रात बहुत गहरी है 

फलक पर सिमटे तारे हैं 
एक बूढा सा चाँद भी 
अपनी बची खुची चाँदनी,
ओढ़े खडा है. 
आस्माँ ने मुझे 
दिया है न्योता,
सितारों जड़ी एक चादर 
बुनने का.
इसके एवज में उसने 
किया है वादा 
शफक पर थोड़ी सी 
जगह देने का. 
पर मुझे तो पता है 
शफ़क़ सिर्फ एक धोखा है 
ये चाल है निगोड़े आस्माँ की 
मुझे छलने जो चला है 
स्वार्थी है बहुत वो 
पूरा जग घेरे पड़ा है 
पर हमने भी अब है ठानी 
उससे भिड़ के दिखाना है 
कह दो, उस आस्मां से 
जरा सा खिसक जाए 
अपने हिस्से का आकाश, 
हमें भी बिछाना है.