वह बृहस्पतिवार का दिन था – तारीख 23 जून 2016  – जब एक जनमत संग्रह के लिए मतदान किया जाने वाला था. इसमें वोटिंग के लिए सही उम्र के लगभग सभी लोग वोट कर सकते थे वे फैसला लेने वाले थे कि यूके को  योरोपीय संघ का सदस्य बना रहना चाहिए या उसे छोड़ देना चाहिए. 
इस जनमत संग्रह में  30 मिलियन से अधिक लोगों ने मतदान किया। यह 1992 के आम चुनाव के बाद से ब्रिटेन के मतदान में सबसे अधिक संख्या थी। सभी यूके के भविष्य निर्धारण करने में अपना योगदान देने के इच्छुक थे. 
24 जून की सुबह यूके  निवासियों को नाश्ते की मेज पर इस जनमत संग्रह का फैसला भी मिला. जिसने जहाँ खासकर अधिकाँश लन्दन वासियों को शॉक में डाला वहीं बहुत लोग इससे बेहद खुश हुए.  इस रेफेरेंडोम के अनुसार 52 प्रतिशत मतदाताओं ने यूरोपीय संघ से बाहर होने के पक्ष में अपना वोट दिया. यूके की जनता ने यूरोपीय संघ छोड़ने का निर्णय किया था. वह अलग होकर अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं. अपने पैसे, कानून और व्यवस्था का इस्तेमाल स्वयं अपने मूल्यों पर करना चाहते हैं.  यह एक एतिहासिक दिन बन गया और इस फैसले के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपने पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर दी.
अभी लगभग 2 साल पहले की ही बात है जब यूके के ही एक हिस्से स्कॉटलैंड में भी इसी तरह का एक जनमत संग्रह हुआ था जहाँ स्कॉटलैंड वासियों को यूके में बने रहने और यूके से अलग होने के लिए अपना वोट देना था. तब इंग्लैंड सहित पूरे देश ने “एकता में ही शक्ति है” जैसा नारा दिया था तब स्कॉटलैंड वासियों ने इसका मान रखते हुए यूके  साथ रहने के पक्ष में अपने वोट दिए थे. और अब उसी ग्रेट ब्रिटेन ने स्वयं ईयू से अलग होने का निर्णय किया है. 
गौरतलब है कि पूर्वोत्तर इंग्लैंड, वेल्स और मिडलैंड्स में अधिकतर मतदाताओं ने यूरोपीय संघ से अलग होना पसंद किया है जबकि लंदन, स्कॉटलैंड और नॉर्दन आयरलैंड के ज्यादातर मतदाता यूरोपीय संघ के साथ ही रहना चाहते थे. और अब सम्भावनाएं जताई जा रही हैं कि अब कम से कम स्कॉटलैंड और नॉर्दन आयरलैंड यूके से अलग होकर यूरोपीय संघ में शामिल होना चाहेंगे. और युनाईटेड किंगडम शायद इतना युनाईटेड नहीं रह जाएगा. 
ज़ाहिर है कि EU छोड़ने के पक्ष में जिन्होंने अपना मत दिया उनमें लन्दन से बाहर के बुजुर्गों की संख्या सर्वाधिक थी जो पिछले दस साल में दूसरे देशों से ब्रिटेन में आकर बसने वालों की बढ़ती संख्या से बहुत प्रसन्न नहीं हैं और उन्हें लगता है कि इनके आने से उन्हें मिलने वाले बेनेफिट्स और नौकरियों में कटौती हुई है. देश में बढ़ते रोड साइड अपराध, चोरियां और बिगड़ती व्यवस्थाओं की वजह भी अप्रवासियों को माना जाता रहा है. 
ईयू से अलग होने की एक मजबूत वजह यह भी बताई जाती रही कि अगर ब्रिटेन ईयू से हटता है तो देश की सरकारी स्वास्थ्य  संस्था NHS अपनी जर्जर स्थिति से उबर जायेगी क्योंकि ईयू को हर हफ्ते दी जाने वाली राशि ब्रिटेन अपनी इस स्वास्थ्य योजना पर इस्तेमाल कर सकेगा.

पिछले 20 वर्षों से यूके  में रह रही एक गृहणी संगीता शाह का कहना है कि उन्होंने देखा है कि कैसे पिछले सालों में ईयू इमिग्रेशन का कानून बदला गया है और कैसे हाल में हुए बदलावों का ब्रिटेन पर एक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, उनका कहना है कि हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे -: स्कूल प्रवेश, आवास और साथ ही अपराध दर पर बहुत असर पड़ रहा है । उनका  मानना है कि ये अप्रवासी बेनेफिट्स का अतिरिक्त लाभ लेते हैं, जो उन्हें ब्रिटेन करदाताओं के मेहनत से कमाए पैसे का दुरुपयोग लगता है । उनका कहना है कि वे अपने बच्चों और भावी पीढ़ियों के लिए ऐसा जीवन नहीं चाहती इसलिए उन्होंने जीवन यापन के लिए बढ़ने वाली कीमतों के खतरे के वावजूद ईयू के निकलने के पक्ष में अपना वोट दिया. 

वहीं एक जर्मन ट्रेड फेयर कंपनी में एक हेड , लन्दन निवासी बिंदिया वर्मा इस फैसले से आहत हैं.उनके लिए यह फैसला पूरी तरह अनपेक्षित था और एक बहुत बड़े आघात के रूप में आया है. उनके अनुसार इस फैसले का बड़ा प्रभाव उन जैसी कंपनी पर पड़ेगा क्योंकि कंपनियां अब अपना निवेश रोक सकती हैं जब तक कि ईयू और दुनिया के बाकि देशों से अधिक भरोसे वाली ताज़ा डील सामने न आये. वे अपने उन युरोपीय दोस्तों के लिए भी दुखी हैं जिन्होंने ब्रिटेन को अपना घर बना लिया है और अब वे खुद को यहाँ अप्रिय और अवांछित महसूस करेंगे. बिंदिया कहती हैं कि यही नहीं बल्कि शायद इस फैसले से हमने अपने बच्चों एवं भावी पीढी से बिना सीमा बंदी के यूरोप यात्रा और काम करने के अवसरों को भी छीन लिया है. 

आंकड़ों के अनुसार ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने के फ़ैसले के बाद दुनिया भर में बाज़ार में गिरावट देखने को मिल रही है.अकेले ब्रिटेन के स्टॉक मार्किट में ही एक सौ पच्चीस बिलियन का नुक्सान हुआ है. 
इस फैसले से अधिकाँश युवा वर्ग अधिक निराश दिखाई देता है. खासकर लन्दन जैसे बहु संस्कृति वाले शहर के लिए तो यह फैसला दुखद नहीं तो थोड़ा निराशाजनक अवश्य दिखाई पड़ता है. 

लन्दन में इकोनिमिक्स की एक छात्रा सोम्या के अनुसार भी यह फैसला ठीक नहीं है वह कहती है कि हम पहले से ही माइनस -3294 मिलियन पाउंड्स के क़र्ज़ में हैं अब व्यापार में नुक्सान और अधिक हो सकता है. 

जो भी हो, यह कहा जा सकता है कि यह हो सकता है कि इस फैसले के कुछ दूरगामी फायदे निकल कर आयें. हो सकता है कि ईयू की सरपरस्ती से निकल कर यूके अपना अलग दृण निर्माण करे. ईयू से निकल कर बाकि दुनिया के देशों से व्यापारिक रिश्तों में बढ़ोतरी की संभावनाएं जताई जा रही हैं परन्तु यह भी ज़ाहिर है कि फिलहाल यूके की अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा और जीवन यापन की कीमत बढ़ेगी. इसमें कोई संदेह नहीं अपने पैरों पर खड़े होकर सफलता तक तक पहुँचने के लिए यूके को एक लंबा और कठिनाई से भरा रास्ता पार करना होगा. 

इस एतिहासिक फैसले से यूके, कठिनाई की आग में तप कर, निखर कर निकलेगा या टूट कर बिखर जाएगा- यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.