की मिटटी से आती हो …. इस महक का एहसास हमारी स्मृति से जुड़ा होता है .
भावनाओं की सुन्दर प्रस्तुति .
भावनाओं की अभिव्यक्ति भी आवश्यक है.
इंद्र धनुष का हर रंग खूबसूरत होता है…ये विभिन्नताएं ही जीवन में रस घोलती हैं …
हकीकत के धरातल को छूता हुआ इमानदारी से लिखी हुई रचना…….काबिले तारीफ़ ………………….
bilkul sahi kaha aapne. apne parivesh se ham achhuta kaise rah sakte hain
aap kahan ho, FB par bhi nahi dikh rahi ho, kyya hua, ham apko dhundh rahe hain, connect me…………………………………………………………………………………..
Pavnesh
zindgi ke ankahi kathaon k un rangon k baren me likhen jinki charcha abtak nahi hui.andheron ke khubsurti pe likhen ya budhe hote jawan lamhon k bare me ,sab me zindgi ka chand jhankta hua dikhe.tanha tanha sa mera blog hai kabhi kabhi fursat ho to us taraf ho len.ek lamha bevajah sa..www.skyfansclubblogspot.com
…to aap mere blog pe aa rahin hai na?
सच में जरूरी है लिखना आत्मा को अगर रखना है जिंदा 🙂
वाह… लाजवाब प्रस्तुति…बहुत बहुत बधाई…
नयी पोस्ट@भजन-जय जय जय हे दुर्गे देवी
ji han mere paas nahi hai ……bahut achchi rachna hai shiksha ji badhai
हमारे लिए गांव तो जैसे खट्टा अंगुर!
ईस 'ज़रूरी' काव्य के लिए धन्यवाद!
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